World Water Day 2023: पानी – एक ऐसी नियामत जो हमें कुदरत से मिलती है, हम पैसे देकर पानी खरीद तो सकते हैं लेकिन पानी का निर्माण नहीं कर सकते और यही बात हम सबको समझने की जरुरत है. जिस तेजी से दुनिया पानी की खपत कर रही है – धरती सूख रही है – जल्द ही हम प्यासे होंगे और हम में से बहुत लोगों को दो बूंद पानी के लिए तरसना पड़ेगा. संयुक्त राष्ट्र की लेटेस्ट रिपोर्ट के मुताबिक धरती तेजी से सूख रही है और अरबों लोग गंदा पानी पीने को मजबूर हैं.
200 करोड़ लोग एक महीने पानी की किल्लत से जूझते हैं
विश्व जल दिवस पर संयुक्त राष्ट्र ने ताजा रिपोर्ट जारी की है जिसके अनुसार जहां दुनिया के 26% लोगों को साफ पानी नसीब नहीं है. तो वहीं पर दुनिया के 46% लोगों को सैनिटेशन के लिए पानी नहीं मिल पाता. इतना ही नहीं दुनिया में करीब 200 करोड़ लोग 12 में एक महीने पानी की किल्लत का सामना करते हैं. दुनिया में अभी जितने लोग पानी की कमी से जूझ रहे हैं, जल्द ही वो आंकड़ा भी आसमान छूने वाला है.
पिछले 40 सालों में हर साल बढ़ रही है पानी की खपत
यूएन की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले 40 सालों में विश्व स्तर पर पानी का उपयोग लगभग 1% की दर से हर साल बढ़ रहा है. दुनिया की आबादी का औसतन 10% हिस्सा उच्च या पानी की गंभीर कमी वाले देशो मे रहता है. 2016 में 93 करोड़ लोगों ने पानी की कमी का सामना किया लेकिन 2050 में 240 करोड़ लोग ऐसे होंगे जिन्हें पीने के पानी के लिए संघर्ष करना पड़ेगा. आज की स्थिति में अरबों लोगों को दूषित पानी पानी पड़ रहा है.
जानें क्या है साफ पानी का पैमाना
पृथ्वी पर पानी लगातार घटता जा रहा है - ये सच्चाई हम सबको मालूम है. लेकिन अभी हममें से कोई भी इसे लेकर गंभीर नहीं है - क्योंकि हम अपने स्तर पर पानी को बचाने के लिए कुछ कर नहीं रहे हैं. ठीक उसी तरह - जिस तरह हम ये जानते हैं कि जो पानी हम रोज़ाना पी रहे हैं उसके 100 प्रतिशत शुद्ध होने की कोई गारंटी नहीं है. लेकिन हम इसकी परवाह नहीं करते. हम यही सोचकर संतुष्ट हैं कि पीने के लिए पानी मिल तो रहा है.
सबसे पहले हम आपको बताते हैं कि साफ पानी का पैमाना क्या है. ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्डस (Bureau of Indian Standards) के मुताबिक अगर पानी में टीडीएस यानी Total Dissolved Solids की मात्रा प्रति लीटर में 500 मिलीग्राम से कम है तो ये पानी पीने योग्य है. लेकिन ये मात्रा 250 से कम नहीं होनी चाहिए.
WHO के लिये अलग है साफ पानी का पैमाना
वहीं WHO यानी विश्व स्वास्थय संगठन के मुताबिक प्रति लीटर पानी में टीडीएस यानी Total dissolved solids की मात्रा 300 से कम होनी चाहिए. एक लीटर पानी में में 300 से 600 मिलीग्राम (TDS) टीडीएस को भी पीने योग्य मान लिया जाता है. 600 से 900 टीडीएस (TDS) का पानी ठीक ठाक यानी काम-चलाऊ माना जाता है. अगर एक लीटर पानी में (TDS) टीडीएस की मात्रा 900 से ज्यादा है तो वो पानी पीने योग्य नहीं माना जाता. अगर पानी में टीडीएस 100 से कम हो तो उसमें चीजें तेज़ी से घुल सकती हैं. प्लास्टिक की बोतल में बंद पानी में कम टीडीएस हो तो उसमें प्लास्टिक के कण घुलने का खतरा भी रहता है.
कैसे जानें पीने लायक है या नहीं पानी
पीने के पानी के मामले में भारत दोहरी मार से जूझ रहा है. एक तरफ देश में जल संकट बढ़ता जा रहा है तो दूसरी तरफ पानी को साफ करने की प्रक्किया में पानी बर्बाद हो रहा है. जुलाई 2020 में NGT ने आरओ की वजह से हो रही पानी की बर्बादी को रोकने के उद्देश्य से कड़े फैसले लिए. (National Green Tribunal) नेशनल ग्रीन ट्राइब्य़ूनल यानी (NGT) एनजीटी ने पर्यावरण मंत्रालय को निर्देश दिए थे कि जिन जगहों पर पानी में (TDS) टीडीएस की मात्रा 500 एमजी प्रति लीटर से कम हैं, वहां (RO) आरओ के इस्तेमाल पर बैन लगाया जाए और लोगों को डीमिनरल्जाइज़ड पानी के नुकसान के प्रति जागरुक भी किया जाए.
