बिहार में एक तरफ महागठबंधन केंद्र की भाजपा सरकार के खिलाफ लोकसभा चुनाव 2024 के लिए I.N.D.I.A का हिस्सा बनकर इतरा रही है तो वहीं दूसरी तरफ बिहार में जातिगत समीकरण को ध्यान में रखकर NDA ने भी अपने गठबंधन में कई दलों को शामिल कर लिया है.
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Bihar Politics: बिहार में एक तरफ महागठबंधन केंद्र की भाजपा सरकार के खिलाफ लोकसभा चुनाव 2024 के लिए I.N.D.I.A का हिस्सा बनकर इतरा रही है तो वहीं दूसरी तरफ बिहार में जातिगत समीकरण को ध्यान में रखकर NDA ने भी अपने गठबंधन में कई दलों को शामिल कर लिया है. इसमें जीतन राम मांझी की हम, उपेंद्र कुशवाहा की आरएलजेडी, चिराग पासवान की लोजपा(रामविलास) और पशुपति पारस की लोजपा को हिस्सा बनाया गया है. NDA की बैठक जब दिल्ली में हुई तो अंतिम वक्त तक वीआईपी के मुकेश सहनी इस बात को लेकर अंतिम क्षण तक इंतजार करते रहे कि शायद उनको भी इस बैठक के लिए निमंत्रण आएगा.
उस बैठक के बाद जीतन राम मांझी ने भले यह कहा था कि अगर मुकेश सहनी को भी एनडीए का हिस्सा बनाया जाता है तो वह इसका स्वागत करेंगे. हालांकि अभी तक ऐसा हो नहीं पाया और मुकेश सहनी इन दिनों अपनी यात्रा के साथ पूरे देश में खासकर बिहार और यूपी के हिस्से में भ्रमण कर रहे हैं और अपनी जाति के लोगों को यह बताने की कोशिश में लगे हैं कि आज तक जितनी हिस्सेदारी उनकी जाति को राजनीति में मिलनी चाहिए उतनी नहीं मिली है. ऐसे में अब अगर उनकी जाति ने ठान लिया तो पटना क्या दिल्ली की सत्ता भी उनसे दूर नहीं रहेगी.
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मतलब साफ है कि वह इशारों में यह समझा गए थे कि शायद NDA में उनकी दाल गलने वाली नहीं है. आपको बता दें कि इस बीच राजनीतिक गलियारों से यह खबर भी निकलकर आई कि NDA की तरफ से बिहार में सीट शेयरिंग का फॉर्मूला भी लगभग तय हो गया है. यहां 40 में से 30 सीटों पर भाजपा खुद लड़ने का मन बना चुकी है और 10 सीटों पर अपने गठबंधन सहयोगियों को सेट करने के मुड में है. इसमें से कुशवाहा की आरएलजेडी को 2014 में मिले तीन के मुकाबले इस बार 2 सीटें, हम को 1 और चिराग और पारस की लोजपा को कुल 6 सीटें देने पर विचार कर रही है. एक सीट को वह रिजर्व रखने के मुड में है ताकि नए गठबंधन सहयोगी अगर चुनाव तक कोई जुड़ते हैं तो उनको यहां सेट किया जा सके या फिर इस सीट को गठबंधन के किसी दल को बाद में दिया जा सके. मतलब यहां भी मुकेश सहनी की पार्टी के लिए कोई जगह नहीं दिख रही थी.
जबकि भाजपा को भी पता है कि मुकेश सहनी उनके लिए जरूरी हैं. क्योंकि मुकेश सहनी का दबदबा 14 फीसदी से अधिक अतिपिछड़ी आबादी खासकर मल्लाहों पर है. ऐसे में वह इस आबादी से घूम-घूमकर हाथ में गंगाजल दिलाकर वोट नहीं बेचने की अपील कर रहे हैं. मल्लाह-निषाद वोट बैंक लोकसभा चुनाव में क्या चमत्कार कर सकता है यह भाजपा भली भांति जानती है.
बिहार में भाजपा नीतीश कुमार के परंपरागत वोट बैंक लव-कुश समीकरण को तोड़ने के लिए आरसीपी सिंह, उपेंद्र कुशवाहा और फिर सम्राट चौधरी के जरिए निशाना लगा चुकी है. उसने 12 प्रतिशत कुर्मी और कोइरी वोटरों को अपने साथ करने का प्रयास इस दाव के जरिए किया है. वहीं दलित और महादलित 14 फीसदी वोट बैंक जिसमें पांच फीसदी के करीब पासवान हैं बाकी महादलित जातियां (पासी, रविदास, धोबी, चमार, राजवंशी, मुसहर, डोम आदि) हैं के लिए पशुपति पारस, चिराग पासवान और जीतन राम मांझी को अपने साथ जोड़ा लिया है. वहीं उच्च जाति के 20 फीसदी वोट बैंक को जिसमें भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण और कायस्थ हैं, को पहले से भाजपा का कोर वोटर माना जाता है.
इधर, बिहार में अति पिछड़ा वोट बैंक 26 फीसदी के करीब है जिसमें से केवल मल्लाह और निषाद ही 14 फीसदी हैं. जबकि बाकि 12 प्रतिशत में लोहार, कहार, सुनार, कुम्हार, ततवा, बढ़ई, केवट, मलाह, धानुक, माली, नोनी आदि जातियां शामिल हैं. ऐसे में मुकेश सहनी के तोड़ के रूप में हरि सहनी को भाजपा ने बिहार विधान परिषद का नेता प्रतिपक्ष बनाया है. बता दें कि भाजपा एक तीर से दो निशाना साध रही है. एक तो नीतीश कुमार के अति पिछड़ा वोट बैंक में सेंधमारी और ऊपर से मुकेश सहनी के इस वोट बैंक पर दबदबे को समाप्त करना. अब ऐसे में साफ हो गया है कि मुकेश सहनी की NDA में नो एंट्री तो कंफर्म है.