ईरान की परमाणु संधि से इजरायल और अरब मुल्कों में खलबली

पूरी दुनिया में ईरान को लेकर टेंशन है कि अगर उसे एक बार फिर परमाणु कार्यक्रम जारी रखने की अनुमति मिल जाती है तो वो न सिर्फ मिडिल ईस्ट में अरब और इजरायल के लिए खतरा बन सकता है, बल्कि वो इतना अस्थिर है कि पूरी दुनिया के लिए खतरनाक हो सकता है.

Written by - Prabhat Thakur | Last Updated : Mar 30, 2022, 12:08 PM IST
  • दुनिया के लिए खतरनाक हो सकता है ईरान
  • परमाणु कार्यक्रम को लेकर दुनियाभर में टेंशन
ईरान की परमाणु संधि से इजरायल और अरब मुल्कों में खलबली

नई दिल्ली: सऊदी अरब के तेल डिपो पर हुती विद्रोहियों ने हमला किया तो सऊदी ने यमन की राजधानी पर एयर स्ट्राइक कर दिया. 24 घंटे के भीतर 5 फाइटर सना में दाखिल हुए और तीन जगहों को निशाना बनाया, एक पावर प्लांट, एक ईंधन डिपो और एक लाइफ इंश्योरेंस की बिल्डिंग जिसे हुती विद्रोहियों का खुफिया ठिकाना बताया जा रहा है.

इजरायल को नहीं कबूल
हुती विद्रोहियों ने जेद्दाह में एक बड़े तेल डिपो पर मिसाइल अटैक किया था. सऊदी अरब ने हुती के भेजे बम से लैस दो ड्रोन भी मार गिराए. हुती विद्रोहियों ने 3 दिन के संघर्ष विराम की घोषणा की है. सऊदी अरब से अब यमन बात करना चाहता है. यमन के हुती विद्रोहियों को ईरान का समर्थन हासिल है. ईरान परमाणु समझौते की ओर बढ़ रहा है. मिडिल ईस्ट में लगातार माहौल खराब हो रहा है.

पूरी दुनिया में ईरान को लेकर टेंशन है कि अगर उसे एक बार फिर परमाणु कार्यक्रम जारी रखने की अनुमति मिल जाती है तो वो न सिर्फ मिडिल ईस्ट में अरब और इजरायल के लिए खतरा बन सकता है, बल्कि वो इतना अस्थिर है कि पूरी दुनिया के लिए खतरनाक हो सकता है.

दरअसल, अमेरिका में जो बाइडेन के सत्ता में आने के साथ ही ईरान के साथ उस डील को फिर से शुरू किया जा रहा है. जो साल 2015 में ओबामा के समय में हुई थी और जिसे साल 2018 में डॉनल्ड ट्रम्प के वक़्त में रद्द कर दिया गया था. इस बीच में ऐसी रिपोर्ट आईं कि ईरान ने परमाणु बम बनाने जितना यूरेनियम संवर्धित कर लिया है. जबकि रईसी दुनिया को आश्वस्त कर रहा है कि वो परमाणु तकनीक को शांति कार्यों में इस्तेमाल करेगा न की बम बनाने में जबकि यही रईसी जो पहले एक धार्मिक गुरू था तो परमाणु बमों को लेकर उसके तेवर अलग थे.

दोस्ती-शांति का शिगूफा!
मिडिल ईस्ट में ईरान को लेकर परमाणु खतरा है. पहली बार इजरायल अरब मुल्कों के इतने करीब है. UAE, बहरीन, मोरक्को और मिस्र के विदेश मंत्रियों के बैठक कर रहा है. बैठक में अमेरिका के विदेश मंत्री भी शामिल हो रहे हैं. मुख्य मुद्दा है ईरान को मिलने वाली परमाणु ताकत. वहीं रूस-यूक्रेन को लेकर भी चर्चा हो रही है. इजरायल और अरब मुल्क रूस के मामले में तटस्थ है. ईरान को लेकर अमेरिका भरोसा दे रहा है.

ईरान के पास मिसाइल टेक्नोलॉजी है, उसे रूस अपनी सैटेलाइट का सपोर्ट देता है, ईरान की वजह से आस-पास के मुल्कों में हमेशा दहशत रहती है, क्योंकि ईरान एक अस्थिर मुल्क है और आतंकी संगठनों को समर्थन देता है, वो चाहे गाजा पट्टी में हमास हो या फिर यमन में हुती. सबको ईरान का समर्थन हासिल है. यही वजह है कि परमाणु समझौते होने पर सबसे ज़्यादा चिंता अरब मुल्कों और इज़रायल को है

अमेरिकी विदेश मंत्री एटंनी ब्लिकेंन ने कहा कि जब सबसे अहम तत्व की बात आती है तो हम आंखों में आंखें डाल कर देखते हैं. हम दोनों (अमेरिका और इजरायल) समर्पित हैं, संकल्पित हैं कि ईरान कभी भी परमाणु बम हासिल नहीं कर पाएगा.

मिसाइल स्ट्राइक से लिया बदला
इजरायल और ईरान पुराने दुश्मन हैं और अमेरिका की ऐसी बातों से उन्हें फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि हाल ही में ईरान ने इराक के एरबिल में इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद के ट्रेनिंग सेंटर पर मिसाइल से हमला किया था. ये सेंटर अमेरिकी दूतावास के बगल में थे, फिर भी ईरान ने इस एक्शन को अंजाम दिया.

दरअसल ईरान का दावा है कि सीरिया में 2 ईरानी कर्नल को एयर स्ट्राइक में मारा गया और उसी का बदला मिसाइल स्ट्राइक से लिया गया.

समझा जा सकता है कि इन दो मुल्कों में किस तरह की टेंशन है और क्यों इजरायल इस मामले में अमेरिका पर भी भरोसा नहीं करता और उसके विदेश मंत्री साफ कहते हैं कि इजरायल किसी भी हाल में इस परमाणु समझौते को रोक कर रहेगा, क्योंकि ईरान ये समझौता परमाणु बम बनाने के लिए कर रहा है और जिसका इस्तेमाल इज़रायल के खिलाफ करेगा.

इजरायल के विदेश मंत्री येर लपिद ने कहा है कि 'ईरान के परमाणु कार्यक्रम को रोकने के लिए इजरायल कुछ भी करेगा, कुछ भी. हमारे हिसाब से, ईरानी खतरा सैद्धांतिक नहीं है. ईरानी इजरायल को बर्बाद करना चाहते हैं. वो कामयाब नहीं होंगे, हम उन्हें कामयाब होने नहीं देंगे. दुनिया परमाणु सम्पन्न ईरान को बर्दाश्त नहीं कर सकती.'

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अमेरिका को मिडिल ईस्ट का ये ख़तरा नज़र नहीं आता क्योंकि उसे यहां पर अपनी ऊर्जा की जरूरतें नजर आ रही हैं. रूस पर प्रतिबंधों के बाद तेल और गैस के लिए अमेरिका को अरब मुल्कों से हाथ मिलाना है, लेकिन अरब मुल्क अमेरिका को तवज्जो नहीं दे रहे क्योंकि उन्हें अपनी गेहूं की सप्लाई को खतरे में नहीं डालना. ऐसे में उनकी कोशिश है कि वो कम से कम अमेरिका को ईरान के मसले को लेकर झुका लें और वही कोशिश फिलहाल इजरायल में चल रही है.

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