आज कितनी सही हैं दास कैपिटल में लिखी पूंजीवाद और साम्यवाद की परिभाषाएं

  • Zee Media Bureau
  • May 29, 2022, 08:45 AM IST

19 वीं सदी की शुरुआत में कामकाज के तरीके तेजी से बदल रहे थे. सांस्कृति, सामाजिक और आर्थिक स्तर पर कई बड़े बदलाव हुए. मशीनीकरण ने बड़ी बड़ी कंपनियों के कामकाज का तरीका आसान बना दिया और पूरी तरह से बदल दिया. इसे ही यूरोप में आई आद्योगिक क्रांति के नाम से जानते हैं. इसी वक्त में कार्ल मार्क्स बंद कमरे में बैठकर कागजों को रंग रहे थे. मार्क्स को इस औद्योगिक क्रांति में वो खाई नजर आ रही थी जिसमें एक खास इंसान बहुत अमीर बनता है तो उसके साथ हजारों लोग गरीब. यानी एक इंसान पूंजीपति बनता है तो उसके लिए काम करने वाले लोग सर्वहारा. मार्क्स इस व्यवस्था की सैंकड़ों कमियां गिनाते हुए चेतावनी देते हैं कि ये एकाधिकार निश्चित तौर वो खाईं पैदा करेगा कि एक दिन यही सर्वहारा इन पूंजीपतियों के खिलाफ आंदोलन करेगा और उन्हें बेदखल कर देगा. दुनिया में जब मंदी आई और बाजार धड़ाम हुए तो लोगों को मार्क्स के लिखे हुए में दिलचस्पी भी जगी. इसीलिए जब-जब बाजार हताश करता है मार्क्स की ये किताब मंदी में सबसे ज्यादा बिकती है.