Hajj Ek Farz: What is Safa-Marwa, know क्या आप जानते हैं कि सफ़ा मरवा दो पहाड़ियां हैं जो मस्जिदे हराम के क़रीब हैं. दौराने हज सफ़ा और मरवा के दरमियान सई एक अहम रुक्न है. सई के लफ़्ज़ी माईनी दौड़ने के हैं, और शरअन सफ़ा मरवा के दरमियान मख़सूस तरीक़े पर सात चक्कर लगाने के सई कहते हैं. ये हज़रत इस्माईल अलेहीस्सलाम की वालिदा हज़रत हाजरा के ख़ास अमल की यादगार है और उमरा वा हज दोनों में सई करना वाजिब है. सई का तवाफ़ के बाद होना शर्त है. कोई शख्स तवाफ़ से पहले सई कर ले तो वो मोअतबर नहीं है. तवाफ़ के बाद दोबारा करना होगी. सई तवाफ़ के बाद फ़ौरन करना ज़रूरी नहीं मगर तवाफ़ के मुत्तसिल करना सुन्नत है. जब तवाफ़ के बाद आबे ज़मज़म पी कर फारिग़ हों और सई के लिए जाने लगें तो फिर हजरे अस्वद पर जा कर नवीं मर्तबा इस्तेलाम करे यानि मौक़ा मिले तो हजरे अस्वद को बोसा दे वो भी ना हो सके तो हाथ या छड़ी वग़ैरा हजरे अस्वद को लगा कर उसको बोसा दें. वो भी ना हो सके तो हाथों को हजरे अस्वद के मुक़ाबिल कर के वोसा दें.
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