Shivling History Of Baijnath Temple: श्रावण मास के दूसरे सोमावर को हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा के बैजनाथ मंदिर में सुबह से भक्तों का तांता लगा हुआ. जानें बैजनाथ मंदिर की कहानी..
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Sawan Special: आज सावन का दूसरा सोमवार है. ऐसे में इस खबर में जानिए हिमाचल के एक खास शिव मंदिर का इतिहास, जहां सावन आपको जरूर जाना चाहिए. प्रदेश की खुबसूरत वादियों में बसा बैजनाथ शहर और यहीं पर भगवान भोले शंकर का पौराणिक मंदिर है, जहां आज सुबह पूजा अर्चना के साथ सावन के मेला लगा हुआ है.
इस ऐतिहासिक मंदिर में मेलों का आयोजन अतीत से किया जाता रहा है और लोगों में मान्यता है की श्रावण मास के सभी सोमवार को इस मंदिर में शिवलिंग के ऊपर जल व बिल्वपत्र चढ़ाने से सभी कष्टों का निवारण होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है.
मंदिर का इतिहास त्रेता युग से जुड़ा है
वहीं मंदिर की दाईं और बहने वाली खीर गंगा में इस दौरान पवित्र स्नान का विशेष महत्व है. देश भर व प्रदेश से आने वाले भक्त खीर गंगा में स्नान के बाद वहां से जल भर कर शिव मंदिर पहुंचते हैं, जहां पर स्थित अर्धनारीश्वर शिवलिंग पर अर्पित कर अहोभाग्य मानते हैं.इस मंदिर का इतिहास त्रेता युग से जुड़ा है, जिसमें इसी स्थान पर लंकाधिपति रावण द्वारा शिव की आराधना करने का उल्लेख ग्रंथों में है.
रावण ने इस जगह पर की थी तपस्या
यहां शिवलिंग दो भागों में बंटा हुआ है. एक तरफ भगवान शिव हैं व दूसरी तरफ माता पार्वती है. यहां पर भगवान अर्धनारीश्वर शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं. मान्यता है कि यहां पर रावण ने त्रेता युग में भगवान की तपस्या की थी. भगवान जब प्रसन्न नहीं हुए तब उसने अपने और दस सिर भगवान को अर्पित किए और भगवान ने अर्धनारीश्वर के रूप में रावण को दर्शन दिए और पूछा की आप क्या चाहते हो.
तब रावण ने कहा कि वो उन्हें लंका ले जाना चाहते हैं. तब भगवान ने कहा की मैं तो जा नहीं सकता, लेकिन मैं तुम्हीं आत्म लिंग देता हूं. उसे आप ले जाओ लेकिन रास्ते में उसे कहीं आपने स्थापित नहीं करना है, लेकिन जब रावण को लघुशंका लगी तब रावण ने उसे वहां स्थापित कर दिया और वो भगवान को लंका ले जाने में कामयाब नहीं हुआ.
वहीं नौंवी शताब्दी में इस शिवलिंग को छत प्रदान कि पांडवों ने जब वो हिमालय कि तरफ़ जा रहे थे और एक रात यहां रुके तो उन्होंने एक ही रात में इस मन्दिर का निर्माण कर दिया था.
बैजनाथ में रावण दहन नहीं होता
यही वजह है कि बैजनाथ में दशहरे के दिन यहां रावण दहन नहीं होता है. यहां बच्चा-बच्चा भगवान भोले का गुणगान करता है. आज तक जिस किसी ने भी रावण का पुतला जलने की कोशिश की वो या तो अगले वर्ष तक जिंदा न रहा या बहुत हानि झेलनी पड़ी. आज कई वर्ष हो गए हैं और यहां पर दशहरा नहीं मनाया गया और न ही अब किसी ने दोबारा रावण का पुतला जलने की कोशिश की.
हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा के बैजनाथ शहर में पार्वती के श्राप के चलते आज तक कोई सुनार की दुकान नहीं है. इस शहर में आपको हर चीज़ मिल जायेगी लेकिन अगर नहीं कुछ मिलेगा तो वो हैं सुनार. कहते हैं कि एक बार जब लंका की प्रतिष्ठा हो रही थी. सबसे पहले विश्वकर्मा भगवान की पूजा होनी थी, लेकिन एक सुनार विश्वकर्मा के रूप में वहां पहुंच गया और अपना हिस्सा ले गया.
इतने में वहां विश्वकर्मा आ गये. यह देख कर माता पार्वती गुस्सा हो गई और सुनार को श्राप दिया कि जहां शिव पार्वती इक्ट्ठे वास करेंगे वहां सुनार नहीं वास पाएंगे. तभी से बैजनाथ में आज तक कोई सुनार अपनी दुकान नहीं चला सका. आज बैजनाथ देश का ऐसा शहर है, जहां रावण का मन्दिर बना है, जहां रावण का पैर मौजूद है और लोग यहां पूजा के लिए आते रहते हैं. वहीं श्रावण मास के मेलों में यहां पर भक्तों के लिए विशेष प्रबंध किए जाते हैं ताकि किसी तरह की असुविधा न हो. वहीं भक्त भी पूरे मन से इस मंदिर में दर्शनों के लिए पहुंचते हैं.
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