'वन नेशन वन इलेक्शन' पर क्या है अखिलेश यादव की मजबूरी? आखिर में फंस गई कांग्रेस
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'वन नेशन वन इलेक्शन' पर क्या है अखिलेश यादव की मजबूरी? आखिर में फंस गई कांग्रेस

Ek Desh Ek Chunav: समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव के सामने ये अब असमंजस भी है.. मजबूरी भी है. इस बात का कारण खुद अखिलेश हैं. शायद इसीलिए उनकी पार्टी की तरफ से अभी वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर इनकार नहीं किया गया है. लेकिन कांग्रेस फंस गई है.

'वन नेशन वन इलेक्शन' पर क्या है अखिलेश यादव की मजबूरी? आखिर में फंस गई कांग्रेस

One Nation One Election: लोकसभा चुनाव रिजल्ट के बाद संसद का पहला ही सत्र था.. अखिलेश यादव बिलकुल राहुल गांधी के बगल बैठे केंद्र की बीजेपी पर एक के बाद एक तीर छोड़ रहे थे. फिर उन्होंने कहा कि महोदय 37 नहीं अगर यूपी की सभी 80 सीटें मिल जाएं तो हमें ईवीएम पर भरोसा नहीं होने वाला है. इसके बाद राहुल जोर से अपनी सीट के सामने टेबल थपथपाते हुए बोले- वेरी गुड. अब थोड़ा सा पीछे चलते हैं..करीब छह साल पहले जून 2018 का समय था, लखनऊ में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस थी, इसमें अखिलेश यादव ने साफ कहा था कि वे 'एक देश एक चुनाव' के समर्थन में हैं. अखिलेश ने तो यह तक कह दिया था कि वे अगले ही साल यानि कि 2019 में ही दोनों चुनाव लोकसभा और विधानसभा एक साथ लड़ने को तैयार हैं.

निगाहें कांग्रेस और समाजवादी पार्टी पर

अब जबकि एक देश एक चुनाव को लेकर देश में चर्चा व्यापक स्तर पर पहुंच चुकी है. केंद्रीय कैबिनेट ने प्रस्ताव को मंजूरी भी दे दी. देश की ज्यादातर बड़ी पार्टियों ने ना नुकुर करते हुए समर्थन देने के भी संकेत दे दिए हैं, तो राजनीतिक पंडितों की निगाहें कांग्रेस और समाजवादी पार्टी पर होनी हैं. क्योंकि मौजूदा समय में विपक्षी गठबंधन की धुरी यही दोनों हैं.

सपा ने इनकार नहीं किया

ऐसे में अब समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव के सामने ये असमंजस भी है.. मजबूरी भी है.. शायद इसीलिए उनकी पार्टी की तरफ से अभी वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर इनकार नहीं किया गया है. पार्टी के एक प्रवक्ता रविदास मेहरोत्रा ने तो कहा कि सरकार एक सर्वदलीय बैठक बुला ले. इसका मतलब साफ है कि कम से कम समाजवादी पार्टी इस पर बात करने को तैयार हो गई है. उधर यह कांग्रेस के लिए झटके से कम नहीं है कि समाजवादी पार्टी इस मामले में दूसरे पाले में खड़ी नजर आ रही है. 

कई पार्टियों ने अपना रुख साफ कर दिया

यूपी की एक और बड़ी पार्टी बसपा ने तो साफ अपना समर्थन इस पर दे दिया है. अब इस मसले पर देश की कई पार्टियों ने अपना रुख साफ कर दिया है. कांग्रेस ने इसे असंवैधानिक बताया है, ओवैसी और टीएमसी ने भी इसका विरोध किया है. लेकिन जेडीयू, एलजेपी, हम मोर्चा जैसी पार्टियों ने खुला समर्थन किया है. यह चर्चा के बार फिर से जोर इसलिए पकड़ रही है क्योंकि केंद्रीय कैबिनेट ने बुधवार को 'वन नेशन, वन इलेक्शन' प्रस्ताव को मंजूरी दे दी. 

18,626 पन्नों की रिपोर्ट

इस पूरे मामले के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गई थी. इस कमेटी ने 14 मार्च को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी. कोविंद समिति का गठन 2 सितंबर 2023 को किया गया था. समिति ने करीब 190 दिनों तक राजनीतिक दलों तथा विभिन्न हितधारकों के साथ मंथन करने के बाद 18,626 पन्नों की रिपोर्ट तैयार की थी. आठ सदस्यीय समिति ने आम लोगों से भी राय आमंत्रित की थी. आम लोगों की तरफ से 21,558 सुझाव मिले. 

80 प्रतिशत सुझाव 'वन नेशन, वन इलेक्शन' के पक्ष में

इतना ही नहीं इस पर 47 राजनीतिक दलों ने भी अपने राय और सुझाव दिए, जिनमें 32 ने इसका समर्थन किया था. कुल 80 प्रतिशत सुझाव 'वन नेशन, वन इलेक्शन' के पक्ष में आए थे. समिति ने देश के प्रमुख उद्योग संगठनों और अर्थशास्त्रियों के भी सुझाव लिए थे. कोविंद समिति ने दो चरणों में लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकायों के चुनाव कराने का सुझाव दिया है. समिति ने कहा है कि पहले चरण में लोकसभा और राज्यसभा के चुनाव एक साथ कराए जाने का प्रस्ताव है, जबकि दूसरे चरण में उसके 100 दिन के भीतर स्थानीय निकायों के चुनाव कराने का प्रस्ताव है. समिति ने कहा है कि सभी चुनावों के लिए एक ही मतदाता सूची हो.

सबसे पहले 1999 में शुरू हुई थी चर्चा

'वन नेशन, वन इलेक्शन' के बारे में चर्चा सबसे पहले 1999 में शुरू हुई, जब विधि आयोग ने अपनी 170वीं रिपोर्ट में लोकसभा और सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव हर पांच साल पर एक साथ कराने का सुझाव दिया. इसके बाद कार्मिक, लोक शिकायत, विधि एवं न्याय पर संसदीय की स्थायी समिति ने 2015 में अपनी 79वीं रिपोर्ट में दो चरणों में एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश की थी.

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