Father of Robotics: दुबई के इब्ने बतूता मॉल में एक नायाब व नादिर घड़ी की नक़ल है. जो अजीबो ग़रीब अंदाज़ में वक़्त बताती थी. इस घड़ी का ईजाद एक अरब साइंटिस्ट इस्माइल अल जज़री ने किया था. वक़्त को नापने की जुस्तजू में इस्माइल अल जज़री ने ही इस एलिफ़ैन्ट क्लॉक को बनाया था. इस घड़ी में हर आधे घंटे में हाथी की पीठ पर निशान पूरा गोलाई में एक चक्कर पूरा करता है, और हर घंटे के पूरे होने पर हाथी की पीठ पर बैठा महावत एक ढोल बजाता है जिसकी आवाज़ एक घंटे पूरे होने का एलान करती है. ये घड़ी 12वीं सदी के इंजीनियर इस्माइल अल जज़री की बनाई हुई घड़ी की नक़ल है. अल जज़री ने इसके अलावा भी कई घड़ियां बनाईं जिनमें हाथी घड़ी, कैसल घड़ी, मोमबत्ती घड़ी, और पानी से चलने वाली घड़ी भी शामिल हैं. अल जजरी अपने वक़्त के अज़ीम साइंटिस्ट थे ,इंजीनियरिंग के शोबे में इन्होंने कई अविष्कार किए. इनका सबसे बड़ा कारनामा रोबोट और इंजन बनाना और उसमें स्पीड तय करना था. इन्हीं के फ़ार्मूले पर ही रेल का इंजन बनाया जा सका अपने इन्हीं तजरबात से अल जज़री ने इंजीनियरिंग के शोबे में तहला मचा दिया. ज़रा सोचिए कि आज से एक हज़ार साल पहले जब दुनिया साइंस में अपने बिलकुल इनीशियल स्टेज पर थी. तो अल जज़री ही वो साइंटिस्ट थे जो दुनिया को सिखा रहे थे कि इंसान अपना काम ख़ुद करने के बजाए मशीनों से करवा सकता है. और इसी ख़्याल पर रीसर्च करके अल जज़री ने दुनिया का पहला रोबोट बनाया. आज हम देख रहे हैं कि दुनियाभर में हर फ़ील्ड में रोबोट दिखाई देते हैं...अल जज़री रोबोट का तसव्वुर न पेश करते...रोबोट का बेसिक फ़ार्मूला न समझाते तो रोबोटिक के शोबे में इतनी तरक़्क़ी न देखने को मिलती. इतना ही नहीं इस्माइल अल जज़री ने बग़ैर बिजली से चलने वाले वॉटर पम्स का इजाद भी किया. मगर अफ़सोस कि अल जज़री जैसे तमाम फ़रज़न्दाने इस्लाम की विरासत को 15वीं सदी आते आते उम्मते मुसलेमा ने ऐसा फ़रामोश किया कि ज़्यादातर मुसलमान साइंस और इजादात के ऐसे मुख़ालिफ़ हुए कि नई ईजाद को क़ुरान के ख़िलाफ़ बताया.