Kavita Krishnamurthy Birthday: 80 के दशक में अलका याग्निक, लता मंगेशकर और आशा भोसले का एकछत्र राज हुआ करता था. इनके अलावा फिल्मों में किसी और सिंगर की कल्पना भी नहीं की जाती थी. इंडस्ट्री में नए टैलेंट का इस्तेमाल तो होता लेकिन उन्हें ना ही क्रेडिट मिलता ना ही पहचान. वो बस एक डेमो बनकर रह जाते. ऐसा ही कुछ कविता कृष्णमूर्ति के साथ हुआ. कविता कृष्णामूर्ति की सुरीली आवाज काफी लंबे समय तक लोगों तक पहुंच ही नहीं पाई. उनकी आवाज को शूटिंग रिहर्सल में तो यूज किया जाता लेकिन फाइनल आउटकम में आवाज किसी और की होती.
डबिंग का सिलसिला (Kavita Krishnamurthy Songs)
कविता कृष्णमूर्ति ने अपने एक इंटरव्यू में बताया था कि 1979-1980 में दौर ऐसा था कि स्टूडियो में कैसेट पर रिकॉर्डिंग की जाती. एक गलती यानी दोबारा से सारा गाना रिकॉर्ड. ऐसे में किसी एक सिंगर को बतौर डेमो गाना गवाया जाता और उसे शूटिंग के लिए एडवांस में भेज दिया जाता. बाद में इस गाने को किसी भी बड़े सिंगर की आवाज में गवाकर फाइनल एल्बम रिलीज की जाती. कविता कृष्णामूर्ति के साथ काफी लंबे समय तक ये सिलसिला चला. उनकी आवाज रिकॉर्ड होती लेकिन बाद में उसे लता मंगेशकर से डब करवा लिया जाता.
कैसा था स्ट्रगल
जब कविता जी से पूछा गया कि ना उन्हें पहचान मिलती ना वो प्यार मिलता तो ऐसे में वो स्ट्रगल का दौर कैसा था? कविता ने इसका जो जवाब दिया उसे सुनकर आपका भी चेहरा खिल जाएगा. कहती हैं कि मैंने इसे कभी स्ट्रगल नहीं माना क्योंकि मुझे ये काम लक्ष्मीकंत-प्यारेलाल जैसे दिग्गज संगीतकारों के साथ करना था. उनका बहुत बड़ा ऑर्केस्ट्रा हुआ करता था जिसमें कभी 80 तो कभी 100 लोग हुआ करते.
बेहद शर्मीली थीं कविता
कविता कृष्णमूर्ति ने खुलासा किया कि जब वो दिल्ली से इंडस्ट्री में आईं तो गानों की कुछ बारीकियां जैसे डायलॉग्स बोलना, नकली हंसी, शरारत वो वहीं सीख पाई. वो इतनी शर्मीली थीं कि 100 लोगों के सामने गाने के समय काफी नर्वस रहतीं. उनके लिए ये एक ट्रेनिंग ग्राउंड जैसा था. 'लता जी मेरे लिए लिए आइकॉन जैसी थीं और मुझे इंडस्ट्री में इतने सारे गुरु मिले जिसके लिए मैं आभारी हूं.'
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