Uttarkashi tunnel collapse:उत्तरकाशी में फंसे मजदूरों को बचाने के लिए बचाव दल हर संभव कोशिश कर रहा है. ताकि वह जीवित और सुरक्षित अपने- अपने परिवार के पास पहुंच सकें. लेकिन अभी तक किये गये सारे कोशिश नाकाम नजर आ रहे हैं. अमेरिका निर्मित ऑगर मशीन भी मलबे को हटाने में असमर्थ रही, आज 15 दिन से ज्यादा समय से मजदूर टनल के अंदर फंसे हुए है और कबतलक बाहर निकलेंगे इसपर कोई कुछ स्पष्ट बता ही नहीं रहा है. लेकिन क्या आप ने यह सोचा है कि मजदूर जब टनल से बाहर निकलेंगे तो उन्हें किस प्रकार के मानसिक और शारिरिक परिस्थितियों से गुजरना पड़ेगा.
इतने बड़े ट्रामा और खौफनाक मंजर से निकलने के बाद अगले 2-3 महीने उन मजदूरों के लिए आसान नहीं रहने वाला है. शुरुआती दिनों में तो उन्हे बहुत परेशानी और चिंता होगी
सबसे बड़ी बात यह है कि सभी मजदूर व्यस्क हैं और एक दूसरे से परिचित हैं. सभी एक जैसे हालात और परिस्थितियों में काम करते हैं. इस लिहाज से सभी की मनोस्थितों तो अच्छे होने का अनुमान लगाया जा रहा है.
साइकोलॉजिस्ट की मानें तो इस समय हमे मजदूरों के विलपावर और मोटीवेशन देते रहने की सख्त जरूरत है. उन्हें जो भी उम्मीद दे वह 100 फीसदी लगनी चाहिए. ये उम्मीद ही उनका विलपावर बढाने में मदद करेगी.
मनोचिकित्सक टनल में फंसे मजदूरों के सामने 4 तरह की समस्या देख रहे हैं. पहला डिप्रेशन - बहुत लंबे समय तक जब आप ऐसी जगह पर रहे हो. जहीं से जीवन की उम्मीद लगभग न के बराबर थी.
उनके दिमाग में बार-बार यह ख्याल आ रहा होगा कि क्या हम इस सुरंग से बाहर निकल पाएंगे क्या जब इस प्रकार का ख्याल बार-बार दिमाग आता है , तो अवसाद की स्थिति उत्पन्न हो जाती है.
एंग्जायटी का लेवल हाई होने पर शरीर पर दिमाग का नियंत्रण खत्म होने लगता है. इसे ही पैनिक एंग्जायटी जिसऑर्डर कहते हैं. पीटीएसडी यानी ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर यह लंबे समय तक अवसाद के रूप में दिमाग पर असर डालता है.
सुरंग से बाहर आने पर मजदूरों को पीटीएसडी से गुजरना पड़ सकता है. इससे सही होने में समय लगता है. ऐसी स्थिती में प्राथमिक उपचार के बाद काउंसिलिंग और कुछ केस में दवा की भी जरूरत पड़ेगी जो तीन महीने से 6 महीने तक चल सकता है.