Jharkhand Election: सत्ता की लड़ाई, 'बांग्लादेशी घुसपैठ' तक क्यों आई.. झारखंड में कितना काम आएगा BJP का ये सियासी प्लान?
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Jharkhand Election: सत्ता की लड़ाई, 'बांग्लादेशी घुसपैठ' तक क्यों आई.. झारखंड में कितना काम आएगा BJP का ये सियासी प्लान?

Jharkhand Assembly Election 2024: झारखंड विधानसभा चुनाव में सियासी जोर-आजमाइश तेज हो गई है. तमाम सियासी दल मुद्दों के जरिए बढ़त लेने की कोशिश में जुटे हैं.

Jharkhand Election: सत्ता की लड़ाई, 'बांग्लादेशी घुसपैठ' तक क्यों आई.. झारखंड में कितना काम आएगा BJP का ये सियासी प्लान?

Jharkhand Assembly Election 2024: झारखंड विधानसभा चुनाव में सियासी जोर-आजमाइश तेज हो गई है. तमाम सियासी दल मुद्दों के जरिए बढ़त लेने की कोशिश में जुटे हैं. भाजपा के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) 'माटी, बेटी, रोटी' और 'बांग्लादेशी घुसपैठ' के नारे को लेकर जनता के बीच जा रहा है. आइये जानने की कोशिश करते हैं भाजपा का ये सियासी प्लान झारखंड चुनाव में कितना कारगर साबित हो पाएगा.

'जेल का जवाब जीत से'

दूसरी तरफ, इंडी ब्लॉक में मुख्य भागीदार और सत्ता की लगाम को हाथ में थामे मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन 'जल-जंगल-जमीन' से लेकर 'मंईयां सम्मान योजना' और 'जेल का जवाब जीत से' नारे के जरिए विपक्षी दलों को घेर रहे हैं. झारखंड चुनाव की बात करें तो राज्य में दो चरणों में 13 और 20 नवंबर को मतदान होना है. इसके बाद 23 नवंबर को नतीजों की घोषणा की जाएगी. चुनाव से पहले तमाम राजनीतिक दलों के स्टार प्रचारक मैदान में हैं और एक-दूसरे पर जुबानी हमले कर रहे हैं. अगर चुनाव प्रचार को देखें तो भाजपा 'माटी, बेटी, रोटी' के साथ ही 'बांग्लादेशी घुसपैठ' का मुद्दा जोर-शोर से उठा रही है.

गढ़वा में पीएम मोदी की विशाल चुनावी रैली

पीएम नरेंद्र मोदी ने सोमवार को झारखंड के गढ़वा में विशाल चुनावी रैली को संबोधित करते हुए राज्य की झामुमो-कांग्रेस और राजद गठबंधन की सरकार को भ्रष्ट, विकास विरोधी और घुसपैठियों का संरक्षक करार दिया. उन्होंने कहा, "जब घुसपैठ का मामला कोर्ट में जाए और प्रशासन इससे इनकार करे तो समझ लीजिए कि सरकारी तंत्र में ही घुसपैठ हो चुकी है. ये आपकी रोटी, बेटी और माटी को हड़प रहे हैं. अगर यही कुनीति जारी रही, तो झारखंड में आदिवासी समाज का दायरा सिकुड़ जाएगा. आदिवासी समाज और देश की सुरक्षा के लिए यह गठबंधन खतरनाक है."

मुसलमानों की आबादी 9 प्रतिशत से बढ़कर लगभग 14.5 प्रतिशत

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा के झारखंड चुनाव प्रभारी और केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान से लेकर असम के मुख्यमंत्री और झारखंड चुनाव के लिए भाजपा के सह प्रभारी हिमंत बिस्वा सरमा भी लगातार 'बांग्लादेशी घुसपैठ' का मुद्दा उठा रहे हैं. प्रदेश भाजपा अध्यक्ष और गिरिडीह जिले की धनवार विधानसभा सीट से पार्टी प्रत्याशी बाबूलाल मरांडी तो बकायदा आंकड़ों के जरिए राज्य, खासकर संथाल परगना, में 'बांग्लादेशी घुसपैठ' को गंभीर चुनौती बता रहे हैं. उनका कहना है, ''राज्य में 1951 में जनजातीय आबादी 36 प्रतिशत थी, जो 2011 की जनगणना में घटकर 26 प्रतिशत हो गई है. वहीं, मुसलमानों की आबादी 9 प्रतिशत से बढ़कर लगभग 14.5 प्रतिशत तक जा पहुंची है. राज्य में आज हिंदुओं की आबादी भी 88 प्रतिशत से घटकर 81 प्रतिशत पर पहुंच गई है.''

