Gulzar Poetry: गुलज़ार को साल 2002 में सहित्य अकादमी पुरस्कार, साल 2004 में पद्म भूषण मिला है, साल 2009 में गुलजार ऑस्कर अवार्ड और ग्रैमी अवार्ड मिला है.
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Gulzar Poetry: गुलजार का असली नाम 'सम्पूर्ण सिंह कालरा' है. गुलजार ने उर्दू कई बेहतरीन शे शेर लिखे हैं. उन्होंने हिन्दी फिल्मों के लिए कई बेहतरीन गाने लिखे हैं. गुलजार अच्छे कवि, पटकथा लेखक, फ़िल्म निर्देशक नाटककार भी हैं. गुलजार का काम हिन्दी, उर्दू और पंजाबी में हैं. गुलजार ने ब्रज भाषा, खड़ी बोली, मारवाड़ी और हरियाणवी में भी लिखा है.
देर से गूँजते हैं सन्नाटे
जैसे हम को पुकारता है कोई
ज़ख़्म कहते हैं दिल का गहना है
दर्द दिल का लिबास होता है
चंद उम्मीदें निचोड़ी थीं तो आहें टपकीं
दिल को पिघलाएँ तो हो सकता है साँसें निकलें
शाम के साए बालिश्तों से नापे हैं
चाँद ने कितनी देर लगा दी आने में
जब दोस्ती होती है तो दोस्ती होती है
और दोस्ती में कोई एहसान नहीं होता
आग में क्या क्या जला है शब भर
कितनी ख़ुश-रंग दिखाई दी है
काँच के पार तिरे हाथ नज़र आते हैं
काश ख़ुशबू की तरह रंग हिना का होता
चूल्हे नहीं जलाए कि बस्ती ही जल गई
कुछ रोज़ हो गए हैं अब उठता नहीं धुआँ
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यूँ भी इक बार तो होता कि समुंदर बहता
कोई एहसास तो दरिया की अना का होता
ये रोटियाँ हैं ये सिक्के हैं और दाएरे हैं
ये एक दूजे को दिन भर पकड़ते रहते हैं
ये दिल भी दोस्त ज़मीं की तरह
हो जाता है डाँवा-डोल कभी
आँखों से आँसुओं के मरासिम पुराने हैं
मेहमाँ ये घर में आएँ तो चुभता नहीं धुआँ
भरे हैं रात के रेज़े कुछ ऐसे आँखों में
उजाला हो तो हम आँखें झपकते रहते हैं
एक सन्नाटा दबे-पाँव गया हो जैसे
दिल से इक ख़ौफ़ सा गुज़रा है बिछड़ जाने का
गो बरसती नहीं सदा आँखें
अब्र तो बारा मास होता है
यादों की बौछारों से जब पलकें भीगने लगती हैं
सोंधी सोंधी लगती है तब माज़ी की रुस्वाई भी
आँखों के पोछने से लगा आग का पता
यूँ चेहरा फेर लेने से छुपता नहीं धुआँ
वो एक दिन एक अजनबी को
मिरी कहानी सुना रहा था
वो उम्र कम कर रहा था मेरी
मैं साल अपने बढ़ा रहा था
राख को भी कुरेद कर देखो
अभी जलता हो कोई पल शायद
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