Nazeer Akbarabadi Hindi Shayari: आलोचकों ने नजीर अकबराबादी को नजर अंदाज किया है. उन्होंने शायरी में बाजारियत, अश्लीलता और तकनीकी गलतियों के बारे में लिखा है.
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Nazeer Akbarabadi Hindi Shayari: नजीर अकबराबादी 18वीं सदी के भारतीय शायर थे जिन्हें "नज़्म का पिता" कहा जाता है. उन्होंने कई ग़ज़लें लिखीं, उनकी सबसे मशहूर ग़ज़ल बंजारानामा है. नज़ीर आम लोगों के शायर थे. उन्होंने आम जिंदगी, मौसम, त्योहार, फलों, सब्जियों जैसे आम चीजों पर शायरी लिखी. वह धर्म-निरपेक्षता के अदाहरण हैं. नजीर अकबराबादी ने लगभग दो लाख तखलीकात लिखीं. लेकिन उनकी छह हज़ार के करीब रचनायें मिलती हैं और इन में से 600 के करीब ग़ज़लें हैं. नजीर ने अपनी तमाम उम्र आगरा में गुजारी. उस वक्त आगरा को अकबराबाद कहा जाता था.
ख़ुदा के वास्ते गुल को न मेरे हाथ से लो
मुझे बू आती है इस में किसी बदन की सी
तुम्हारे हिज्र में आँखें हमारी मुद्दत से
नहीं ये जानतीं दुनिया में ख़्वाब है क्या चीज़
किस को कहिए नेक और ठहराइए किस को बुरा
ग़ौर से देखा तो सब अपने ही भाई-बंद हैं
मय पी के जो गिरता है तो लेते हैं उसे थाम
नज़रों से गिरा जो उसे फिर किस ने सँभाला
था इरादा तिरी फ़रियाद करें हाकिम से
वो भी ऐ शोख़ तिरा चाहने वाला निकला
जुदा किसी से किसी का ग़रज़ हबीब न हो
ये दाग़ वो है कि दुश्मन को भी नसीब न हो
क्यूँ नहीं लेता हमारी तू ख़बर ऐ बे-ख़बर
क्या तिरे आशिक़ हुए थे दर्द-ओ-ग़म खाने को हम
कूचे में उस के बैठना हुस्न को उस के देखना
हम तो उसी को समझे हैं बाग़ भी और बहार भी
आते ही जो तुम मेरे गले लग गए वल्लाह
उस वक़्त तो इस गर्मी ने सब मात की गर्मी
बाग़ में लगता नहीं सहरा से घबराता है दिल
अब कहाँ ले जा के बैठें ऐसे दीवाने को हम
अकेला उस को न छोड़ा जो घर से निकला वो
हर इक बहाने से मैं उस सनम के साथ रहा
देखेंगे हम इक निगाह उस को
कुछ होश अगर बजा रहेगा
हम हाल तो कह सकते हैं अपना पर कहें क्या
जब वो इधर आते हैं तो तन्हा नहीं आते
उस बेवफ़ा ने हम को अगर अपने इश्क़ में
रुस्वा किया ख़राब किया फिर किसी को क्या
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