आरओ के पानी को फिर से किया जाए इस्तेमाल
NGT ने ये भी कहा कि आरओ से बर्बाद होने वाले 60 से 75 फीसदी पानी को रिकवर किया जाए और उसे धुलाई सफाई जैसे कामों में इस्तेमाल किया जाए. आरओ से मिलने वाली पानी की क्वालिटी पर रिसर्च करने के लिए भी मंत्रालय को निर्देश देने को कहा गया. आर ओ निर्माताओं से कहा गया कि वो अपने प्रॉडक्ट पर ये लिखें कि आरओ का इस्तेमाल तभी करें जब पानी में टीडीएस की मात्रा 500 से ऊपर हो.
अदालत के इस फैसले से ये स्प्ष्ट है कि आरओ से पानी की बर्बादी भी हो रही है – और उसके बाद जो साफ पानी आपको मिल रहा है उसमें से मिनरल्स निकल जाने का खतरा भी बना हुआ है. यानी वो पानी आपको साफ तो लग रहा है. लेकिन ये पानी आपके लिए सेहतमंद ही हो, ये जरुरी नहीं है.
आखिर कैसे दूषित हो रहा है पानी
आसान भाषा में पानी स्वादरहित,गंधरहित और रंगरहित है तो वो सही साफ और शुदृद पानी है. लेकिन मीठा करने के चक्कर में कई आर ओ में टीडीएस का स्तर कम सेट किया जाता है. पानी में टीडीएस का लेवल अगर 100 से कम है तो इसमें चीजें तेज़ी से घुल सकती हैं. अगर प्लास्टिक की बोतल में पानी पी रहे हैं तो ऐसे पानी में प्लास्टिक के कण भी घुल सकते हैं. ये कई बीमारियों की वजह बन सकता है. इसलिए आप अपने आर ओ के टीडीएस को 350 पर सेट करें. अगर नल का पानी साफ यानी ठीक ठाक आता है तो स्टील के बर्तन में पानी को उबालकर और उसे ठंडा करके भी पीने योग्य बना सकते हैं. आप घड़े का प्रयोग भी कर सकते हैं. घड़ा प्राकृतिक तरीके से पानी को ठंडा भी रखता है और उसे फिल्टर करने का काम भी करता है.
कैसी हो पानी की खुराक
किसे कितना पानी पीना चाहिए - ये ज़रुरत मौसम और आपके काम के हिसाब से तय होती है. लेकिन मोटे तौर पर दिन भर में 2 लीटर पानी पीने को पर्याप्त माना जाता है. कम पानी पीने से किडनी स्टोन्स, कब्ज़ और डीहाइड्रेशन की समस्या हो सकती है. हालांकि ज्यादा पानी पीने से भी लोगों को कई बीमारियां हो सकती हैं. इसलिए अब डॉक्टर यही सलाह देते हैं कि अपनी प्यास के मुताबिक पानी पिएं. यही सबसे सही पैमाना है. खाने खाने के बाद पानी ना पीने का फॉर्मूला आयुर्वेद के सिद्दांतों पर आधारित है. एलौपेथी के डॉक्टर इस नियम को लेकर एकमत नहीं है. उनके मुताबिक इंसान स्वयं अपनी जरुरत पहचान कर ये नियम बना सकता है.
पीने के पानी को लेकर भारत में है इतनी समस्याएं
भारत में केवल 21 प्रतिशत घरों में (Piped Water Supply) पाइप्ड वाटर सप्लाई है. यानी पांच में से केवल एक घर में पीने के पानी का कनेक्शन है. ग्रामीण भारत में केवल 11 प्रतिशत लोगों के घरों में नल से पानी आता है. शहरों में भी 40 प्रतिशत के पास ही (Piped Water Supply) पाइप्ड वाटर सप्लाई है – यानी सीधे नल से पानी आता है. यानी एक चौथाई भारत में नल से पानी आ सके, ऐसी व्यवस्था ही नहीं है.
एक अनुमान के मुताबिक भारत में हर साल 2 लाख लोग दूषित पानी पीने की वजह से मर जाते हैं. सेंट्रल ग्राउंड वाटर अथॉरिटी के मुताबिक भारत में एक व्यक्ति को प्रतिदिन 135 लीटर पानी मिलना चाहिए. इसमें पीने के पानी के अलावा नहाने, खाना बनाने, कार धुलाई, पेड़ पौधों को पानी देने जैसे सभी काम शामिल किए गए हैं.
संविधान भी देता है पानी का मौलिक अधिकार
यहां हम आपको ये भी बता दें कि आपको पानी मिले, इसे संविधान के द्वारा सुनिश्चित किया गया है. भारत के संविधान के आर्टिकल 21 के तहत पानी का अधिकार मूलभूत मानवाधिकार माना गया है. लेकिन हमें अफसोस के साथ ये कहना पड़ रहा है कि हमारी सरकारें और हमारा सिस्टम हमें पीने के पानी की मूलभूत सुविधा देने में भी नाकाम रहा है. सोचिए, पीने के साफ पानी का स्वराज भी अभी भारत की लगभग 80 प्रतिशत आबादी से दूर है. ये एक अलग सवाल है कि भारत के जिन 21 प्रतिशत घरों में नल से पानी आता भी है - क्या वो सीधे नल का पानी पी सकते हैं.
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