आजादी के 75 साल बाद भी बूंद-बूंद पानी को तरस से रहे हैं आदिम पहाड़िया के लोग, 2 किमी दूर से लाना पड़ता है पेयजल
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आजादी के 75 साल बाद भी बूंद-बूंद पानी को तरस से रहे हैं आदिम पहाड़िया के लोग, 2 किमी दूर से लाना पड़ता है पेयजल

Jharkhand News: पाकुड़ जिले के अमड़ापाड़ा प्रखंड क्षेत्र के बोड़ो पहाड़ में निवास करने वाले 120 आदिम पहाड़िया परिवार के लोग आजादी 75 साल बाद भी मूलभूत सुविधाओं से कोसों दूर है. गांव के लोगों को पानी लेने के लिए पहाड़ से दो किलोमीटर नीचे आना पड़ता है.

आजादी के 75 साल बाद भी बूंद-बूंद पानी को तरस से रहे हैं आदिम पहाड़िया के लोग, 2 किमी दूर से लाना पड़ता है पेयजल

पाकुड़:Jharkhand News: पाकुड़ जिले के अमड़ापाड़ा प्रखंड क्षेत्र के बोड़ो पहाड़ में निवास करने वाले 120 आदिम पहाड़िया परिवार के लोग आजादी 75 साल बाद भी मूलभूत सुविधाओं से कोसों दूर है. गांव के लोगों को पानी लेने के लिए पहाड़ से दो किलोमीटर नीचे आना पड़ता है. अमड़ापाड़ा मुख्यालय से करीब दस किलोमीटर दूर स्थित आदिम जनजाति बहुल गांव बोड़ो पहाड़ का है. यह गांव बोड़ो पहाड़ जराकी पंचायत क्षेत्र में आता है. गांव चार टोला में बसा हुआ है. पुनटोला, सिमडीडांगा,प्रधान टोला, करमटोला मिला कर करीब 120 पहाड़िया परिवार यहां रहते हैं. यहां की कुल आबादी करीब 500 है. जहां सालों भर पानी की समस्या बनी रहती है.

टोला में पानी का कोई स्रोत नहीं

वहीं गांव के प्रधान टोला में एक कुआं, दो चापाकल एवं एक नव निर्माण जलमीनार है. इसी कुआं एवं चापाकल में थोड़ा पानी निकलता है जिससे ग्रामीण अपनी प्यास बुझाते है. कुआं और चापाकल गर्मी के मौसम में सुख जाता है. ग्रामीण कुआं में पानी जमने का इंतजार करते है. उसके बाद पानी जमते ही बारी बारी से ग्रामीण अपने बर्तनों में पानी भर कर घर ले जाते हैं. पानी की समस्या के कारण ग्रामीण अन्य काम भी ठीक तरह से नहीं कर पाते है. वहीं प्रधान टोला के अलावे सभी टोला में पानी का कोई अन्य स्रोत नहीं है.

दो किमी दूर से पानी लाने को मजबूर

ग्रामीण पहाड़ के नीचे करीब दो से चार किलोमीटर स्थित कुआं एवं तालाब में पानी लेने जाने को विवश है. बोड़ो पहाड़ स्थित पुन टोला में करीब 30 परिवार निवास कर रहे हैं. पुन टोला में पानी का कोई अन्य स्रोत नहीं है. पहाड़ के नीचे स्थित कुआं में दिन-रात ग्रामीण दर्जनों बर्तन रख कर अपनी बारी का इंतजार करते हैं. अपनी बारी आते ही ग्रामीण बारी-बारी से अपने बर्तनों पर पानी भर कर पहाड़ पर स्थित घर की ओर जाते है. पानी लेने जाने वाले रास्ते में बड़े-बड़े पत्थर के चलते लोग गिरकर चोटिल भी हो जाते हैं.

इनपुट- सोहन प्रमाणिक

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