जानिए कौन थे संत केशवानंद भारती, जिनके मुकदमे के लिए बैठी 13 जजों की बड़ी पीठ

केरल में एडानीर या इदानीर नामक स्थान पर एक शैव मठ है. इसकी सैंकड़ों एकड़ जमीन को जब सरकार ने अधिगृहित कर लिया था. सरकार का तर्क था कि वो जमीनें लेकर आर्थिक गैर-बराबरी कम करने की कोशिश कर रही है. इस सरकारी फैसले को तब युवा संत ने चुनौती दे दी. उन्होंने इसके खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की. 

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Sep 6, 2020, 04:10 PM IST
    • इदानीर मठ का योगदान भारत की नाट्य और नृत्य परंपरा को बढ़ावा देने के लिए भी जाना जाता है.
    • करीब 1200 साल पुराने इतिहास के चलते इस मठ की काफी मान्यता है
    • स्वामी केशवनानंद भारती मठ के मौजूदा प्रमुख थे. जो कि 1961 से थे. वह 20 साल की उम्र में ही प्रमुख बन गए थे.
जानिए कौन थे संत केशवानंद भारती, जिनके मुकदमे के लिए बैठी 13 जजों की बड़ी पीठ

नई दिल्लीः साल था 1973, सुप्रीम कोर्ट में एक बड़ा फैसला संविधान के कायदों-कानून में बदलाव लाने वाला था. इस आमूल-चूल परिवर्तन में एक तरफ थी 13 जजों की सबसे बड़ी बेंच और दूसरी तरफ था एक संन्यासी. तापस वेष में सुप्रीम कोर्ट में अपने स्पष्ट तर्कों के साथ खड़ा यह साधु मूल अधिकार को चुनौती दे रहा था. 

तापस वेष में यह संन्यासी थे संत श्री केशवानंद भारती, जिनकी एक कानूनी मामसे जिसमें वह खुद और केरल सरकार आमने-सामने थे इसने उनकी अलग ही पहचान बना दी थी. 
 
क्या था वह मामला
हुआ यूं कि केरल में एडानीर या इदानीर नामक स्थान पर एक शैव मठ है. इसकी सैंकड़ों एकड़ जमीन को जब सरकार ने अधिगृहित कर लिया था. सरकार का तर्क था कि वो जमीनें लेकर आर्थिक गैर-बराबरी कम करने की कोशिश कर रही है. इस सरकारी फैसले को तब युवा संत ने चुनौती दे दी. उन्होंने इसके खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की. 

हाईकोर्ट से पक्ष में नहीं आया फैसला
साल 1970 में संत केशवानंद ने कोर्ट में एक याचिका डाली. इसके तहत अनुच्छेद 26 का हवाला देते हुए उन्होंने तर्क दिया कि मठाशीध होने के नाते उन्हें अपनी धार्मिक प्रॉपर्टी को संभालने का हक है. यहां तक कि संत ने स्थानीय और केंद्र सरकार के कथित भूमि सुधार तरीकों को भी चुनौती दी

. हालांकि वे केरल हाईकोर्ट में काम नहीं बना, तब संत केशवानंद सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए.

फिर आया वह समय, जब चली सबसे लंबी सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट में जब यह मामला पहुंचा तो कोर्ट को इस मामले में कई अलग-अलग चुनौतियां दिखीं. सुप्रीम कोर्ट में इस मामले को लेकर कई संवैधानिक सवाल दिखे. इसके बाद इस मामले को प्राथमिकता के आधार पर तरजीह दी गई. साल 1972 का आखिरी आ चुका था और तब 13 न्यायधीशों की पीठ ने 68 दिनों तक सुनवाई की. 

संसद, संविधान में एक हद तक ही बदलाव कर सकती है
हालांकि संत को यहां से भी राहत तो नहीं मिली, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने माना कि  संसद संविधान के किसी भी हिस्से में उसी हद तक बदलाव कर सकती है, जहां वे संविधान के बुनियादी ढांचे पर असर न डालें. हालांकि अदालत में स्वामी केशवानंद नहीं जीत सके थे लेकिन ये मामला आज भी मिसाल माना जाता है. तमाम अंतर्विरोधों के बावजूद यह सिद्धांत अभी भी कायम है. 

मठ का है 1200 साल पुराना इतिहास
इदानीर मठ का आदिगुरु शंकराचार्य से जुड़ा है. शंकराचार्य के शिष्य तोतकाचार्य की परंपरा में यह मठ स्थापित हुआ था. यह मठ तांत्रिक पद्धति का अनुसरण करने वाली स्मार्त भागवत परंपरा को मानता है.

करीब 1200 साल पुराने इतिहास के चलते इस मठ की काफी मान्यता है. शंकराचार्य से जुड़े होने के कारण इस मठ के प्रमुख को 'केरल का शंकराचार्य' कहा जाता है. स्वामी केशवनानंद भारती मठ के मौजूदा प्रमुख थे. जो कि 1961 से थे. वह 20 साल की उम्र में ही प्रमुख बन गए थे. 

संगीत शास्त्र को दिया बढ़ावा
इदानीर मठ का योगदान भारत की नाट्य और नृत्य परंपरा को बढ़ावा देने के लिए भी जाना जाता है.  संत होने के साथ-साथ भारती एक शास्त्रीय गायक भी थे. 15 साल तक उन्होंने यक्षगाना मेला में गायक और डायरेक्टर के तौर पर भाग लिया. उन्होंने मठ में कई साहित्यिक कार्यक्रम भी चलाया. नृत्य की परंपरा को भी बढ़ावा दिया.

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