Independence Day 2022: वो मुस्लिम जिनके नारों ने अंग्रेजों के दिलों मे डाल दी थी दहशत
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Independence Day 2022: वो मुस्लिम जिनके नारों ने अंग्रेजों के दिलों मे डाल दी थी दहशत

Independence Day 2022: भारत को अंग्रेजों से आजादी दिलाने में ना जाने कितने लोगों जान की बाजी लगी दी. इस दौरान कुछ ऐसे नारे थे जो इंकलाब बनकर साबित हुए. आज हम आपको इन्ही नारों के बारे में बताने वाले हैं.,

Independence Day 2022: वो मुस्लिम जिनके नारों ने अंग्रेजों के दिलों मे डाल दी थी दहशत

Independence Day 2022: 15 अगस्त 1947 को देश ने वह दिन देखा जिसका बरसों से लोगों को इंतेजार था. देश आजाद हुआ और भारत के बाशिंदों ने उस खुली हवा सास ली जिसके लिए वे सालों से जद्दोजहद कर रहे थे. मुल्क को आजादी दिलाते वक्त हजारों स्वतंत्रता सेनानियों ने कुर्बानियां दी. कुछ ने अपने कलम की धार तो कुछ ने अपने बुलंद हौसलों से भारत को अंग्रेजों से आजाद कराया. हिंदोस्तान की आजादी में मुसलमान और मु्स्लिम शायरों का भी अहम योगदान रहा है. आज हम आपको ऐसे लोगों के बारे में बताने वाले हैं जिनके नारे इंकलाब लाने में मददगार साबित हुए. तो चलिए जानते हैं...

'सरफरोशी की तमन्ना'

'सरफरोशी की तमन्ना आब हमारे दिल में हैं, देख ना है जोर कितना बाजु-ए-कातिल में है.' यह नज्म हर किसी ने सुनी होगी. यह नज्म आजादी के दीवाने शायर 'बिस्मिल अज़ीमाबादी' की है. इसी नजम को राम प्रसाद बिसमिल ने एक केस के दौरान अपने साथियों के साथ अदालत में गाया था.

'इंकलाब जिंदाबाद'

हिंदुस्तान की आजादी के मूवमेंट के दौरान इस नारे का अहम योगदान रहा. इस नारे का मकसद लोगों में चेतना पैदा करना था, ताकि वह ब्रिटिश सरकार के ज़रिए किए जा रहे जुल्मों के खिलाफ लड़ सकें. इस नारे को उर्दू शायर 'मौलाना हसरत मोहानी' ने दिया था. इस नारे को शहीद भगतसिंह और उनके साथियों ने असेंबली में बम फोड़ते  और पर्चे फेकते हुए लोकप्रिय किया था.

'अंग्रेजों भारत छोड़ो'

यह नारा समाजवादी कांग्रेस नेता और बॉम्बे के तत्कालीन मेयर, 'यूसुफ मेहर अली' ने दिया था. ऐसा माना जाता है कि एक मीटिंग के दौरान इस नारे के इस्तेमाल का प्रस्ताव महात्मा गांधी के सामने रखा गया था. भारत छोड़ों आंदोंलन में इस नारे की काफी अहम भूमिका निभाई थी.

'सारे जहां से अच्छा'

'सारे जहां से अच्छा'  अल्लमा इक़बाल के ज़रिए लिखी गई एक नज्म है. इसे पहले देश प्रेम के लिए लिखा गया था. लेकिन इस नजम ने आजादी की जंग में अहम भूमिका निभाई. इसे अल्लमा इक़बाल ने 1905 में लिखा था, और सरकारी कॉलेज में पढ़कर सुनाया था. जिसके बाद यह नज्म काफी पॉप्युलर हो गई.

साइमन कमीशन वापस (Simon Go Back)

 

यह नापा कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के संस्थापक सदस्य यूसुफ मेहर अली ने साइमन कमीशन को वापस लेने के लिए दिया था.  भारत में 3 फरवरी 1928 की रात जिस वक्त बंदरगाह पर साइमन कमीशन के सदस्य उतरे थे उस वक्त यूसुफ मेहर अली ने साइमन हगो बैक के नारे लगाए थे.

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