Mufti Salman Azhari Case: मुफ्ती सलमान अजहरी को गुजरात पुलिस ने जब से पासा कानून के तहत गिरफ्तार किया है, तब से इस कानून को लेकर देश में बहस छिड़ गई है. गुजरात सरकार का पासा कानून हमेशा विवादों में क्यों रहा है. इसे जानने के लिए पढ़िए पूरी खबर.
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Mufti Salman Azhari Case: मुफ्ती सलमान अजहरी को गुजरात की एक अदालत ने 22 फरवरी को कुछ शर्तों के साथ सभी मामलों में जमानत दे दी थी. हालांकि, उन्हें दुबारा गुजरात पुलिस (Gujrat Police) ने पासा (PASA) कानून के तहत गिरफ्तार कर लिया और वडोदरा जेल भेज दिया. इस बीच पासा कानून को लेकर देश में एक बार फिर बहस छिड़ गई है.
विवादो में रहा है ये कानून
दरअसल, गुजरात सरकार का पासा कानून हमेशा विवादों में रहा है. जैसे कि इस कानून का सेक्शन 6 सरकार को यह शक्ति देता है कि वह किसी भी शख्स को अलग-अलग आधार पर हिरासत में ले सकती है. इसके साथ ही वह अलग-अलग हिरासत आदेश भी दे सकती है. ऐसे में अगर कोर्ट में कोई एक आधार खारिज हो जाता है, तो उस शख्स को दुबारा हिरासत में लेने का आदेश कायम रह सकता है.
गुजरात हाईकोर्ट ने इस कानून के दुरुपयोग को लेकर की थी तल्ख टिप्पणी
हालांकि इस कानून के दुरुपयोग को लेकर गुजरात हाईकोर्ट ने अधिकारियों को फटकार लगा चुका है और तल्ख टिप्पणी भी की है. कोर्ट ने कहा है, "अधिकारी दिमाग का इस्तेमाल नहीं करते हैं." साल 2020 में गुजरात हाईकोर्ट के मौजूदा मुख्य न्यायाधीश विक्रम नाथ ने पासा (PASA Act) के तहत हिरासत में लेने से जुड़ी पूरी गाइडलाइन जारी की थी. वहीं, साल 2021 के सितंबर महीने में गुजरात विधानसभा में सरकार ने जो डाटा पेश किया था, उसके मुताबिक पिछले 2 सालों के दौरान गुजरात सरकार ने इस कानून के तहत 5,402 अफराद को हिरासत में लेने का आदेश दिया था, लेकिन इनमें से 3,447 सरकार के आदेश को गुजरात हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया था. यानी 60 फीसद मामले को हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया था.
क्या है पासा एक्ट
गुजरात प्रिवेंशन ऑफ एंटी सोशल एक्टिविटीज एक्ट, (PASA) 1985 के तहत मानव तस्कर, आदतन अपराधी, शराब -ड्रग्स तस्कर और खतरनाक व्यक्ति, प्रॉपर्टी हड़पने वालों, बार-बार जानबूझकर ट्रैफिक नियम तोड़ने वालों को कानून व्यवस्था बनाए रखने और हिरासत हिरासत में लेने का प्रावधान है. इस एक्ट को 27 मई 1985 को लागू किया गया था. हालांकि, ये कानून लागू होने के बाद गुजरात सरकार ने अपने गजट में प्रकाशित की थी.
साल 2020 में किया गया था संशोधन
हालांकि, गुजरात प्रिवेंशन ऑफ एंटी सोशल एक्टिविटीज एक्ट में साल 2020 में गुजरात सरकार संशोधन किया था. इसके बाद गौ हत्या, साइबर क्राइम, जुआ-सट्टा रैकेट चलाने वालों, प्रॉस्टिट्यूशन रैकेट और यौन शोषण से जुड़े अपराध इस कानून के दायरे में लाए गए.