उत्तराखंड को देवभूमि भी कहा जाता है. यहां के कण-कण में आध्यात्म और संस्कृति रची-बसी है. देवभूमि उत्तराखंड की सांस्कृतिक पहचान मेले से भी है. उत्तरकाशी जनपद के सीमांत ब्लॉक भटवाड़ी के पर्यटन गांव रैथल में सेल्कू मेले का आयोजन किया.
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हेमकान्त नौटियाल/उत्तरकाशी: उत्तराखंड को देवभूमि भी कहा जाता है. यहां के कण-कण में आध्यात्म और संस्कृति रची-बसी है. देवभूमि उत्तराखंड की सांस्कृतिक पहचान मेले से भी है. उत्तरकाशी जनपद के सीमांत ब्लॉक भटवाड़ी के पर्यटन गांव रैथल में सेल्कू मेले का आयोजन किया. इस अवसर पर मां जगदंबा मंदिर चौक को फूलों से सजाया गया जिस पर देवता की डोली ने नृत्य किया. भाद्रपद को मां जगदंबा प्रांगण में समेश्वर सेल्कू मेला मनाया जाता है.पुष्पों की पूजा-अर्चना किए जाने के बाद सोमेश्वर देवता की डोली इन फूलों के ऊपर नृत्य करती है. वहीं ग्रामीण देवता की डोली के साथ रासो, तांदी नृत्य किया जाता है.
दुर्लभ फूलों की प्रदर्शनी
नृत्य व सांस्कृतिक कार्यक्रमों के बाद देवता के प्रसाद के रूप में इन फूलों को ग्रामीणों व श्रद्धालुओं में बांटा जाता है. क्षेत्र के आराध्य देवता सोमेश्वर महादेव और मां जगदंबा की पूजा अर्चना के बाद बुग्यालों से लाये गए दुर्लभ पुष्पों की प्रदर्शनी लगाई गई. सेल्कू मेले में 13 हजार मीटर ऊंचे बुग्यालों से ग्रामीण दुर्लभ पुष्पों को लाते हैं. मंदिर परिसर में दुर्लभ पुष्प सजाए जाते हैं. इन दुर्लभ पुष्पों को ग्रामीण देव पुष्प मानते है. सोमेश्वर देवता और पुजारी के द्वारा पुष्पों का पूजन करने के बाद परिक्रमा की जाती है. यही पुष्प आशीर्वाद के रूप में ग्रामीणों एवं अतिथियों को दिए जाते हैं.
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इस अवसर पर ग्रामीण भगवान सोमेश्वर मां जगदंबा से क्षेत्र की सुख समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं. और उसके बाद मेले में आये ग्रामीण देव डोली संग जमकर रासों-तांदी नृत्य कर झूमते है. सेल्कू मेले के बाद ग्रामीण खेती बाड़ी के कार्यों में व्यस्त हो जाते हैं.