Sonbhadra News: गोवर्धन पूजा कराने वाले पतिवाह बाबा ने इस बार भी खौलती हुई खीर से स्नान कर पूजा-अर्चना कराई.
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अंशुमान पांडेय/सोनभद्र: वर्षों से चली आ रही परंपरागत तरीके से सोनभद्र में गोवर्धन पूजा की गई. इस पूजा को देखने के लिए हजारों लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी. इस आयोजन में पूजा कराने वाले पतिवाह बाबा ने खौलती हुई खीर से स्नान कर पूजा-अर्चना कराई. इतना ही नहीं बाबा हवन कुंड में भी बैठ गए और पूजा में शामिल लोगों के हाथों और आंखों पर खौलती हुई खीर डाल दी.
लोगों का कहना है कि इस पूजा में इतनी शक्ति है कि इसके बाद भी लोगों के आंख और हाथ नहीं जलते. बात यहीं खत्म नहीं होती है. पतिवाह बाबा के द्वारा सालभर की भविष्यवाणी भी की जाती है. जिसमें बताया गया कि चैत महीने से जेठ तक कोरोना जैसी ही किसी बीमारी से पूरा देश ग्रसित रहेगा. पतिवाह बाबा ने यह भी भविष्यवाणी की कि भारत और पाकिस्तान का युद्ध होगा, लेकिन इसमें अभी समय है.
बता दें, सोनभद्र में दीपावली के दूसरे दिन कलेक्ट्रेट से महज कुछ दूरी पर वीर लोरिक स्मारक पर प्रत्येक वर्ष गोवर्धन पूजा का आयोजन किया जाता है. इस गोवर्धन पूजा में भगवान कृष्ण की महत्ता को बताया जाता है. लेकिन इस पूजा को कराने वाले पतिवाह बाबा के द्वारा तमाम ऐसे करतब किए जाते हैं जिसको देखकर लोगों की आंखें खुली रह जाती हैं.
यहां पूजा कराने वाले पति वाह बाबा खोलते हुए खीर से स्नान करते हैं, इतना ही नहीं पूजा में शामिल होने वाले लोगों के हाथों पर और आंखों में खोलता हुआ खीर डाल देते हैं. पूजा में शामिल होने वाले लोगों का भी कहना है कि भगवान कृष्ण के प्रताप और बाबा की वजह से यह खीर न तो आंख में जलती है और ना ही हाथ में.
इतना ही नहीं जलते हुए हवन कुंड में बाबा बैठ जाते हैं और बताते हैं कि यह भगवान कृष्ण के पूजा का प्रताप है कि इससे कोई भी व्यक्ति नहीं जलता है. इस पूजा के दौरान पति वाह बाबा के द्वारा पूरे 1 वर्ष की भविष्यवाणी भी की जाती है. इस भविष्यवाणी में उन्होंने बताया कि प्रत्येक महीने छिटपुट बरसात होगी, जबकि आषाढ़ महीने में अच्छी बरसात होगी. जिससे किसान अपनी खेती कर सकेंगे. बाबा की इन चमत्कारी क्रियाकलाप के वजह से लोगों में काफी कौतूहल होता है, यही कारण है कि यहां पर भीड़ इकट्ठी होती है.
बाबा ने मीडिया से बात करते हुए बताया कि यह परंपरागत तौर पर द्वापर से ही पूजा होती आ रही है. पहले यह गोकुल नंद गांव मथुरा वृंदावन में पूजा होती थी. इसके बाद जहां भी ग्वाल-बाल गए, इस पूजा का विस्तार होता गया.