एक बार नहीं दो बार गब्बर बने थे अमजद खान, क्या आपने देखी है 'रामगढ़ के शोले'?

ऐसे में अमजद खान को एक बार नहीं बल्कि दो बार गब्बर बनने का मौका मिला. एक तो शोले' में और दूसरी बार 'शोले' की पैरोडी फिल्म 'रामगढ़ के शोले'. अमजद खान ऊर्फ गब्बर के नाम से मशहूर इस विलेन को डार्क रोल्स का शंहशाह कहा जाता है.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Jul 27, 2022, 12:46 PM IST
  • फिल्म में इकलौते गब्बर का नाम नहीं बदला गया
  • बसंती जयवंती और धन्नो को बन्नो टैक्सी बनाया गया
एक बार नहीं दो बार गब्बर बने थे अमजद खान, क्या आपने देखी है 'रामगढ़ के शोले'?

नई दिल्ली: 15 अगस्त 1975 का वो दिन थिएटर्स के बाहर लंबी कतारें थीं. सारे सिनेमाघर हाउसफुल जा रहे थे. बॉलीवुड के इतिहास की बेहतरीन फिल्मों में से एक 'शोले' (Sholay) पर्दे पर रिलीज होने जा रही थी. इस फिल्म ने एक्टर्स (Sholay Starcast) की किस्मत के सितारों को जितना चमकाया उससे कहीं ज्यादा विलेन को हर घर में फेमस कर दिया था. ऐसे में गब्बर, कालिया और सांभा मानो हीरो से बढ़कर हो गए. जैसे जय-वीरू की जोड़ी वैसी गब्बर, कालिया और सांभा की.

ऐसे में अमजद खान को एक बार नहीं बल्कि दो बार गब्बर बनने का मौका मिला. एक तो शोले में और दूसरी बार शोले की पैरोडी फिल्म रामगढ़ के शोले. अमजद खान ऊर्फ गब्बर के नाम से मशहूर इस विलेन को डार्क रोल्स का शंहशाह कहा जाता है. अगर शोले देख चुके हैं तो रामगढ़ के शोले भी देख लीजिए.

कैरेक्टर का बदला हुआ नाम

इस फिल्म में इकलौते गब्बर ऐसे हैं जिसमें उनका नाम नहीं बदला गया. इसके अलावा सांभा का लांबा, कालिया की जगह गौरिया, प्यारी बसंती का जयवंती, हमारी धन्नो बन गई टैक्सी बन्नो, गब्बर की जगह राज होता है झब्बर का जिसे पहले ही सीन में टपका दिया जाता है. बाकि फिल्म में रामू काका इकलौते ऐसे हैं जो पर्दे पर दिखाई देते हैं और दूसरे सीन में ही भगवान को प्यारे हो जाते हैं.

फेमस डायलॉग्स किए गए कॉपी

फिल्म में झब्बर गब्बर के फेमस डायलॉग 'जब कोसों-कोसों दूर कोई बच्चा रोता है तो मां कहती है सोजा वर्ना झब्बर आ जाएगा. 'फिल्म में जब गुंडे रामगढ़ से हारकर लौटते हैं तो गब्बर कहता है कि अब तेरा क्या होगा गौरिया. ऐसे में गौरिया कहता है मालिक मैंने आपकी चाय पी है तो ऐसे में गब्बर कहता है तो अब ये बियर पी. बता दें बियर में जहर होता है.

आपको अंग्रजों के जमाने के जेलर वाला डायलॉग तो याद होगा ही, फिल्म में इसका उलटा कर दिया गया-'हम अंग्रेजों के जमाने के जेलर के भाई हैं'. यहां तक की जयवंती जो बसंती की कॉपी है वो बन्नो नाम की टैक्सी चलाती है और अपने ग्राहकों को हूबहू वैसी ही चटर-पटर में फंसाती है.

गानों की सस्ती पैरोडी

आपको जय वीरू की दोस्ती याद होगी. दोनों का याराना किसी से छुपा नहीं है. दोनों ने दोस्ती की एक मिसाल पेश की थी ऐसे में इस फिल्म में चार डुप्लीकेट को कास्ट किया गया. जिसमें अमिताभ बच्चन, अनिल कपूर, देवानंद और गोविंदा के डुप्लीकेट लोगों को उल्लू बना शहर छोड़कर भागते हैं और गाना आता है 'दोस्ती तेरी मेरी देस्ती'. इस गाने को गाया था कुमार सानु ने और संगीत दिया था अनु मलिक ने.

सरप्राइज एलिमेंट

अब गब्बर की बेटी भी है जो लंदन से वापिस आई है और जिसे पता नहीं है कि उसके पिता गुंडे है. गब्बर की बेटी को गोविंदा से प्यार हो जाता है. ठाकुर फिल्म में नहीं है बल्कि जयवंती ही सबको मोटिवेट करती है. चारों मेन हीरो बसंती की ही तरह गब्बर के सामने नाचते हैं. चारों की अपनी अपनी गर्लफ्रेंड भी होती है जो रामगढ़ में उन्हें मिलती है. फिल्म में अनिल कपूर के लिए माधुरी की एक डुप्लीकेट भी होती हैं. जो टंकी पर चढ़कर नकली अनिल कपूर के लिए सुसाइड करने की कोशिश करती हैं.

कुल मिलाकर फिल्म के हर सीन पर आपको शोले की अलग छाप देखने को मिलेगी. गब्बर यूं तो इस फिल्म में अपने खूंखार अवतार में ही दिखाई दिया लेकिन उसमें शोले जैसी बात नहीं थी. फिल्म 1991 में रिलीज हुई थी और फिल्म को अजीत दिवानी ने डायरेक्ट किया था. अमजद खान को आज भी गब्बर के तौर याद किया जाता है. 27 जुलाई 1992 में महज 51 साल की उम्र में अमजद पर्दे पर अपनी अमिट छाप छोड़ सबको अलविदा कह गए.

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