नई दिल्ली: Laal Topi Connection With Akhilesh Yadav: लाल रंग मिलन का प्रतीक होता है. जिनके जीवन में प्रेम-मिलन, मेल-मिलाप का अभाव होता है, वो अक्सर इस रंग के प्रति दुर्भावना रखते हैं. लाल रंग शक्ति का धारणीय रंग है, इसीलिए कई पूजनीय शक्तियों से इस रंग का सकारात्मक संबंध है. लेकिन जिन्हें अपनी शक्ति ही सबसे बड़ी लगती है वो लाल रंग को चुनौती मानते हैं. इसी संदर्भ में ये मनोवैज्ञानिक-मिथक भी प्रचलित हो चला कि इसी कारण शक्तिशाली सांड भी लाल रंग देखकर भड़कता है- ये बात यूपी के पूर्व CM और लाल टोपी पहनने वाले समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो अखिलेश यादव ने कही है. अखिलेश का ये बयान CM योगी के उस स्टेटमेंट पर पलटवार माना जा रहा है, जिसमें उन्होंने 'टोपी लाल, कारनामे काले' की बात कही थी.
PM मोदी ने लाल टोपी को बताया था 'रेड अलर्ट'
यह पहली बार नहीं है जब सपा की लाल टोपी पर किसी विपक्षी नेता ने तंज कसा है. इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी तीखा हमला बोल चुके हैं. 7 दिसंबर, 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूपी के गोरखपुर में एक रैली की. इसमें उन्होंने लाल टोपी को 'रेड अलर्ट' यानी खतरे की घंटी बताया था. तब अखिलेश ने इसका जवाब देते हुए कहा था- लाल का इंकलाब होगा, बाइस में बदलाव होगा. हालांकि, अखिलेश यादव की पार्टी सपा 2022 का विधानसभा चुनाव हार गई थी. बहरहाल, PM मोदी के इस बयान के ठीक एक दिन बाद यानी 8 दिसंबर को सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव और राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव समेत सभी सपा सांसदों ने लाल टोपी पहनकर लोकसभा की कार्यवाही में भाग लिया था.
जेपी रूस से लेकर आए 'लाल टोपी' का कांसेप्ट
साल 1948 में लाल टोपी का इस्तेमाल भारतीय राजनीति में शुरू हुआ. इस साल तक कांग्रेस में समाजवादी धड़ा हुआ करता था. जैसे- राम मनोहर लोहिया, जय प्रकाश नारायण और जेबी कृपलानी सरीखे नेता कांग्रेस में रहकर ही समाजवाद का झंडा उठाए हुए थे. इसी साल कांग्रेस ने हैवी इंडस्ट्री को आगे बढ़ाने का फैसला किया, जबकि महात्मा गांधी कॉटेज इंडस्ट्री की बात करते थे. समाजवादी धड़े के नेताओं ने कांग्रेस में रहकर इसका विरोध किया. लेकिन बात नहीं बनी तो इन्होंने सोशलिस्ट पार्टी बना ली. इस दौरान जेपी नारायण रूस गए थे, वे लौटे तो उन्होंने लाल टोपी पहनना शुरू कर दी.
क्रांतिकारियों की पसंद थी लाल टोपी
दरअसल, जेपी ने लाल रंग को क्रांति का रंग माना. क्योंकि दुनिया में जहां-जहां क्रांति हुई है, वहां के क्रांतिकारियों ने लाल रंग का इस्तेमाल किया था. यहां तक की भारत के स्वाधीनता आंदोलन के दौर में भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद ने भी इस रंग का प्रयोग किया. जेपी का ये लाल टोपी पहनने वाला स्टाइल समाजवादियों को अच्छा लगा, सभी ने इसे अडॉप्टे कर लिया.
सपा में लाल टोपी की एंट्री कैसे हुई?
सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव समाजवादी विचारधारा से प्रेरित थे. वे जेपी और लोहिया को अपना आदर्श मानते थे. साल 1992 में मुलायम ने सपा बनाई थी. जब अयोध्या में राम मंदिर और बाबरी मस्जिद विवाद बढ़ा, तब 33 समाजवादियों ने लखनऊ में ज्ञापन देकर अधिवेशन किया. इसमें सभी ने लाल टोपी पहन रखी थी. साल 1998 में मुलायम सिंह यादव ने अपनी पार्टी के सह-संगठन युवजन सभा के कार्यकर्ताओं और नेताओं को लाल टोपी पहनने का सुझाव दिया था.
अखिलेश यादव को लाल टोपी पहनना पसंद
मुलायम सिंह यादव तो खास मौकों पर ही लाल टोपी पहना करते थे, जैसे कोई बड़ी रैली या पार्टी अधिवेशन के दौरान. लेकिन अखिलेश आम मौकों पर भी लाल टोपी पहनते हैं. अखिलेश यादव ने सबसे पहले 7-8 जून, 2011 को आगरा में आयोजित सपा के 8वें राष्ट्रीय सम्मेलन में लाल टोपी पहनी थी. 2016-17 में पार्टी की कमान संभालने के बाद अखिलेश यादव ने पार्टी के नेताओं को लाल टोपी पहनने के लिए प्रोत्साहित किया. पार्टी से जुड़े संगठन जैसे लोहिया वाहिनी और यूथ ब्रिगेड को भी लाल टोपी पहनने के लिए कहा गया. ऐसे बिरले ही मौके होते हैं, जब अखिलेश बिना लाल टोपी पहने नजर आते हैं.
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