नई दिल्लीः भारत का MSME क्षेत्र देश की अर्थव्यवस्था की आधारशिला है. जैसे-जैसे हम बजट 2024-25 के करीब आ रहे हैं, MSME क्षेत्र की सरकार से बहुत सी उम्मीदें जुड़ी हुई हैं. इस क्षेत्र में करीब 6.3 करोड़ रजिस्टर्ड और 7 करोड़ अनरजिस्टर्ड MSMEs शामिल हैं, जो करीब 22 करोड़ लोगों को रोजगार उपलब्ध करवाते हैं. ये भारत की कामकाजी आबादी का 40% हिस्सा हैं. MSMEs भारत की GDP में 34% और उसके निर्यात में करीब 50% का योगदान करते हैं, जो उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाता है. भाजपा सरकार ने MSMEs के लिए बजट को 6 गुना बढ़ाया है, जिससे इस क्षेत्र को काफी सशक्त बनाने में मदद मिली है. फिर भी, MSMEs को अपने तय किए गए लक्ष्यों को हासिल करने के लिए सरकार से कई तरह की उम्मीदें हैं.
MSME क्षेत्र कई चुनौतियों का सामना कर रहा है, जैसे लोन लेने में दिक्कतें, GST प्रक्रिया में कठिनाई और उच्च अनुपालन बोझ. हालांकि, MSMEs में कई सकारात्मक रुझान भी देखने को मिल रहे हैं. लिस्टेड SME IPOs की संख्या लगातार बढ़ रही है, साल 2021 में संख्या 59 थी, जो 2022 में बढ़कर 109 और 2023 में 182 हो गई. यह संख्या MSME क्षेत्र में निवेशकों के बढ़ते विश्वास को दर्शाती है.
MSME क्षेत्र की बढ़ती आवश्यकताओं को देखते हुए बिजनेस कोच डॉ विवेक बिंद्रा ने “आइडिया टू IPO” पहल शुरू की है. इस पहल के तहत वह 100 MSME कंपनियों को IPO लिस्टेड बनाने के लिए मार्गदर्शन देंगे. अगले 30 महीनों तक इन कंपनियों को स्टॉक मार्केट में लिस्टिंग के लिए सलाह दी जाएगी, जिससे उन्हें पहले से बेहतर तरीके से आगे बढ़ने में मदद मिलेगी. इस पहल में डॉ विवेक बिंद्रा के साथ कई अन्य विशेषज्ञ भी शामिल हैं.
स्ट्रीमलाइंड टैक्स और GST प्रक्रिया
केंद्रीय बजट 2024-25 से सबसे ज्यादा उम्मीदें टैक्स स्ट्रक्चर के सरलीकरण और GST प्रक्रिया को लेकर हैं. MSMEs टैक्स की कटौती और GST रजिस्ट्रेशन की एकरूपता चाहते हैं. वर्तमान में 63 मिलियन MSMEs में से केवल 15 मिलियन ही GST रजिस्टर्ड हैं, जो एक बड़े अंतर को दर्शाता है. मिनिस्ट्री ऑफ MSME लगातार बिजनेस को आसान बनाने के लिए टैक्स सिस्टम को सरल बनाने पर जोर देती रही है. एक अच्छी टैक्स व्यवस्था बिजनेस की गति को तेज़ करने में सहयोगी होती है.
लोन प्रक्रिया को बनाएं बेहतर
लोन क्रेडिट की MSMEs के सामने एक बड़ी समस्या है, जो कि 530 बिलियन डॉलर के अंतर को दर्शाती है. आने वाले बजट में क्रेडिट फैसिलिटेशन, MSME लोन के लिए फंडिंग और क्रेडिट गारंटी स्कीम्स को बेहतर करने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए. लोन से जुड़ी सभी प्रोसेसिंग को सही और तेज़ी से किए जाने के लिए एक पॉलिसी और बैंकिंग नीति शुरू की जानी चाहिए. प्रधानमंत्री मुद्रा योजना जैसी स्कीम्स के बजट को भी बढ़ाए जाने की उम्मीद है; इस योजना की शुरुआत से अब तक 18.27 लाख करोड़ रुपए का आवंटन किया जा चुका है.
अंतर्राष्ट्रीय विकास के लिए प्रोत्साहन
भारत के व्यवसाय को विश्व में प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए MSMEs को एक्सपोर्ट कैपेसिटी डेवलपमेंट, प्रमोशन और मार्केटिंग के लिए एक अलग फंड की जरूरत है. इसके लिए इंडिया SME फोरम ने 5000 करोड़ के फंड का प्रस्ताव रखा है. MSMEs को समर्थन देने से भारत का निर्यात बढ़ेगा, जो पहले से ही निर्यात का 50% हिस्सा है.
