Madhya Pradesh CM: ऐसा भैया मिलेगा नहीं, जब मैं चला जाऊंगा तब तुम्हें बहुत याद आऊंगा...' मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव से लगभग दो महीने पहले ही सीहोर जिले के लाड़कुई में एक सरकारी कार्यक्रम में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने राजनीतिक भविष्य से जुड़ा बड़ा संकेत दे दिया था. उसके बाद भी कई मौकों पर उन्होंने खुद के मुख्यमंत्री की रेस से बाहर होने के बारे में स्पष्ट तौर पर बयान दिया था.
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Madhya Pradesh Politics: 'मित्रों, अब विदा... जस की तस रख दीनी चदरिया.' मध्य प्रदेश में नए मुख्यमंत्री मोहन यादव के शपथ ग्रहण समारोह (CM Mohan Yadav Oath) से पहले बुधवार को मीडिया के सामने पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ठिठके, हाथ जोड़े और निर्गुण भक्त कवि कबीर दास की ये पंक्ति कही. पूर्व सीएम ने नए मुख्यमंत्री मोहन यादव को शुभकामनाएं दी. शिवराज ने कहा कि मुझे पूरा विश्वास है कि मोहन यादव मध्य प्रदेश को समृद्धि और विकास और जनकल्याण की नई ऊंचाइयों पर ले जाएंगे. इससे पहले और विधानसभा चुनाव नतीजे आने के बाद 8 दिसंबर को राघोगढ़ की एक सभा में शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री की रेस से बाहर होने के स्पष्ट संकेत दे दिए थे. उन्होंने कहा था, 'मामा और भैया को जो पद है, वो दुनिया में किसी भी पद से बड़ा है. इससे बड़ा कोई पद नहीं है.' मध्य प्रदेश में चुनाव नतीजे के एक सप्ताह बाद भाजपा विधायक दल के नेता के रूप में उज्जैन दक्षिण के विधायक और पूर्व उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव के नाम की घोषणा कर दी गई. इसके साथ ही मध्य प्रदेश में 18 साल में पहली बार भाजपा ने मुख्यमंत्री का चेहरा बदला डाला. इसके साथ ही राजनीतिक गलियारे में 18 साल पहले का वह दिन भी चर्चा में शामिल हो गया जब शिवराज सिंह चौहान को अचानक मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाए जाने का एलान किया गया था.
मध्य प्रदेश में चार बार और सबसे लंबे कार्यकाल तक मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान
मध्य प्रदेश में चार बार मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान सबसे लंबे कार्यकाल तक इस पद पर रहे हैं. बतौर मुख्यमंत्री उनका कार्यकाल लगभग 17 साल का रहा है. शिवराज सिंह चौहान पहली बार 2005 में मुख्यमंत्री बने और 2018 तक लगातार पद पर बने रहे. मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2018 में बीजेपी को बहुमत नहीं मिला. इसके लगभग डेढ़ साल बाद मार्च 2020 में कांग्रेस की कमलनाथ सरकार गिरी और ज्योतिरादित्य सिंधिया की मदद से मध्य प्रदेश में फिर से बीजेपी सरकार बनी. शिवराज सिंह चौहान ने चौथी बार मुख्यमंत्री पद संभाला. आखिरकार मुख्यमंत्री पद के लिए अचानक सामने आए मोहन यादव के नाम ने सारा सियासी हाल बदल डाला. 18 साल पहले यानी 2005 में शिवराज सिंह चौहान भी ऐसे ही अचानक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बनाए गए थे. आइए, शिवराज सिंह चौहान के सियासी सफर और पहली बार मुख्यमंत्री बनने की घटना के बारे में जानते हैं.