हेमंत सोरेन का अपना तर्क..

भाजपा के 'बांग्लादेशी घुसपैठ' के मुद्दे पर राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का अपना तर्क है. हेमंत सोरेन तो यहां तक कहते हैं, "बांग्लादेश के साथ भाजपा ने सेटिंग कर रखी है. पहले उनके पूर्व प्रधानमंत्री को देश में शरण देते हैं और आरोप झारखंड पर लगाते हैं? झारखंड की बिजली बांग्लादेश को जाती है, झारखंड को धुआं मिलता है और, आरोप भी झारखंड पर लगाते हैं? यह खुद बोलते हैं बांग्लादेशी घुसपैठ इनके राज्य से होती है और आरोप झारखंड पर लगाते हैं."

संथाल परगना का जिक्र

झारखंड में 'बांग्लादेशी घुसपैठ' के मुद्दे पर सबसे ज्यादा संथाल परगना का जिक्र हो रहा है. चुनाव में जीत-हार के लिहाज से देखें तो संथाल परगना की खास अहमियत है. संथाल परगना में 18 विधानसभा सीटें हैं. झारखंड की सियासत में यह बात कही जाती है कि सत्ता की निर्णायक जंग इन्हीं सीटों पर होती है, जो संथाल में बढ़त हासिल करता है, वह सत्ता के करीब पहुंच जाता है.

अगर 2019 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो झामुमो ने संथाल परगना के बरहेट, बोरियो, लिट्टीपाड़ा, महेशपुर, शिकारीपाड़ा, दुमका, जामा, मधुपुर और नाला समेत नौ सीटों पर जीत हासिल की थी. झामुमो के साथ गठबंधन में शामिल कांग्रेस ने पाकुड़, महगामा, जामताड़ा और जरमुंडी समेत चार सीट जीती थी. झाविमो ने पोड़ैयाहाट से जीत हासिल की थी. भाजपा को राजमहल, गोड्डा, देवघर और सारठ समेत महज 4 सीटों पर ही जीत मिली थी.

भाजपा 'बांग्लादेशी घुसपैठ' का मुद्दा जोर-शोर से उठा रही

सियासी जानकारों का मानना है कि संथाल परगना में पिछले नतीजों को बेहतर करने की कोशिश में जुटी भाजपा 'बांग्लादेशी घुसपैठ' का मुद्दा जोर-शोर से उठा रही है. झारखंड की राजनीति को सालों से करीब से देख रहे और राजनीतिक मामलों के जानकार श्याम किशोर चौबे का कहना है, "यह नारा गेम चेंजर नहीं होगा. झामुमो का नारा 'जल जंगल जमीन' और भाजपा का 'माटी, बेटी, रोटी' एक ही हैं. बस, शब्द अलग-अलग हैं. झामुमो को वोट नारे पर नहीं मिलते हैं. नारे का मकसद सभी को एकजुट करना है. हरियाणा में देखें तो भाजपा ने डोर-टू-डोर कैंपेन किया. इसका फायदा भी चुनावी नतीजों में देखने को मिला. अगर झारखंड में देखें तो भाजपा 25 से घटकर 5 पर तो नहीं आएगी, ऊपर ही जाएगी. सत्ता की लड़ाई का रुख इसपर निर्भर करेगा कि आदिवासी वोट बैंक भाजपा की तरफ कितना आता है."

..उससे झामुमो को कोई सहानुभूति नहीं मिलेगी

उन्होंने आगे कहा, "हेमंत सोरेन के जेल जाने का मुद्दा पुराना पड़ गया है. उससे झामुमो को कोई सहानुभूति नहीं मिलेगी. लोकसभा चुनाव में भी झामुमो को तमाम नारों पर अपेक्षित सफलता नहीं मिली. लोकसभा चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी अर्जुन मुंडा और सीता सोरेन की हार का अंदेशा पहले से ही था. झामुमो के मुताबिक, हेमंत सोरेन नैरेटिव की लड़ाई जीत रहे हैं. लेकिन, हकीकत में जमीन पर कांटे का मुकाबला है. अगर कोल्हान में भाजपा ने बड़ी सफलता अर्जित की तो विधानसभा चुनाव का नतीजा बड़ा उलटफेर भरा हो सकता है."

