रांची. साल 2024 झारखंड में दो नेताओं के लिए एक अहम सवाल के जवाब का वर्ष है. यह साल हेमंत सोरेन और बाबू लाल मरांडी के लिए निर्णायक साल साबित होने जा रहा है. दरअसल 2024 में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को सियासी और कानूनी मोर्चों पर जिन कठिन इम्तिहानों से गुजरना है, उनके नतीजों से यह तय होगा कि उनके लिए आगे का रास्ता क्या है?
वहीं भारतीय जनता पार्टी ने झारखंड के पहले मुख्यमंत्री रहे बाबूलाल मरांडी को राज्य में खोई हुई सत्ता लौटाने की जंग का सेनापतित्व जिस भरोसे के साथ सौंपा है, उस पर वह कितने खरे उतर पाते हैं और इसके उनका आगे उनका राजनीतिक करियर क्या होगा? यह बात भी साल 2024 में साबित हो जाएगी.
एक समाचार एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक झारखंड में हेमंत सोरेन गैर भाजपाई राजनीति की सबसे बड़ी धुरी तो हैं ही, आदिवासियों के सबसे बड़े नेता के रूप में भी स्थापित हैं. 2019 के विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा ने राज्य की 82 सदस्यीय विधानसभा में 30 सीटें हासिल की थी और सहयोगी दलों के साथ मिलकर सरकार बनाई थी.
मुश्किलभरा हो सकता है पांचवां साल
सरकार ने चार साल पूरे कर लिए हैं लेकिन पांचवें साल की शुरुआत के साथ ही उन्हें ईडी की संभावित 'बड़ी कार्रवाई' का सामना करना पड़ सकता है. हालांकि हेमंत सोरेन कह चुके हैं-विपक्षी पार्टियां मुझे जेल भिजवाने और हमारी सरकार को गिराने की साजिश शुरू से रच रही हैं. लेकिन, जेल का भय दिखाकर मुझ जैसे झारखंडी को कोई झुका नहीं सकता.
कई फैसले ले रहे हैं हेमंत
2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए तैयार दिख रहे हेमंत सोरेन आदिवासियों-मूलवासियों को साधने के लिए लगातार कई फैसले ले रहे हैं. लेकिन, इन तमाम बातों के बावजूद 2024 के विधानसभा चुनाव के बाद राज्य की सत्ता में दुबारा वापसी हेमंत सोरेन के लिए कतई आसान नहीं है. बीजेपी कई मुद्दों पर सोरेन सरकार को लगातार घेर रही है.
केंद्र ने भी लॉन्च की कई योजनाएं
वहीं केंद्र सरकार ने राज्य के आदिवासी वोटरों को लुभाने के लिए लगातार कई योजनाएं लॉन्च की हैं. पार्टी न हेमंत सोरेन के मुकाबले के लिए राज्य में बाबूलाल मरांडी को सबसे बड़े आदिवासी चेहरे के तौर पर पेश किया है. 2024 की चुनावी रणनीति के मद्देनजर उन्हें पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी गई है. राज्य में लोकसभा की 14 में से 12 सीटों पर फिलहाल एनडीए का कब्जा है. इस बार पार्टी ने सभी 14 सीटें जीतने का लक्ष्य तय किया है. बाबूलाल की अगुवाई में बीजेपी अगर लोकसभा चुनाव में यह लक्ष्य हासिल कर पाती है तो मुमकिन है कि नवंबर में संभावित विधानसभा चुनाव में उन्हें पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर पेश किया जाए.
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