असदुद्दीन ओवैसी ने PM मोदी को लिखा खत, वर्शिप एक्‍ट की सुनवाई को लेकर की ये अपील
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असदुद्दीन ओवैसी ने PM मोदी को लिखा खत, वर्शिप एक्‍ट की सुनवाई को लेकर की ये अपील

Supreme Court on Worship Act: एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने पीएम नरेंद्र मोदी को खत लिखकर इस कानून की रक्षा करने को कहा है. उन्होंने इस कानून को भारत की विविधता को बनाए रखने वाला बताया. 

असदुद्दीन ओवैसी ने PM मोदी को लिखा खत, वर्शिप एक्‍ट की सुनवाई को लेकर की ये अपील

What is Places of Worship Act: वर्शिप एक्ट 1991 की वैधता से जुड़ी याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है. लेकिन मंगलवार को एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने पीएम नरेंद्र मोदी को खत लिखकर इस कानून की रक्षा करने को कहा है. उन्होंने इस कानून को भारत की विविधता को बनाए रखने वाला बताया. 

आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर ओवैसी ने वो खत शेयर किया, जो उन्होंने पीएम मोदी को लिखा है. इसमें उन्होंने लिखा, ' मैंने प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के बारे में पीएमओ को लिखा है. सुप्रीम कोर्ट इस कानून की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है और उसने केंद्र से रुख साफ करने को कहा है. सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि अधिनियम ने संविधान के बुनियादी ढांचे को लागू किया. प्रधानमंत्री को अधिनियम का बचाव करना चाहिए क्योंकि यह भारत की विविधता को बनाए रखता है.'

ओवैसी ने अपने खत में कहा कि किसी भी संसदीय कानून की संवैधानिकता की रक्षा करना कार्यपालिका का सामान्य कर्तव्य है. प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के बारे में ओवैसी ने कहा कि इस कानून को संसद ने बनाया था और कहा था कि 15 अगस्त 1947 को जो पूजा स्थल जिस स्वरूप में हैं, वो वैसे ही रहेंगे. 

प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के बारे में ओवैसी ने कहा कि इस कानून को संसद ने बनाया था और कहा था कि 15 अगस्त 1947 को जो पूजा स्थल जिस स्वरूप में हैं, वो वैसे ही रहेंगे. इस तरह के प्रावधान के पीछे मुख्य मकसद भारत की विविधता और बहुलवाद की रक्षा करना था. ओवैसी ने आगे कहा, "कट ऑफ डेट 15 अगस्त 1947 थी. इस दिन भारत को आजादी मिली थी. तब संसद का यही इरादा था कि स्वतंत्र भारत उन धार्मिक विवादों में ना फंसे, जिससे समाज में विभाजन हो.''

एआईएमआईएम चीफ ने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि अधिनियम इस विचार का प्रतिनिधित्व करता है कि कोई भी इतिहास के खिलाफ अंतहीन मुकदमा नहीं कर सकता और आधुनिक भारत मध्ययुगीन विवादों को सुलझाने के लिए युद्ध का मैदान नहीं हो सकता.

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