नई दिल्लीः One Nation One Election: केंद्र सरकार एक देश एक चुनाव कराने की दिशा में आगे बढ़ रही है. इसके लिए सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में कमेटी का गठन किया है. हालांकि सरकार ने इस संबंध में एक महीने पहले ही संकेत दे दिया था, जब बीजेपी के राज्यसभा सांसद किरोड़ी लाल मीणा की ओर से पूछे गए सवाल के जवाब में कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा था कि कार्मिक, लोक शिकायत, कानून और न्याय विभाग से संबंधित संसदीय समिति ने चुनाव आयोग समेत अन्य के साथ इस मुद्दे पर चर्चा कर 79वीं रिपोर्ट में एक देश एक चुनाव की बात कही है.
केंद्र सरकार ने गिनाए ये फायदे
राजस्थान से राज्यसभा सदस्य किरोड़ी लाल मीणा को 27 जुलाई को दिए गए जवाब में बताया गया कि लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने के लिए चर्चा और अन्य पहलुओं को देखने के लिए अब मामला विधि आयोग के पास है. सरकार का मानना है कि देश में एक साथ चुनाव कराने से न सिर्फ सरकारी खजाना बचेगा, बल्कि राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों का भी खर्च बचेगा.
साथ ही बार-बार होने वाले चुनावों में प्रशासनिक अमले की भी दोबारा तैनाती करनी पड़ती है. इसकी भी बचत होगी. सरकार का मत है कि एक साथ चुनाव कराने से समय और धन दोनों की बचत होगी. साथ ही बार-बार चुनाव होने से आचार संहिता लागू होती है और विकास कार्य भी प्रभावित होते हैं. एक साथ चुनाव से इससे भी छुटकारा मिलेगा.
ये हैं सरकार के सामने चुनौतियां
कानून मंत्री की ओर से दिए गए जवाब में कहा गया था कि एक साथ चुनाव कराने के लिए अनुच्छेद 83, अनुच्छेद 85, अनुच्छेद 172, अनुच्छेद 174 और अनुच्छेद 356 में संशोधन करना होगा. सभी राजनीतिक दलों के बीच सहमति हासिल करनी होगी. संविधान की संघीय व्यवस्था को देखते हुए सभी राज्य सरकारों से सहमति हासिल करनी होगी. एक साथ चुनाव कराने पर हजारों करोड़ रुपये की लागत की कई ईवीएम और वीवीपैट की जरूरत होगी. ये मशीनें 15 साल ही चल पाती हैं, ऐसे में हर 15 साल में सरकार को फिर से इन्हें बदलना होगा. साथ ही चुनाव कराने के लिए अधिक सुरक्षाबलों की भी जरूरत होगी.
इन देशों में एक साथ होते हैं चुनाव
कानून मंत्री की तरफ से बताया गया कि संसदीय समिति की 79वीं रिपोर्ट में दक्षिण अफ्रीका का उदाहरण दिया गया है. यहां राष्ट्र और राज्य विधानसभाओं के चुनाव हर पांच साल में एक साथ होते हैं जबकि निकाय चुनाव दो साल बाद होते हैं. इसी तरह स्वीडन में देश की संसद, राज्यों की विधानसभाओं और स्थानीय निकाय चुनाव एक ही तारीख पर होते हैं. यहां हर चार साल में सितंबर के दूसरे रविवार को एक साथ चुनाव होते हैं. इसी तरह ब्रिटेन में संसद का कार्यकाल फिक्स्ड टर्म पार्लियामेंट एक्ट 2011 के तहत तय होता है.
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