जम्मू-कश्मीर में विरोध प्रदर्शन, सीएम उमर अब्दुल्ला के बेटे भी आंदोलन में शामिल, जानें- क्या मामला है?

Jammu Kashmir Protest: नौकरियों और प्रवेशों के लिए आरक्षण नीति इस वर्ष के शुरू में विधानसभा चुनावों से पहले उपराज्यपाल के नेतृत्व वाले प्रशासन द्वारा शुरू की गई थी. अब इसको लेकर विवाद हो रहा है.

Written by - Nitin Arora | Last Updated : Dec 23, 2024, 05:17 PM IST
  • नीति से गुस्सा और विरोध प्रदर्शन शुरू
  • अदालत के फैसले का पालन करेंगे: सीएम
जम्मू-कश्मीर में विरोध प्रदर्शन, सीएम उमर अब्दुल्ला के बेटे भी आंदोलन में शामिल, जानें- क्या मामला है?

Jammu&Kashmir reservation policy: कई राजनीतिक नेता और सैकड़ों छात्र आरक्षण नीति की समीक्षा की मांग को लेकर जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के आवास के बाहर एकत्र हुए हैं. इस नीति को इस वर्ष के प्रारंभ में उपराज्यपाल के नेतृत्व वाले प्रशासन ने लागू किया था.

छात्रों के साथ अब्दुल्ला की अपनी पार्टी (नेशनल कॉन्फ्रेंस) के सदस्य और सांसद रूहुल्लाह मेहदी भी मौजूद थे. रविवार को X पर एक पोस्ट में उन्होंने आरक्षण नीति में तर्कसंगतता की मांग को लेकर सीएम के आवासीय कार्यालय के बाहर गुपकार रोड पर विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया था.

पीडीपी के विपक्षी नेता वहीद पारा और इल्तिजा मुफ्ती के साथ-साथ अवामी इतिहाद पार्टी के नेता शेख खुर्शी (इंजीनियर राशिद के भाई) भी विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए हैं.

इन सबके अलावा, अब्दुल्ला के बेटे भी मेहदी और छात्रों के साथ शामिल होने के लिए बाहर निकल आए.

नीति क्या है?
इस साल की शुरुआत में विधानसभा चुनावों से पहले एलजी मनोज सिन्हा के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा शुरू की गई नीति में नौकरियों और दाखिलों में सामान्य वर्ग के लिए आरक्षण प्रतिशत कम कर दिया गया और आरक्षित श्रेणियों के लिए बढ़ा दिया गया.

तत्कालीन प्रशासन ने पहाड़ी और तीन अन्य जनजातियों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण को मंजूरी दी थी, जिससे अनुसूचित जनजाति (एसटी) श्रेणी के तहत कुल आरक्षण 20 प्रतिशत हो गया.

सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग (SEBC) आयोग की सिफारिश के अनुसार ओबीसी की सूची में 15 नई जातियों को जोड़ने के अलावा, अन्य पिछड़ा वर्ग (OBCs) को 8 प्रतिशत आरक्षण भी दिया गया. फरवरी में संसद ने बजट सत्र के दौरान पहाड़ी जातीय जनजाति, पद्दारी जनजाति, कोली और गड्डा ब्राह्मणों के लिए आरक्षण को मंजूरी दी थी.

नीति से गुस्सा और विरोध प्रदर्शन शुरू  
यह आरक्षण नीति राजनेताओं और छात्रों दोनों को पसंद नहीं आई. घाटी में इस नीति की समीक्षा और इसे वापस लेने की मांग उठ रही है. हालांकि, एनसी सांसद रूहुल्ला मेहदी ने छात्रों से नवंबर में उनके विरोध में शामिल होने का वादा किया था, लेकिन उन्होंने स्पष्ट किया कि नई सरकार द्वारा आरक्षण नीति पर कोई कार्रवाई न करने का कारण नवनिर्वाचित उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली सरकार और एलजी सिन्हा के बीच सत्ता के हस्तांतरण को लेकर भ्रम की स्थिति है,

जम्मू-कश्मीर सरकार ने नीति की समीक्षा के लिए पैनल बनाया
10 दिसंबर को, जम्मू-कश्मीर सरकार ने नौकरियों और दाखिलों में आरक्षण नीति की समीक्षा के लिए तीन सदस्यीय पैनल का गठन किया.

इस पैनल में स्वास्थ्य मंत्री सकीना इटू, वन मंत्री जावेद अहमद राणा और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री सतीश शर्मा शामिल हैं.

अभी तक समिति द्वारा अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की गई है.

दो दिन बाद, जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय ने आरक्षण नीति को चुनौती देने वाली एक नई याचिका पर सुनवाई करते हुए सरकार से तीन सप्ताह की समयावधि के भीतर जवाब मांगा. वहीं, अदालत ने पिछली याचिका को हाल की याचिका के साथ जोड़ दिया.

अदालत के फैसले का पालन करेंगे: सीएम
मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने रविवार को कहा कि उनकी सरकार ने आरक्षण नीति की समीक्षा के लिए एक समिति गठित की है, लेकिन वह इस मामले में अदालत के निर्देशों का पालन करेगी.

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