Jan Vishwas Yatra: नीतीश कुमार को निशाने पर रखते हुए तेजस्वी यादव जनविश्वास यात्रा पर निकले हुए हैं. पहले दिन से लेकर दूसरे दिन के संबोधनों का लब्बोलुआब देखें तो तेजस्वी यादव का मुख्य फोकस नीतीश कुमार को अब कमजोर, लाचार और निरीह मुख्यमंत्री साबित करने पर रहता है. जब तेजस्वी यादव यह कहते हैं कि बिहार अब चाचा से संभलने वाला नहीं है.
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Jan Vishwas Yatra: जब से तेजस्वी यादव सत्ता से बाहर हुए हैं या यूं कहें कि नीतीश कुमार ने जब से उन्हें धोखा दिया है, तब से तेजस्वी यादव ने उन्हें निशाने पर ले रखा है. वैसे तो 2020 के विधानसभा चुनाव में भी चाचा भतीजा की तनातनी देखने को मिली थी, लेकिन तब कम सीटें आने के बाद भी नीतीश कुमार चाचा चैधरी बन गए थे और तेजस्वी यादव कड़ी फाइट देने के बाद भी देखते रह गए थे. 2022 के जुलाई महीने में जब चाचा भतीजा एक बार फिर साथ आए तो सब ठीक रहा लेकिन जनवरी 2024 में नीतीश कुमार के एनडीए में शामिल होते ही तेजस्वी यादव एक बार फिर मुखर होते दिख रहे हैं. विधानसभा में नीतीश कुमार सरकार के विश्वास प्रस्ताव पर सदन को संबोधित करते हुए तेजस्वी यादव ने कइयों को अपना मुरीद बनाया. यहां तक कि जेडीयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता केसी त्यागी ने भी उनके संबोधन की सराहना की थी.
सरकार से बाहर होने के बाद भी राजद नेता तेजस्वी यादव निराश होने के बदले जोश दिखा रहे हैं. उनके दम दिखाने का लाभ भी देखने को मिल रहा है. उनकी रैलियों में खासी भीड़ जमा हो रही है और लोग उन्हें सुन रहे हैं. तेजस्वी यादव की सबसे खास बात यह है कि वह अपनी रैलियों में भाजपा से ज्यादा नीतीश कुमार को निशाने पर रख रहे हैं. तेजस्वी यादव एक तरह से नीतीश कुमार को एनडीए और जेडीयू की सबसे कमजोर कड़ी साबित करने पर तुले हुए हैं. जबकि नीतीश कुमार कभी एनडीए के सबसे मजबूत नेताओं में से एक हुआ करते थे.
नीतीश कुमार को निशाने पर रखते हुए तेजस्वी यादव जनविश्वास यात्रा पर निकले हुए हैं. पहले दिन से लेकर दूसरे दिन के संबोधनों का लब्बोलुआब देखें तो तेजस्वी यादव का मुख्य फोकस नीतीश कुमार को अब कमजोर, लाचार और निरीह मुख्यमंत्री साबित करने पर रहता है. जब तेजस्वी यादव यह कहते हैं कि बिहार अब चाचा से संभलने वाला नहीं है. बिहार अब चाचा से चलने वाला नहीं है तो यह कहना चाहते हैं कि नीतीश कुमार बहुत थक गए हैं और अब उनसे इस उम्र में बिहार जैसा महत्वपूर्ण राज्य संभल नहीं पाएगा. ऐसा कहकर वे खुद को नीतीश कुमार को मजबूत टक्कर देने वाले नेता के रूप में पेश करते हैं.
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अब बेतिया और मोतिहारी में ही तेजस्वी यादव के संबोधन को देख लीजिए या सुन लीजिए. तेजस्वी यादव ने कहा, हमारे चाचा से अब बिहार संभलने वाला नहीं है. वे 9 बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं. भाजपा वाले दिन भर उन्हें हिन्दू मुसलमान में उलझाए रहते हैं. मैं लालू जी को चाहनेवालों से कहना चाहता हूं कि गरीबों के भाग्य को आगे बढ़ाने में हमारा साथ दीजिए. हम माई बाप की पार्टी वाले लोग हैं और सभी को साथ लेकर चलना है, क्योंकि हम ए टू जेड की पार्टी हैं.
तेजस्वी यादव यह भी साबित करना चाहते हैं कि वे न होते तो बिहार में शिक्षकों की इतनी बड़े पैमाने पर बहाली न होती. यह पहाड़ जितना बड़ा काम उन्होंने 17 महीनों में करके दिखा दिया. यह कहकर भी तेजस्वी यादव यह साबित करना चाहते हैं कि अगर वे सरकार में साझेदार न होते तो यह काम भी अब तक न हुआ होता. इस तरह बिहार में हाल ही में 4 लाख से अधिक शिक्षकों की भर्ती का पूरा श्रेय वे खुद लेना चाहते हैं और जो भीड़ उनकी रैली में आ रही है, उससे तो लगता है कि वे इसमें सफल भी हो रहे हैं.
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ऐसे में बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या नीतीश कुमार को इस बात का अफसोस हो रहा होगा कि कहां से कहां उन्होंने 2015 या फिर 2022 में वे राजद के साथ गए. 2022 का तो छोड़िए, क्योंकि तब तक राजद एक महाशक्ति बन चुकी थी. 2015 में तो राजद को जिंदा करने का श्रेय अगर किसी को जाता है तो वह हैं नीतीश कुमार. नीतीश कुमार अगर 2015 में राजद के साथ समझौता न करते तो आज राजद जिस रूप में हमारे सामने है, संभव है कि वैसी मजबूती से नीतीश कुमार को चुनौती पेश न कर रहा होता. जाहिर सी बात है कि नीतीश कुमार को अफसोस हो रहा होगा, लेकिन यही तो राजनीति है. यही रणनीति है. एक दूसरे को लड़ाओ और फिर दोनों का पंच बनकर मजे लेते रहो.