'कोल्हान का टाइगर'

दूसरी तरफ कोल्हान प्रमंडल भी नंबर गेम में कमोबेश संथाल परगना जितना ही महत्व रखता है. चंपई सोरेन को 'कोल्हान का टाइगर' कहा जाता है. इस प्रमंडल में 14 विधानसभा सीटें आती हैं. इस प्रमंडल में चंपई सोरेन की मजबूत पकड़ है. अगर चंपई सोरेन का नेतृत्व यहां कारगर साबित होता है और भाजपा कोल्हान में छह-सात सीटें जीतने में सफल हो जाती है तो इससे भाजपा के लिए सत्ता तक पहुंचना आसान हो सकता है. 2019 के विधानसभा चुनाव में कोल्हान की सीटों पर झामुमो के अगुवा चंपई सोरेन ही थे और तब भाजपा यहां एक भी सीट नहीं जीत पाई थी.

बहुमत के लिए 41 सीटों की जरूरत

अगर 81 सदस्यीय विधानसभा की बात करें तो 2019 के नतीजे भाजपा के लिए किसी झटके से कम नहीं रहे. 2019 के विधानसभा चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) को 30, कांग्रेस को 16, राजद को 1 और भाजपा को 25 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. इस बार भाजपा 2019 की गलतियों से सबक लेते हुए सत्ता में वापसी के लिए जोरदार प्रचार अभियान चला रही है. 81 सीटों वाली झारखंड विधानसभा में बहुमत के लिए 41 सीटों की जरूरत होती है. अगर पिछले दो दशक के नतीजों को देखें तो पता चलता है कि अब तक कोई पार्टी अकेले इतनी सीटें नहीं ला सकी है.

आदिवासियों से जुड़े मुद्दे

पिछले विधानसभा चुनाव में भी तमाम दलों ने स्थानीयता से लेकर आदिवासियों के हक-हालात से जुड़े तमाम नारे लगाए थे. उस चुनाव के बाद इस बार भी पक्ष-विपक्ष अपने-अपने हिसाब से आदिवासियों से जुड़े मुद्दे को उठा रहा है. इसमें संथाल परगना में 'बांग्लादेशी घुसपैठ' के मुद्दे पर वह सबसे ज्यादा मुखर है.

जानकारों का अपना-अपना नजरिया

संथाल परगना से अलग दूसरे इलाकों में 'बांग्लादेशी घुसपैठ' कितना बड़ा मुद्दा है, इस सवाल पर राजनीतिक जानकारों का अपना-अपना नजरिया है. राजनीतिक विश्लेषक अरविंद पांडेय का कहना है, "जहां तक बांग्लादेशी घुसपैठ की बात है, अगर आदिवासी समाज इस मुद्दे के समर्थन में आ जाए तो वह विधानसभा चुनाव के नतीजों पर बड़ा असर डालेगा."

एनडीए और इंडी अलायंस के लिए वेट एंड वॉच की स्थिति

उनके मुताबिक, "संथाल परगना के आदिवासी अभी बांग्लादेशी घुसपैठ पर ज्यादा मुखर नहीं हैं. इसका कारण उनकी सामाजिक बनावट है. अभी तक संथाल आदिवासी इसे बड़ा खतरा नहीं मान रहे हैं. लेकिन, संथाल परगना के बाहर पलामू, कोल्हान, उत्तरी-दक्षिणी छोटा नागपुर से लेकर शहरों में रहने वाले मतदाता बांग्लादेशी घुसपैठ को मुद्दा मानकर अगली सरकार चुनेंगे तो यह कहीं ना कहीं एनडीए और इंडी अलायंस के लिए वेट एंड वॉच की स्थिति होगी. इतना कहा जा सकता है कि यह मुद्दा काफी हद तक गेमचेंजर साबित होगा."

भाजपा 68 सीटों पर लड़ रही चुनाव

झारखंड चुनाव में सीट शेयरिंग की बात करें तो एनडीए के घटक दलों के बीच सीटों का बंटवारा हो चुका है. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) राज्य की 68 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. आजसू पार्टी (ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन) 10, नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) दो और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) एक सीट पर चुनाव लड़ रही है.

कांग्रेस 30 सीटों पर लड़ रही चुनाव

दूसरी तरफ, 'इंडिया' ब्लॉक के तहत झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) 43 और कांग्रेस के उम्मीदवार 30 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं. राजद को पांच सीटें दी गई थीं, लेकिन उसने कांग्रेस के हिस्से वाली दो सीटों पर अपने भी उम्मीदवार उतार दिए हैं. पलामू जिले के छतरपुर और विश्रामपुर सीट पर कांग्रेस और राजद के बीच दोस्ताना संघर्ष है. यही स्थिति गिरिडीह जिले की धनवार सीट पर है, जहां झारखंड मुक्ति मोर्चा और सीपीआई (एमएल) दोनों ने अपने उम्मीदवार उतार दिए हैं. मतलब, तीन सीटों पर इंडिया ब्लॉक के गठबंधन दलों के बीच कायदे से तालमेल नहीं हो पाया.

(एजेंसी इनपुट के साथ)

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