Holi 2023: बिहार के सहरसा जिला मुख्यालय से महज आठ किलोमीटर दूर कहरा प्रखंड के बनगांव में मनाई जाने वाली होली की एक अलग ही पहचान है. सहरसा की इस होली को घमौर होली के नाम से लोग जानते है. ये होली मथुरा के ब्रज जैसी बेमिसाल होती है.
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सहरसा: Holi 2023: बिहार के सहरसा जिला मुख्यालय से महज आठ किलोमीटर दूर कहरा प्रखंड के बनगांव में मनाई जाने वाली होली की एक अलग ही पहचान है. सहरसा की इस होली को घमौर होली के नाम से लोग जानते है. ये होली मथुरा के ब्रज जैसी बेमिसाल होती है. इस ‘घूमर’ होली में लोग एक-दूसरे के कंधे पर सवार होकर बड़े धूमधाम से मनाते हैं. हालांकि आज भी कई लोग इसके बारे में नहीं जानते हैं.
बता दें कि सहरसा की ‘घूमर’ होली वृंदावन की तरह ही सुंदर, मजेदार और बेमिसाल होती है. सहरसा के बनगांव की ये होली 'घूमर' होली के नाम से विख्यात है. जानकारी के मुताबिक ‘घूमर’ होली को संत लक्ष्मीनाथ गोसाई द्वारा शुरू की गई थी. ‘घूमर’ होली ब्रज की लठमार होली की तरह ही विख्यात है. पूरे गांव के लोग पहले गांव में स्थित ललित बंगला के पास एकत्रित होते हैं. जिसके बाद सभी भगवती प्रांगण में पहुंचकर होली का आनंद उठाते हैं.
सदियों से मनाई जा रही है ‘घूमर’ होली
मान्यता है कि 'घूमर’ होली की परंपरा भगवान श्री कृष्ण के काल से चली आ रही है. 18 वीं सदी में यहां के प्रसिद्ध संत लक्ष्मी नाथ गोसाई बाबाजी ने इसे शुरू किया था. इसके बाद से आज तक घूमर होली यहां मनाई जाती है. कहा जाता है कि बनगांव के भगवती स्थान के पास इमारतों पर रंग बिरंगे पानी के फब्बारे में भिगोने के बाद उनकी होली पूरी होती है. वहीं बनगांव निवासी के स्थानीय लोगों की माने तो 'घूमर’ होली सांप्रदायिक एकता का प्रतीक है.
कपड़े फाड़ कर मनाते है होली
वहीं होली खेलने के दौरान सहरसा में एक-दूसरे के कपड़ों को फाड़ कर भी लोग घूमर होली का आनंद उठाते हैं. गांव के एकता की इस होली की तारीफ हर तरफ होती है. सभी जाति धर्म के लोग एक दूसरे के कंधे पर सवार होकर होली मनाते हैं.
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