हिमालयन वायाग्रा का अस्तित्व संकट में, आई 'रेड लिस्ट' में

बहुत पुरानी और बहुत काम की इस औषधीय वनस्पति हिमालयन वायाग्रा का अस्तित्व खतरे में आ गया है, कीड़ा जड़ी नाम से जानी जाने वाली ये हिमालय की जड़ी 'रेड लिस्ट' में शामिल हो गई है..  

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Jul 18, 2020, 04:49 PM IST
    • कीड़ाजड़ी अर्थात हिमालयन वायाग्रा आई 'रेड लिस्ट' में
    • यारशागुंबा के प्राण खतरे में
    • मानवीय दोहन है कारण
    • ये कीड़ाजड़ी कैन्सर को मारती है
 हिमालयन वायाग्रा का अस्तित्व संकट में, आई 'रेड लिस्ट' में

नई दिल्ली.    हिमालयन वायाग्रा को अगर हमने खो दिया तो प्रकृति की मेडिकल शॉप में फ्री में मिलने वाली एक बड़ी काम की दवा से हम हाथ धो बैठेंगे. हिमालयन वायाग्रा को कीड़ा जड़ी के नाम से भी जाना जाता है जो कि कैंसर समेत कई गंभीर रोगों में कारगर है.

 

यारशागुंबा के प्राण खतरे में

मनुष्यों के प्राण बचाने वाली इस जड़ी के प्राण खुद ही खतरे में हैं. हिमालयन वायाग्रा को कीड़ा जड़ी भी कहते हैं और हिमालयीन राज्यों में इसे यारशागुंबा के नाम से भी जाना जाता है. यह प्राणरक्षक जड़ी उच्च हिमालयी क्षेत्र में पाई जाती है जो कि पिछले पंद्रह वर्षों अपने उपलब्धता वाले क्षेत्रों में 30 फीसदी कम पाई गई है. इस चिन्ताजनक स्थिति को ध्यान में रख कर अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) ने इसे ‘रेड लिस्ट’ में डाल दिया है.

मानवीय दोहन है कारण

बात करें हिमालयन वायाग्रा की या ऐसी अनेक दुर्लभ जड़ी-बूटियों की जो कि मानव अस्तित्व के लिये अमृत तुल्य हैं और विभिन्न रोगों की अचूक दवा के रूप में जानी जाती हैं, लगातार अपना अस्तित्व खो रही हैं. इसी कारण अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ ने ‘रेड लिस्ट’ का निर्माण किया है जिसमें ऐसी सभी दुर्लभ वनस्पतियों को शामिल किया है जिनका अस्तित्व संकट में है. ऐसी स्थिति का सीधा कारण मानव का स्वार्थपूर्ण दोहन है जो कि ऐसे पौधों और जड़ी बूटियों का अपने स्वार्थवश इस्तेमाल तो करता है किन्तु इनको जीवन नहीं देता अर्थात पेड़-पौध-वनस्पति को काटता खोदता तो है किन्तु इनको लगाता अर्थात इनका रोपण नहीं करता है.

ये कीड़ाजड़ी कैन्सर को मारती है

कैन्सर को मारने वाली इस कीड़ा जड़ी को इन्सान ने ही लगभग मार दिया है.  कई गंभीर रोगों में कारगर ये कीड़ाजड़ी समुद्रतट से साढ़े तीन हजार मीटर से अधिक ऊंचाई वाले इलाकों में पाई जाती है. भारत के अलावा यह नेपाल, चीन और भूटान में हिमालय और तिब्बत के पठारी इलाकों में और उत्तराखंड में पिथौरागढ़, चमोली और बागेश्वर जिले के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में भी पाई जाती है.

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