राजस्थान के स्थानः बैशाख-जेठ में भी सावन-भादों जैसी बरसती है सहेलियों की बाड़ी

राजा संग्राम सिंह ने खुद सहेलियों की बाड़ी को डिजाइन किया और अपनी खूबसूरत रानी को यह स्मारक तोहफे में दिया. राजा यह जानते थे कि रानी को बारिश की आवाज बहुत पसंद थी इसलिए उन्होंने इसको फतेह सागर झील के किनारे पर बनाया गया था जो पानी के एक निरंतर स्रोत के रूप में काम करती है. 

Written by - Vikas Porwal | Last Updated : Sep 8, 2020, 04:49 PM IST
    • 1710 से 1734 के बीच बना यह खूबसूरत उद्यान अपनी बारिश की आवाज वाले खूबसूरत फव्वारों के लिए जाना जाता है.
    • बगीचे में लगे फव्वारे और कमल के तालाब आज भी बिना बिजली के फतेहसागर झील के पानी को खींच सकते हैं
राजस्थान के स्थानः बैशाख-जेठ में भी सावन-भादों जैसी बरसती है सहेलियों की बाड़ी

उदयपुरः राजस्थान की धरती में जहां एक ओर वीरों-वीरांगनाओं की गाथाएं घुली-मिली हैं तो दूसरी ओर राजाओं-रजवाड़ों की शानो-शौकत भी घुमंतुओं को अपनी ओर आकर्षित करती है, आवाज देकर बुलाती है. महाराजा उदय सिंह का बसाया हुआ उदयपुर ऐसी ही कई पर्यटक आकांक्षाओं को जन्म देता है, और अपनी ओर खींच लेता है. इन्हीं में से उदयपुर की शान है, सहेलिय़ों की बाड़ी. 

18वीं सदी में हुआ था सहेलियों की बाड़ी का निर्माण
सहेलियों की बाड़ी महाराणा संग्राम सिंह ने 18वीं सदी में बनवाई. 1710 से 1734 के बीच बना यह खूबसूरत उद्यान अपनी बारिश की आवाज वाले खूबसूरत फव्वारों के लिए जाना जाता है.

महाराणा ने इस बाड़ी का निर्माण विशेष तौर पर अपनी नई नवेली रानी के लिए करवाया था. रानी इस बाड़ी में अपने विवाह के पहले की सखियों संग विहार करने आती थीं. उनकी 48 सखियां यहां खूब खेलतीं और अठखेलियां करती थीं. 

फतेह सागर झील से जुड़ा है बाड़ी का कमल तालाब
राजा संग्राम सिंह ने खुद सहेलियों की बाड़ी को डिजाइन किया और अपनी खूबसूरत रानी को यह स्मारक तोहफे में दिया. राजा यह जानते थे कि रानी को बारिश की आवाज बहुत पसंद थी इसलिए उन्होंने इसको फतेह सागर झील के किनारे पर बनाया गया था जो पानी के एक निरंतर स्रोत के रूप में काम करती है.

बगीचे में लगे फव्वारे और कमल के तालाब झील के पानी को खींच सकते थे. रानी और उनकी सहेलियों ने यहां अक्सर यादगार पल बिताएं थे. 

इंग्लैंड से मंगाए गए थे फव्वारे
सहेलियों की बाड़ी राजसी उद्यान है, जिसे मैडेंस के आंगन के रूप में भी जाना जाता है. इस गार्डन में हरे-भरे लॉन, कैनोपिड वॉकिंग लेन और शानदार फव्वारे शामिल हैं. इस गार्डन का इतिहास, पारंपरिक वास्तुकला और शाही संरचना दुनिया भर से उदयपुर शहर घूमने आने वाले लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करती है.

इस बाग़ में कमल के तालाब, फ़व्वारे, संगमरमर के हाथी व अन्य पशु पक्षी बने हुए हैं. इनकी सजीव बनावट बरबस ही अपनी ओर ध्यान खींचती है. 

बारिश की आवाज करता है सावन-भादों तालाब
उद्यान का मुख्य आकर्षण यहां के फ़व्वारे हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि इन्हें इंग्लैण्ड से मंगवाया गया था. आज तक इस बगीचे में लगे फव्वारे को पानी खींचने के लिए किसी बिजली होने की जरूरत नहीं. वे प्राचीन इंजीनियरिंग के अनुसार काम करते हैं और आज भी फतेह सागर झील से पानी खींचते हैं.

यह इस उद्यान का प्रमुख आकर्षण भी है. इस बाग के एक स्थल का नाम सावन-भादों है. नाम के अनुरूप ही यह हमेशा बरसते पानी से भरा होता है, जिसके फव्वारों की आवाज भी बारिश की ही तरह है. तालाब के किनारे-किनारे लगे हाथियों को इस तरह जड़ा गया है कि उनकी सूंड़ से होता हुआ पानी एक निश्चित आकर का वलय बनाते हए एक साथ ताल के मध्य में ही गिरता है. 

बाड़ी में खिले हैं कई तरह के फूल
बाड़ी में कई तरह के फूल, मोरपंख के बड़े-बड़े वृक्ष, गुलाब की कई किस्में, मौसमी फूल, डहेलिया के अलग-अलग रंग और पौधों के भिन्न-भिन्न आकार बरबस ही मन मोह लेते हैं. शाम के समय यहां विहार करने जाना काफी सुखद अहसास कराता है. अभी से तय कर लीजिए,

कोरोना काल के बाद जरूर सहेलियों की बाड़ी घूम आइए. श्रावण मास की अमावस्या के अवसर पर इस बाड़ी में नगर निवासियों का एक बड़ा मेला भी लगता है.

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