up byelection: इस नारे पर बीजेपी का कहना है कि बटेंगे तो कटेंगे नारे ने समाज को जागरूक करने का काम किया है. इस नारे ने विपक्षियों को भी भारत की संस्कृति पर बात करने के लिए विवश कर दिया है. इस नारे ने अपना काम किया है.
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UP Upchunav news: यूपी में इस वक्त 'बटेंगे तो कटेंगे' नारे को लेकर बहस छिड़ी हुई है. उपचुनाव के मौसम में इस बयान ने सियासत को और धार दे दी है. बीजेपी जहां इस लोक जागरूकता से जोड़ रही है तो वहीं समाजवादी पार्टी इसे घटिया बता रही है और बीजेपी की निराशा का प्रतीक बता रही है. इस बीच सूबे की पू्र्व सीएम मायावती का बयान भी आ गया है. मायावती ने कहा कि बीएसपी के उप-चुनाव लड़ने से बीजेपी और सपा गठबंधन की नींद उड़ी हुई है.
उन्होंने कहा कि जनता का ध्यान बंटाने के लिए बीजेपी कटोगे तो बंटोगे और सपा जोड़ने की बात कह रही है. होना ये चाहिए कि बीएसपी से जुड़ेंगे तो आगे बढ़ेंगे. बीएसपी की सरकार की तुलना में बीजेपी और सपा की सरकार की तुलना में बीएसपी का शासन जनता सबसे बेहतरीन रहा है. जनता को पोस्टर के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए. बीजेपी बंटोगे तो कटोगे और सपा जुड़ेंगे तो जीतेंगे का नारा देकर इसकी आड़ में सिर्फ और सिर्फ जनता को गुमराह कर उप-चुनाव वाली सीटों पर फायदा लेने चाहते हैं.
मायावती ने आगे कहा कि मतदाताओं को इन नारों से सावधान रहना चाहिए. सपा के शासन में गुंडे माफिया ही सरकार चलाते रहे हैं. ऐसा लग रहा है कि सपा अपने गुंडों को उप-चुनाव जीतने के हथकंडे अपना रही है. बीजेपी और सपा के गठबंधन से दूर रहोगे तो आगे बढ़ोगे. लोगों को विरोधी पार्टियों के बहकावे में नहीं आना चाहिए.
आपको बता दें कि आज सुबह सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने एक ट्वीट कर बंटेंगे तो कटेंगे नारे पर अपनी प्रतिक्रिया दी थी. उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा कि उनका (बीजेपी) का ‘नकारात्मक-नारा’ उनकी निराशा-नाकामी का प्रतीक है. इस नारे ने साबित कर दिया है कि उनके जो गिनती के 10% मतदाता बचे हैं अब वो भी खिसकने के कगार पर हैं, इसीलिए ये उनको डराकर एक करने की कोशिश में जुटे हैं लेकिन ऐसा कुछ होनेवाला नहीं.
अखिलेश यादव ने आगे कहा , ‘नकारात्मक-नारे’ का असर भी होता है, दरअसल इस ‘निराश-नारे’ के आने के बाद, उनके बचे-खुचे समर्थक ये सोचकर और भी निराश हैं कि जिन्हें हम ताक़तवर समझ रहे थे, वो तो सत्ता में रहकर भी कमज़ोरी की ही बातें कर रहे हैं. जिस ‘आदर्श राज्य’ की कल्पना हमारे देश में की जाती है, उसके आधार में ‘अभय’ होता है; ‘भय’ नहीं. ये सच है कि ‘भयभीत’ ही ‘भय’ बेचता है क्योंकि जिसके पास जो होगा, वो वही तो बेचेगा.
सपा नेता ने कहा कि देश के इतिहास में ये नारा ‘निकृष्टतम-नारे’ के रूप में दर्ज होगा और उनके राजनीतिक पतन के अंतिम अध्याय के रूप में आख़िरी ‘शाब्दिक कील-सा’ साबित होगा. देश और समाज के हित में उन्हें अपनी नकारात्मक नज़र और नज़रिये के साथ अपने सलाहकार भी बदल लेने चाहिए, ये उनके लिए भी हितकर साबित होगा. एक अच्छी सलाह ये है कि ‘पालें तो अच्छे विचार पालें’ और आस्तीनों को खुला रखें, साथ ही बाँहों को भी, इसी में उनकी भलाई है. सकारात्मक समाज कहे आज का, नहीं चाहिए भाजपा!
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