Varanasi News: वाराणसी के मंदिरों अलग है इस मंदिर की शैली पौराणिक मान्यता के अनुसार काशी महादेव के त्रिशुल पर स्थित है. यहां भगवान शिव के हजारों मंदिर हैं लेकिन बनखंडी महादेव के मंदिर की शैली बनारस के दूसरे मंदिरों की शैली से बिल्कुल अलग है.
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वाराणसी : भोलेनाथ शिवजी की नगरी काशी जिसके हर कण में महादेव बसते हैं. बनारस में स्थित हर मंदिर का अपना अलग आध्यात्मिक महत्व है. भगवान शिव के प्रत्येक मंदिर पर लोगों की गहरी आस्था और मान्यता है. आज हम आपको बता रहे हैं बनारस के एक ऐसे मंदिर के बारे में जिसके बारे में मान्यता है कि यह महाभारत के समय स्थापित है.
सावन में इस मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ लगती है. कहा जाता है कि इस मंदिर में यदि विधि-विधान से पूजा अर्चना की जाए तो भोलेनाथ भक्तों की हर मनोकामना पूरी करते हैं.
वाराणसी के मंदिरों अलग है इस मंदिर की शैली पौराणिक मान्यता के अनुसार काशी महादेव के त्रिशुल पर स्थित है. यहां भगवान शिव के हजारों मंदिर हैं लेकिन बनखंडी महादेव के मंदिर की शैली बनारस के दूसरे मंदिरों की शैली से बिल्कुल अलग है. यह मंदिर ही एक शिवलिंग की आकृति का है. मंदिर में आने वाला हर भक्त कुछ देर तक इसके बेजोड़ वास्तुकला को देखता ही रह जाता है.
काले रंग की शिवलिंग की आकृति में बने इस मंदिर की ऊंचाई 60 फीट और व्यास 30 फीट है, जो इसे बनारस के दूसरे मंदिरों से बिल्कुल अलग बनाती है. सावन के समय इस मंदिर में प्रातः 4 बजे से ही जलाभिषेक करने के लिए भक्तों की लंबी लाइन लग जाती है.
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बनखंडी महादेव के मंदिर में पीपल का एक पेड़ है जिसके चमत्कारी बताया जाता है. कहा जाता है कि इस पेड़ पर राम, लक्ष्मण और हनुमान की छाया नजर आती है. इतना ही नहीं, समय-समय पर पेड़ अपना रंग भी बदलता है. मंदिर परिसर में प्रथम पूज्य श्रीगणेश, आदिशक्ति और संकटमोचन हनुमान की प्रतिमा भी स्थापित है.
गुरु द्रोण ने की थी स्थापना
इस मंदिर से जुड़ी कई लोक मान्यताएं हैं. इनमें से पहली लोककथा के मुताबिक बनखंडी महादेव की स्थापना महाभारतकाल में कौरवों और पांडवों के गुरु द्रोण द्वारा की गई थी. इतना ही नहीं अज्ञातवास के दौरान पांडव ने इस जगह पर काफी समय बिताया था और श्रीकृष्ण इसी स्थान पर पांडवों से मिलने भी आए थे. इस कथा के अनुसार इस क्षेत्र में उस समय बहुत घना जंगल था. इसी वजह से भगवान शिव के इस मंदिर मंदिर का नाम बनखंडी महादेव पड़ गया. बनखंडी महादेव की स्थापना से जुड़ी दूसरी कथा के अनुसार यह मंदिर करीब 200 साल पुराना है. इस मान्यता के अनुसार इस मंदिर की स्थापना साल 1818 में बनखंडी महाराज द्वारा की गई थी. बनखंडी बाबा के नाम पर ही मंदिर का नाम रखा गया. 1993 में इस मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया. जब जीर्णोद्धार हुआ तब मंदिर को शिवलिंग के आकार में बनाया गया.
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