मंत्री अश्विनी कुमार चौबे का कहना है कि प्रतिमा के अनावरण पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बक्सर आमंत्रित किया जाएगा. हिन्दू धर्म कोई पंथ नहीं है. यह भारतीयता का पर्याय है. न्यायालय भी यह कह चुका है. धर्म का अर्थ होता है कर्तव्य. भारत धर्मनिरपेक्ष नही पंतनिरपेक्ष राष्ट्र है.
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बक्सर : बक्सर में विश्व की सबसे ऊंची भगवान राम की प्रतिमा बनने जा रही है. मंगलवार को प्रतिमा की स्थापना के लिए भूमि पूजन होगा. बता दें कि 2024 तक भगवान श्रीराम की विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा पुरुषार्थ की मूर्ति स्थापित होगी. मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने कहा कि महर्षियों की इस तपोभूमि को विश्व के मानचित्र पहचान दिलाना है. मैं तुलसी पीठ से इस पवित्र कार्य के लिए 9 लाख रुपये की राशि दूंगा.
प्रत्येक घर से प्रतिमा के लिए 9 रुपये का होगा सहयोग
मंत्री अश्विनी कुमार चौबे के अनुसार पूज्य स्वामी जी के जाने से पहले भूमि प्रस्तावित कर पूज्य स्वामी जी के हाथों भूमिपूजन का कार्य सम्पन्न किया जाएगा. स्वामी जी ने तुलसी पीठ से 9 लाख रुपये की राशि देने की घोषणा की है. हम बक्सर वासी प्रत्येक घर से 9-9 रुपये की धनराशि इकट्ठा कर 99 लाख की राशि संग्रहित करेंगे. यह संकल्प अवश्य ही पूरा होगा. स्वामी जी ने कहा की इस पवित्र अभियान की अध्यक्षता मैं स्वयं करूंगा. 15 नवंबर को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की उपस्थिति में भूमि पूजन का कार्य सम्पन्न होगा.
भारत धर्मनिरपेक्ष नही पंतनिरपेक्ष है राष्ट्र
मंत्री अश्विनी कुमार चौबे का कहना है कि प्रतिमा के अनावरण पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बक्सर आमंत्रित किया जाएगा. हिन्दू धर्म कोई पंथ नहीं है. यह भारतीयता का पर्याय है. न्यायालय भी यह कह चुका है. धर्म का अर्थ होता है कर्तव्य. भारत धर्मनिरपेक्ष नही पंतनिरपेक्ष राष्ट्र है. धर्मनिरपेक्ष होंने का मतलब है कर्तव्य निरपेक्ष. हम कर्तव्य निरपेक्ष नही हो सकते हैं. भारत की संसद में स्पीकर की कुर्सी के पीछे संस्कृत लिखा हुआ है. जिसका अनुवाद है कि यह संसद धर्म चक्र के प्रवर्तन के लिए उपस्थित हुआ है.
लोगों के मन भाई स्वामी जी की कथा
बता दें कि स्वामी जी इस मौके पर भगवान श्री राम की कथा सुनाते हुए कहा कि महर्षि विश्वामित्र ने राजा दशरथ से कहा कि जिनका पराक्रम संतो के लिए हितैषी बालक दीजिए. मुझे राम दे दीजिए. केवल वही सुबाहु और मारीच का वध कर सकते हैं. बिना राम के बक्सर के ज्वलन्त समस्या का समाधान नहीं हो सकता. अप्रिय वचन सुनकर दशरथ ने कहा कि आप मेरी अक्षुणि सेना ले लीजिए. मेरी सारी वस्तु मुझसे ले लीजिए. मेरे प्राण ले लीजिए, पर मेरे राम को मुझसे दूर न कीजिये. साथ ही यह प्रसंग सभी साधु संतों के लिए एक उदाहरण है कि सभी साधु अलग-अलग उपासना करते पर राष्ट्रहित में सब एक होंगे.
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