Pakur News: झारखंड के पाकुड़ में वन विभाग की ओर से पहली बार एशियन वाटर बर्ड सेंसस का आयोजन किया गया. जो पक्षी विशेषज्ञों के नेतृत्व में सफलतापूर्वक संपन्न हुआ. यह ऐतिहासिक पहल पाकुड़ वन प्रमंडल पदाधिकारी सौरभ चंद्रा निर्देशानुसार पक्षी विशेषज्ञ दशरथ ठाकुर, संजय खाखा, अविनाश कुमार और जिब्रान अली के द्वारा किया गया है. वन विभाग की ओर से पहली बार आयोजित एशियन वाटर बर्ड सेंसस में महत्वपूर्ण खोज सामने आई है.
पाकुड़ में वन विभाग की ओर से पहली बार एशियन वाटर बर्ड सेंसस का आयोजन किया गया. जोकि पक्षी विशेषज्ञों के नेतृत्व में सफलतापूर्वक संपन्न हुआ.
बता दें कि वन विभाग की ओर से पहली बार आयोजित एशियन वाटर बर्ड सेंसस में महत्वपूर्ण खोज सामने आई है.
दरअसल, वन प्रमंडल पदाधिकारी सौरभ चंद्रा के निर्देशन में पक्षी विशेषज्ञों की टीम ने यह सर्वेक्षण किया है. सर्वेक्षण में कुल 3,488 पक्षियों की गणना की गई, जिनमें 28 विभिन्न प्रजातियां शामिल हैं.
विशेष रूप से दो प्रवासी पक्षी प्रजातियों की उपस्थिति दर्ज की गई, 75 कॉटन टील और 242 रेड क्रेस्टेड पोचार्ड.
जबकि, स्थानीय प्रजातियों में सबसे अधिक संख्या लेसर व्हिस्लिंग डक की रही, जिनकी संख्या 2320 थी. यह सर्वेक्षण पाकुड़ वन प्रमंडल के विभिन्न प्रमुख वेटलैंड्स और जलाशयों में आयोजित किया गया.
इनमें पत्थरघट्टा नसीरपुर, मालीपाड़ा निहारपाड़ा, सोहूबिल तालाब, सलगापाड़ा डैम, देवीपुर तालाब, दुर्गापुर डैम, और सिमलॉन्ग माइनिंग लेक शामिल हैं.
इस सर्वेक्षण के दौरान पक्षियों की प्रजातिगत विविधता, विशेष रूप से प्रवासी पक्षियों की उपस्थिति ने यह स्पष्ट किया कि पाकुड़ वन प्रमंडल के वेटलैंड्स और जलाशयों का संरक्षण अत्यंत महत्वपूर्ण है.
इसके साथ ही स्थानीय समुदाय को पक्षियों और उनके आवास के संरक्षण के प्रति जागरूक करना भी आवश्यक है.
इस सर्वेक्षण में पक्षियों की कुल संख्या 3488 पाई गई. जिसमें पक्षी प्रजातियों की संख्या 28, निवासी प्रजातियां 26 और प्रवासी प्रजातियों की संख्या 2 पाई गई.
वहीं प्रवासी पक्षीयों में कॉटन टील की संख्या 75, जबकि रेड क्रेस्टेड पोचार्ड की संख्या 242 पाई गयीं. साथ ही निवासी पक्षीयों में सबसे अधिक संख्या में लेसर व्हिस्लिंग डक 2320 देखे गए.
इसके अलावा लिटिल ग्रेब, कैटल ईग्रेट, इंडियन पौंड हेरोन, लार्ज ईग्रेट, मेडियन ईग्रेट, ब्लैक शोल्डर्ड काइट, कॉमन मूरहेन, कॉमन सैंडपाइपर, और एशियन ओपनबिल स्टार्क जैसी प्रजातियाँ भी पाई गईं.
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