उमा भारती और बाबूलाल गौर के बाद 'अचानक' विकल्प बनकर उभरे थे शिवराज सिंह चौहान
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2003 में भाजपा ने बहुमत हासिल कर लिया और साध्वी उमा भारती मुख्यमंत्री बनाई गईं. सीएम रहते उनके बयानों से भाजपा में कई सीनियर नेता असहज हुए. उमा भारती के खिलाफ 1994 में हुए हुबली दंगों के मामले में अरेस्ट वारंट जारी हो गया. इसके बाद उमा भारती ने आठ महीने में ही मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. भाजपा ने उमा भारती की जगह बाबूलाल गौर को मुख्यमंत्री बनाया तो कुछ ही महीने में उनके खिलाफ पार्टी में बगावत शुरू हो गई. भाजपा ने फिर सबके पसंद आने लायक नेता तलाशा और 29 नवंबर 2005 को शिवराज सिंह चौहान को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया. बताया जाता है कि मुख्यमंत्री पद के लिए चुने जाते वक्त शिवराज सिंह चौहान लोकसभा के सदस्य थे. बाबूलाल गौर के विकल्प की तलाश के वक्त भाजपा में किसी ने शिवराज का नाम नहीं लिया था. हालांकि, अंत में प्रमोद महाजन ने उनके नाम का प्रस्ताव रखा और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने सहमति जताकर सबको चौंका दिया. मुख्यमंत्री बनने के बाद शिवराज सिंह चौहान ने बुधनी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और 30 हजार से ज्यादा वोटों से जीत हासिल की. इसके बाद वह 2008, 2013, 2018 और 2023 में भी बड़े अंतर से विधानसभा चुनाव जीतते रहे.
अपने सियासी करियर में अब तक बस एक बार चुनाव हारे शिवराज सिंह चौहान
ओबीसी समाज और किसान परिवार से आने वाले शिवराज सिंह चौहान साल 1988 में भाजपा की यूथ विंग भाजयुमो के अध्यक्ष बनाए गए. दो साल बाद 1990 में बुधनी सीट से पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ा और जीता. अगले साल लोकसभा चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी ने मध्य प्रदेश की विदिशा और उत्तर प्रदेश की लखनऊ सीट से चुनाव जीता और बाद में विदिशा को छोड़ा. विदिशा उपचुनाव में शिवराज सिंह चौहान को उतारा गया और उन्होंने जीत हासिल की. इसके बाद विदिशा लोकसभा सीट से शिवराज सिंह चौहान 1996, 1998, 1999 और 2004 में भी लगातार चुनाव जीतते गए. मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2003 में मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के खिलाफ उनकी पारंपरिक घरेलू सीट राघौगढ़ से भाजपा ने शिवराज सिंह चौहान को उतारा. शिवराज को अपने सियासी करियर में पहली बार चुनावी हार का मुंह देखना पड़ा था. करियर की इस इकलौती हार ने ही उनके लिए मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद के द्वार खोल दिए थे. क्योंकि,इसके तुरंत बाद लोकसभा चुनाव 2004 में शिवराज फिर से विदिशा सीट से 2.60 लाख से अधिक वोटों से चुनाव जीत गए. वह भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव बनाए गए और आलाकमान की नजरों में बने रहे.
लोकसभा चुनाव 2024 में मध्य प्रदेश की सभी 29 सीटें जीतने की तैयारी में जुटे शिवराज!
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2018 में कांटे की टक्कर में भाजपा बहुमत से दूर रह गई. शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया और कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी. 15 महीने बाद ही कांग्रेस में अंतर्कलह शुरू हो गया. कांग्रेस के दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने समर्थक विधायकों के साथ कांग्रेस और कमलनाथ का साथ छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए. इस कारण कमलनाथ सरकार गिर गई और 23 मार्च 2020 को शिवराज सिंह चौथी बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बनाए गए. हालांकि, इस बार मुख्यमंत्री का चेहरा बदला जाना लगभग तय ही माना जा रहा था. चुनाव से पहले और बाद में भाजपा के कई नेताओं ने दबे-छिपे और साफ तौर पर इसको दोहराया. विधानसभा चुनाव में केंद्रीय मंत्री और सांसदों को उतारा गया. भाजपा उम्मीदवारों की अंतिम लिस्ट में शिवराज सिंह चौहान के टिकट की घोषणा की गई. अब शिवराज सिंह चौहान ने लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारी तेज करने के बारे में कहा है. उन्होंने कहा कि फिलहाल जनता के आशीर्वाद से मध्य प्रदेश की सभी 29 लोकसभा सीटें जीतकर नरेंद्र मोदी को फिर से प्रधानमंत्री बनाना ही उनका लक्ष्य है.