दूल्हा और दुल्हन से पहले क्यों कराई जाती है आम और महुआ की शादी, क्या है मान्यता?
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दूल्हा और दुल्हन से पहले क्यों कराई जाती है आम और महुआ की शादी, क्या है मान्यता?

आम और महुआ की शादी... सुनने में थोड़ा अजीब लग रहा है न. लेकिन यह बात है सोलह आने और 24 कैरेट सच. बिहार के कुछ इलाकों में आज भी आम और महुआ के पेड़ों की शादी कराने का रिवाज है. यह रिवाज किसी खास तिथि को होती है, ऐसा नहीं है. यह कोई पर्व या त्योहार भी नहीं होता.

आम और महुआ की शादी

आम और महुआ की शादी... सुनने में थोड़ा अजीब लग रहा है न. लेकिन यह बात है सोलह आने और 24 कैरेट सच. बिहार के कुछ इलाकों में आज भी आम और महुआ के पेड़ों की शादी कराने का रिवाज है. यह रिवाज किसी खास तिथि को होती है, ऐसा नहीं है. यह कोई पर्व या त्योहार भी नहीं होता. हां, जिस घर में लड़का या लड़की की शादी होती है, उस घर में शादी से पहले आम और महुआ की शादी कराने का रिवाज है. इस दौरान महिलाएं शादी वाले गीत गाती हैं और ढोल नगाड़ों की गूंज के बीच आम और महुआ की शादी कराई जाती है. इस दौरान आम और महुआ के पेड़ों को धागों के सहारे एक दूसरे को बांधा जाता है. सिंदूर लगाई जाती है और शादी की सारी विधि की जाती है.

मान लीजिए किसी घर में लड़की की शादी है तो बारात आने से कुछ घंटे पहले आम और महुआ की शादी के लिए महिलाएं निकलती हैं. महिलाओं के साथ होने वाली दुल्हन भी जाती है. महिलाओं की मदद के लिए नाई भी मौजूद होता है और घर के बच्चे भी इसमें शामिल होते हैं. खास बात यह है कि महिलाएं आम और महुआ की शादी के लिए उस बगीचे में जाती हैं, जहां दोनों के पेड़ मौजूद हों. वहां पहुंचने के बाद शादी की रस्म शुरू की जाती है. मंगलगीत गाए जाते हैं. आम और महुआ को महिलाएं आशीर्वचन देती हैं.  

महुआ को आम की ओर से सिंदूर लगाया जाता है और उस पेड़ को धागे से बांधा जाता है. फूल, चंदन, माला और अच्छत के अलावा शादी में इस्तेमाल होने वाली अधिकांश सामग्री नाई वहां लेकर जाता है. शादी के बाद जिस तरह से दूल्हा और दुल्हन का गठबंधन होता है, उसी तरह आम और महुआ को धागों में लपेटा जाता है. फिर महिलाएं आम और महुआ के सात फेरे लगाती हैं और इस तरह से आम और महुआ की शादी संपन्न हो जाती है. 

जिस घर में लड़के की शादी होती है, तो उसकी बारात निकलने के कुछ घंटे पहले आम और महुआ की शादी कराई जाती है. इस शादी में दूल्हा और दुल्हन को कुछ खास नेग या व्यवहार नहीं करना होता है, बस नाई को कुछ पैसे देने होते हैं. सबसे खास बात यह है कि आम और महुआ की इस शादी में पंडित जी का कोई रोल नहीं होता और महिलाएं नाई की मदद से ही पूरी रस्म निभाती हैं और मंगल गीत गाती हैं. 

माना जाता है कि आम और महुआ की शादी इसलिए कराई जाती है कि दूल्हा और दुल्हन को शादी के बाद किसी विपत्ति का सामना नहीं करना पड़े. मान्यता है कि आम और महुआ की शादी से दूल्हा और दुल्हन पर आने वाली विपत्ति टल जाती है और उनका दाम्पत्य जीवन खुशी खुशी व्यतीत होता है. ऐसा नहीं है कि बिहार में हर जगह यह रिवाज है, लेकिन अधिकांश जगहों पर इस रिवाज को माना जाता है. 

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