प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) स्कीम्स का विस्तार
इलेक्ट्रिसिटी, वेस्ट मैनेजमेंट, इलेक्ट्रॉनिक मैन्युफैक्चरिंग और हेल्थ के क्षेत्र में PLI स्कीम लाने से विकास की संभावनाएं बढ़ेंगी और नए रोजगार के अवसर भी सामने आएंगे. ये योजनाएं स्मार्टफोन के क्षेत्र में पहले ही सफलता दिखा चुकी हैं, जिससे हर साल 5% आय की वृद्धि हो रही है. उच्च क्षमता वाले अन्य क्षेत्रों में भी इन योजनाओं को लागू करके बेहतर परिणाम हासिल किए जा सकते हैं.
बेहतरीन डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर
डिजिटल पेमेंट्स को और बेहतर करने के लिए NPCI जैसी एक मजबूत डिजिटल पेमेंट व्यवस्था की जरूरत है. पब्लिक टेक प्लेटफॉर्म जैसी पहल को बढ़ावा देना चाहिए ताकि बिना किसी समस्या के क्रेडिट हासिल किया जा सके. अकाउंट एग्रीगेटर्स का दायरा बढ़ाने से MSMEs की लोन संबंधी समस्याएं आसानी से सुलझ सकेंगी. AI और क्लाउड बेस्ड सॉल्यूशंस MSMEs को औपचारिक अर्थव्यवस्था में एकीकृत करने में मदद करेंगे.
सस्टेनेबल प्रैक्टिसेज के लिए सपोर्ट
पर्यावरण के लिए बेहतरीन उत्पादों के लिए सब्सिडी और प्रोत्साहन जरूरी है. बजट में ग्रीन एनर्जी और सस्टेनेबल मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए योजनाएं लाई जा सकती हैं. पिछले साल लिथियम बैट्री की कस्टम ड्यूटी में कटौती करके 21% से 13% कर दिया गया था, जो ऐसे उपायों का एक अच्छा उदाहरण है.
कम ब्याज दरों पर बेहतर क्रेडिट सुविधाएं
MSMEs की ब्याज दरों को कम करने और क्रेडिट की सुविधा को बेहतर बनाने की काफी उम्मीदें हैं. उच्च ब्याज दरें MSMEs पर फिलहाल एक बोझ बनी हुई हैं. ऐसे में उम्मीद है कि सरकार ऐसे उपाय पेश करेगी, जिनसे कम ब्याज दरों पर आसानी से लोन हासिल किया जा सकेगा. पिछले साल सरकार द्वारा MSME फंडिंग में 41.6% की बढ़ोतरी एक सकारात्मक कदम था, लेकिन अभी और भी बहुत कुछ करने की जरूरत है.
स्किल डेवलपमेंट पर फोकस
एक अच्छी और स्किल्ड वर्कफोर्स MSME क्षेत्र के लिए बेहद जरूरी है. इसके लिए सरकार MSMEs के लिए खास तौर पर स्किल डेवलपमेंट से जुड़ी योजनाएं ला सकती है. इसके तहत डिजिटल मार्केटिंग, एंटरप्रेन्योरशिप और वोकेशनल ट्रेनिंग को लेकर ट्रेनिंग प्रोग्राम्स शुरू किए जा सकते हैं. इन प्रोग्राम्स के लिए फंड्स देने से MSMEs बेहतर तरीके से अपने बिजनेस को आगे बढ़ा पाएंगे.
NPA क्लासिफिकेशन अवधि को बढ़ाएं
लेट पेमेंट्स की दिक्कत का सामना कर रहे MSMEs की मदद के लिए सरकार को बैड डेब्ट की समय अवधि को बढ़ाकर 90 दिन से 180 दिन कर देना चाहिए. इससे उनका बोझ कम हो सकता है, क्योंकि समय पर भुगतान कर पाना अक्सर मुश्किल हो जाता है.
MSME क्रेडिट ऑप्शंस का विस्तार
क्रेडिट की उपलब्धता को बढ़ाने, वर्किंग कैपिटल की जरूरतों को पूरा करने और MSME क्षेत्र को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार को ब्याज पर छूट जैसी योजनाओं पर काम करना चाहिए, जिससे छोटे व्यवसायों की लागत कम हो जाएगी. इन उपायों से MSMEs के सामने आने वाली वित्तीय समस्याएं कम होंगी और उन्हें अपनी फंडिंग को सुरक्षित रखने में मदद मिलेगी. इमरजेंसी क्रेडिट लाइन स्कीम जैसी योजनाएं इस क्षेत्र में काफी प्रभावी साबित हुई हैं. MSMEs के बेहतर विकास के लिए ऐसे और भी कदम उठाए जाने चाहिए.