इस्लाम में दासी नहीं होती है बीवी; उसे मिला है ये बराबर का अधिकार
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इस्लाम में दासी नहीं होती है बीवी; उसे मिला है ये बराबर का अधिकार

Islam and Wife: इस्लाम में औरतों के बहुत सार हक बताए गए हैं. इस्लाम ने अपनी बीवियों के साथ बहुत नरमी से पेश आने के बारे में बताया गया है. साथ में कहा गया है कि दूसरे लोगों को भी उनसे नर्मी से पेश आने का हुक्म दें.

इस्लाम में दासी नहीं होती है बीवी; उसे मिला है ये बराबर का अधिकार

Islam and Wife: इस्लाम में औरतों के हक के बारे में बात की गई है. यहां औरतों को बराबरी का हक़ दिया गया है. उसे घर की नौकरानी न समझने की ताकीद की गई है. घरेलु मामलात में औरतों की भी राय और सहमति लेने की बात कही गयी है. यहां तक कि बेटियों की शादी उसकी मर्ज़ी के बिना या बिना उसकी सहमति के न करने की सलाह दी गई है. शादी में उसकी रजामंदी को ज़रूरी बताया गया है. 

शादी के बाद उसकी सभी जिम्मेदारी उसके पति पर आयद की गई है. वहीँ, इस्लाम में औरतें चाहे तो पुरुषों की तरह वो भी अपनी मर्ज़ी से अपने शौहर से तलाक ले सकती है. उसे किसी के साथ निकाह या शादी में रहने के लिए फोर्स नहीं किया जा सकता है. शादी को जन्मों का रिश्ता न बनाकर आपसी रजामंदी का रिश्ता बनाया गया है. 

इस्लाम में अपने पिता और पति की संपत्ति में औरतों को हक़ दिया गया है. उसे माली ऐतबार से मजबूत बनाने की पहल की गई है. इस्लाम में कहा गया है कि औरतों के हक की हिफाजत करो. अगर तुम उनके हक अदा नहीं करोगे, तो तुम अपने नबी की नाफरमानी और तौहीन करोगे. एक हदीस में है कि "खुबैलिद इब्ने अम्र (र.) कहते हैं कि प्रोफेट मोहम्मद (स.) ने फरमाया: ऐ अल्लाह! मैं इन दोनों कमजोरों: यतीमों और औरतों के हक को मोहतरम ठहराता हूं."

बीवी पर हदीस
हजरत अबू मसऊद (र.) कहते हैं कि नबी (स.) ने फरमाया: अगर कोई शख्स अपनी बीवी-बच्चों पर और उन लोगों पर जो उसकी सरपरस्ती में हैं, आखिरत में बदला पाने की नीयत से खर्च करता है तो यह उसके लिए 'नेकी' की बात है. (हदीस: बुखारी, मुस्लिम)

बीवी से बर्ताव
इस्लाम में बताया गया है कि कोई भी शख्स अपनी बीवी से नफरत न करे. अगर उसकी कोई एक आदत पसंद नहीं आती है, तो उसकी दूसरी आदत से मोहब्बत करे. 

बीवी को सजा
इस्लाम में बताया गया है कि अगर आपकी बीवी न सुधरे तो उसे हल्की फुल्की सजा दें. उसे इस तरह न मारें कि उसको जख्म हो जाए या उसकी हड्डी टूट जाए.

औरत पसली से जन्मी
इस्लाम में एक जगह जिक्र है कि औरत की पैदाइश पसली से हुई है. इसलिए अगर उसे आप सीधी करना चाहोगे तो तुम उसे तोड़ डालोगे. इस वाक्य का मतलब यह बताया गया है कि जिस तरह से पसली की हड्डी टेढ़ी होती है और वह जिस्म के अंदरूनी हिस्सों की हिफाजत करती है, औरत भी उसी तरह होती है. वह भी अपने घर परिवार की हिफाजत करती है. 

इस्लाम में अपनी बीवी से इसलिए उलझने से मना किया गया है, क्योंकि औरतों और मर्दों का नजरिया एकदम अलग होता है. अगर मर्द ज्यादा सख्ती से पेश आता है, तो दोनों के बीच झगड़ा होगा और घर में कलह होगी. लेकिन जब मर्द औरत से नर्मी से पेश आएगा तो मर्द और औरत में बात बनी रहेगी और परिवार अच्छे से चलेगा. इसलिए मर्दों को हुक्म दिया गया है कि वह औरतों से नरमी से पेश आएं और दूसरे लोगों को भी नसीहत दें कि वह भी उनसे नरमी से पेश आएं.

वहीँ इस्लाम में जहाँ औरतों को गैर मर्दों से पर्दा करने का हुक्म दिया गया है, मर्दों को भी गैर औरतों को न देखने और अपनी निगाह नीचे रखने का हुक्म दिया गया है. धार्मिक मामलों , जैसे रोज़ा और नमाज़ में औरतों को जहाँ विशेष परिस्थितियों में कुछ रियायत दी गई है, वो मर्दों को नहीं दी गई है. शिक्षा हासिल करने के लिए भी औरतों को रोका नहीं गया है, बल्कि कहा गया है कि औरत अगर साक्षर बनेगी तो पूरा खानदान और परिवार साक्षर बनेगा. इसलिए औरतों को तालीम देने की ताकीद की गई है. 

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