नई दिल्ली. देश में लोकसभा के चुनाव अगले साल होने हैं लेकिन इसकी नेताओं ने इसकी बिसात अभी से बिछाना शुरू कर दिया है.दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन से मुलाकात की है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मुलाकात में लोकसभा चुनाव में विपक्षी राज्य सरकारों के बीच बेहतर समन्वय को लेकर दोनों नेताओं के बीच चर्चा हुई. इस मुलाकात से इतर गैर-बीजेपी और गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों की मुलाकात का सिलसिला पिछले साल से ही जारी है. इनमें बिहार के सीएम नीतीश कुमार, तेलंगाना सीएम केसीआर और तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन शामिल हैं. क्या ये नेता 2024 में क्षेत्रीय मुद्दों के आधार पर बीजेपी के खिलाफ कोई बड़ा नैरेटिव तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं जिससे केंद्र में एक विकल्प दिया जा सके?
तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर तो अपनी पार्टी का नाम बदलकर भारत राष्ट्र समिति रख चुके हैं. उन्होंने अपनी पार्टी की राष्ट्रीय महात्वाकांक्षाएं सार्वजनिक कर दी हैं. जनवरी महीने में उन्होंने अपनी ताकत दिखाने के लिए तेलंगाना में मेगा शो भी किया था जिसमें दिल्ली, पंजाब और केरल के मुख्यमंत्रियों को बुलाया था. समाजवादी पार्टी के चीफ अखिलेश यादव भी वहां मौजूद रहे थे. यही नहीं, केसीआर बीते एक साल लगातार विपक्षी नेताओं से मिलकर मजबूत गोलबंदी की कोशिश में लगे हुए हैं.
कई नेताओं से मुलाकात कर चुके हैं केसीआर
केसीआर ने बिहार सीएम नीतीश कुमार, राजद सुप्रीमो लालू यादव, दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल, पश्चिम बंगाल सीएम ममता बनर्जी, तमिलनाडु सीएम एमके स्टालिन से मुलाकात की है.
नीतीश कुमार, केजरीवाल, सोरेन के प्रयास
एनडीए से बाहर आने के बाद नीतीश कुमार भी कुछ इसी तरीके के प्रयास कर रहे हैं. अरविंद केजरीवाल और एमके स्टालिन भी इस रणनीति से अछूते नहीं है. हालांकि भले ही इन सभी रणनीतियों में महात्वाकांक्षा भले ही राष्ट्रीय हो लेकिन मुद्दे क्षेत्रीय ही रहेंगे.
जैसे केजरीवाल-सोरेन की मीटिंग की बात करें तो इसमें गैर-एनडीए शासित विपक्षी राज्यों की सामाज कल्याण योजनाओं के जरिए समन्वय पर चर्चा हुई. रिपोर्ट्स के मुताबिक दोनों नेताओं में यह चर्चा हुई कि कैसे विपक्षी राज्यों में चल रही इन योजनाओं के आधार पर समन्वय स्थापित किया जा सकता है.
हालांकि केजरीवाल और सोरेन दोनों ने ही मीडिया से इस बैठक को सिर्फ शिष्टाचार बैठक बताया और कहा कि हर चीज को 2024 से लिंक नहीं किया जा सकता है. विपक्षी नेताओं की इन बैठकों से यह भी दिख रहा है कि एक वैकल्पिक गठबंधन के लिए अब निर्भरता कांग्रेस पर नहीं है.
कैसी प्रतिक्रिया देंगे वोटर
एक्सपर्ट्स के मुताबिक बीते दो लोकसभा चुनाव में विपक्षी मुख्यमंत्रियो ने कोई मजबूत स्टैंड नहीं लिया है. यह भी माना जाता है कि लोकसभा चुनाव में क्षेत्रीय मुद्दों का उतना असर भी नहीं होता है जैसे राज्य के चुनाव में होता है. लेकिन इन सबके बीच अगर ये क्षेत्रीय नेता एक ऐसा गठबंधन तैयार करते हैं जिसमें क्षेत्रीय मुद्दों को प्राथमिकता दी जाए तो वोटर्स की प्रतिक्रिया देखने लायक होगी.
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