मुरादाबाद ग्रामीण विधानसभा सीट मुस्लिम बाहुल्य मानी जाती है. यहां 55 प्रतिशत मुस्लिम और 45 प्रतिशत हिन्दू मतदाता हैं. मुस्लिम मतदाताओं में अंसारी मतदाताओं की तादात ज्यादा है, वहीं हिन्दू मतदाताओं में वैश्य और ठाकुर मतदाता प्रभावी भूमिका में हैं.
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मुरादाबाद: मुरादाबाद ग्रामीण विधानसभा सीट 1957 में अस्तित्व में आई. तब से आज तक इस सीट पर निर्दलीय से लेकर राजनीति के बड़े-बड़े धुरंधर चुनाव लड़ चुके हैं और जीतकर उत्तर प्रदेश विधानसभा में पहुंचे हैं. यह सीट मुरादाबाद लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है और अनारक्षित है. यानी किसी भी जाति और धर्म से ताल्लुक रखने वाला उम्मीदवार यहां से अपनी किस्मत आजमां सकता है. साल 2012 के चुनाव से पहले हुए परिसीमन के बाद इस सीट का भौगोलिक समीकरण बदल गया है.मुरादाबाद शहर का एक बड़ा हिस्सा इस विधानसभा सीट में शामिल होने के बाद इस सीट के मुद्दे और समस्याएं भी अलग हुई हैं.
मुरादाबाद रूरल असेंबली सीट पर धार्मिक-जातिगत समीकरण
मुरादाबाद लोकसभा क्षेत्र के अंदर पड़ने के कारण अन्य ग्रामीण क्षेत्रों के उलट इस विधानसभा क्षेत्र के लोगों के लिए शिक्षा, चिकित्सा, सार्वजनिक परिवहन की ठीक ठाक सुविधा उपलब्ध है. मुरादाबाद ग्रामीण विधानसभा सीट मुस्लिम बाहुल्य मानी जाती है. यहां 55 प्रतिशत मुस्लिम और 45 प्रतिशत हिन्दू मतदाता हैं. मुस्लिम मतदाताओं में अंसारी मतदाताओं की तादात ज्यादा है, वहीं हिन्दू मतदाताओं में वैश्य और ठाकुर मतदाता प्रभावी भूमिका में हैं. चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार मुरादाबाद ग्रामीण विधान सभा सीट पर कुल 345451 मतदाता हैं. इनमें 188650 पुरुष जबकि 156788 महिला मतदाता हैं. चुनाव के वक्त मतों का ध्रुवीकरण ही अहम भूमिका निभाता है.
मुरादाबाद रूरल सीट का राजनीतिक इतिहास, 2017 के नतीजे
मुरादाबाद ग्रामीण विधानसभा सीट का अपना इतिहास रहा है. साल 1957 में इस सीट पर हुए विधानसभा के पहले चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी खमानी सिंह विजयी रहे. साल 1962 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के रिषत हुसैन ने बाजी मारी तो 1967 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के के. सिंह विजयी रहे. प्रजा सोशिलिस्ट पार्टी के टिकट पर रिषत हुसैन 1969 के चुनाव में मुरादाबाद ग्रामीण सीट से दूसरी बार विधायक चुने गए. साल 1974 में निर्दलीय ओमप्रकाश ने बाजी मारी तो 1977 और 1980 में निर्दलीय लड़े रिषत हुसैन विजयी रहे. इस सीट पर 1985 के चुनाव के बाद राजनीतिक समीकरण बदल गए. यहां की राजनीती पीपलसाना स्थित हक परिवार के इर्द गिर्द घूमने लगी.
लोकदल के टिकट पर 1985 में चुनाव लड़े रिजवानुल हक जीते. वह 1989 और 1991 में जनता दल के टिकट पर विजयी रहे. साल 1993 में भाजपा ने इस सीट पर अपनी जीत का खाता खोला. सुरेश प्रताप सिंह विधायक बने. फिर 1996 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर सौलत अली विधानसभा पहुंचे. वहीं 2002 में कांग्रेस के शम्मीउल्हक विजयी रहे. वर्ष 2007 में शम्मीउल्हक के भतीजे उस्मान उल हक ने बाजी मारी, लेकिन 2012 में सपा के शम्मीउल हक ने भतीजे को मात दी. शम्मीउल्हक के विधायक रहते हत्या के एक मामले में उन्हें आजीवन कारावास की सजा हुई. साल 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा प्रत्याशी हाजी इकराम कुरैशी ने भाजपा उम्मीदवार हरिओम शर्मा को 28000 से कुछ अधिक मतों से हराया.
मुरादाबाद ग्रामीण विधायक हाजी इकराम के बारे में
हाजी इकराम कुरैशी सपा के मुरादाबाद जिलाध्यक्ष रह चुके हैं. वह 2017 में पहली बार विधायक बने. विधायक के परिवार में पत्नी तनवीर और चार बच्चे हैं. साल 2017 के चुनाव में मुलायम सिंह यादव ने उम्मीदवारों की जो लिस्ट फाइनल की थी उसमें हाजी इकराम कुरैशी का नाम नहीं था. अखिलेश यादव के हस्तक्षेप के बाद उन्हें मुरादाबाद ग्रामीण सीट से सपा प्रत्याशी बनाया गया और उन्होंने जीत दर्ज की. साल 2017 के विधानसभा चुनाव के ठीक पहले मुलायम के पारिवारिक विवाद में हाजी इकराम अखिलेश के पक्ष में मजबूती से खड़े रहे, जिसका फल उन्हें असेंबली चुनाव के टिकट के रूप में मिला. हाजी इकराम कुरैशी पर 6 आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं. सपा विधायक का आरोप है कि विपक्षी पार्टी का होने के नाते उन्हें योगी सरकार से पर्याप्त सहयोग नहीं मिलता, इसलिए वह अपने निर्वाचन क्षेत्र में मनमुताबिक विकास के काम नहीं करवा पाते हैं.
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