सरयू जो प्रभु श्री राम के होने का सबूत है. सरयू जो राम युग के होने की गवाही है. सरयू जो राम लला के अयोध्या में पैदा होने से लेकर वनगमन और फिर सजती अयोध्या में उनकी वापसी का प्रमाण है. सरयू जो प्रतिक्षारत है अपने प्रभु श्री राम के आगमन का. सरयू जो संघर्ष के दिनों में भी तटस्थ है.
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Ayodhya Ram Mandir: सरयू जो प्रभु श्री राम के होने का सबूत है. सरयू जो राम युग के होने की गवाही है. सरयू जो राम लला के अयोध्या में पैदा होने से लेकर वनगमन और फिर सजती अयोध्या में उनकी वापसी का प्रमाण है. सरयू जो प्रतिक्षारत है अपने प्रभु श्री राम के आगमन का. सरयू जो संघर्ष के दिनों में भी तटस्थ है. सरयू जो युगों के बदलने का संकेत है लेकिन राम के होने में किसी को संदेह नहीं इसकी दृढ अटल विश्वास है. सरयू जो अपने प्रभु श्री राम के आगमन की प्रतिक्षा माता अहिल्या की तरह कर रही है क्योंकि वह भी शापित है. वह श्राप मुक्ति की प्रतिक्षा में है. काल, युग, समय सब बदल गया लेकिन, अगर कुछ नहीं बदला है अयोध्या में तो वह है सरयू की प्रभु श्री राम के इंतजार में पथराई आंखें. उसे कहां आराम है उसके घाटों पर होने वाले श्री राम के उद्घोष से भी, उसकी बेचैनी कहां खत्म होती है राम नाम के जयकारे से, वह अंगडाई लेती है, बलखाती है, उछलती है, बेचैनी में उसकी धाराएं तट को छोड़कर मंदिर तक तो पहुंचती है लेकिन लौट जाती है बस इस इंतजार में और समय गंवाने के लिए की कभी तो उनके प्रभु यहां विराजेंगे और जब उनके चरण रज पाकर उसका भी उद्धार होगा.
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सरयू श्रापित है और उसके उद्धार का एक और एक मात्र मार्ग प्रभु श्री राम से होकर जाता है. अयोध्या में सब बदल गया लेकिन अदालत में प्रभु के होने के प्रमाण के तौर पर सरयू ही थी जो तटस्थ थी. वह जानती है वह यहां से गई तो प्रभु श्री राम के अस्तित्व पर दुनिया सवाल उठाएगी. वह प्रभु के मंदिर की चौखट पर खड़ी है और उसकी आंखें भरी पड़ी है क्योंकि उसको पता है चौखट के अंदर जाकर भी वह क्या करेगी अभी तो उसके प्रभु यहां विराज नहीं रहे हैं. वह प्रभु से अपने श्रापित होने पर सवाल पूछना चाहती है कि आखिर क्यों उसे श्राप दिया गया. क्या प्रभु की जल समाधि उसकी गोद में हुई इस वजह से माता सरयू की ममता भी तार-तार हो गई. उसकी ममता पर सवाल क्यों. वह तो प्रभु की लीला का गवाह थी. उसे तो पता भी नहीं था कि प्रभु उसके अंदर ही समाधी लेंगे.
वह तो सूर्यवंश की मर्यादा का प्रमाण रही है. प्रभु श्री राम के पूर्वजों के होने का भी गवाह रही है. आखिर उसे श्रापित किया क्यों गया? वह बचनबद्ध है प्रभु से इस बात को जानने की. वह तो खुद भगवान विष्णु की मानस पुत्री है जिसे ब्रह्मर्षि वशिष्ठ धरती पर लेकर आए. वह तो गंगा और यमुना की तरह पवित्र थी. वह सरमुल से निकलती है और नेपाल की सीमा पर पंचेश्वर में महाकाली में मिल जाती है. फिर बलिया और छपरा के बीच गंगा नदी में विलीन हो जाती है. वह महाकाली से लेकर गंगा तक का सफर काली नदी के नाम से करती है. ये वही सरयू नदी जिसके 14 घाटों में पाप मोचन घाट भी है. जिसमें स्नान करने से पाप खत्म हो जाता है. फिर आखिर उसे श्रापित क्यों किया गया?
रामायण के उत्तरकांड में भी तो इसके श्रापित होने का जिक्र है. भगवान ने अपने भाईयों के साथ इसकी धारा में जल समाधि ली तो उसे इसका दंड भोगना पड़ा. भगवान शिव को तब क्रोध आया और उन्होंने सरयू को श्राप दिया कि वह प्रभु श्री राम के मौत का कारण बनी इसलिए उसका जल किसी भी पूजा में इस्तेमाल नहीं होगा. तब सरयू नदी शिव के चरणों में गिर गई थी और उनसे विनती की थी कि वह विधि के विधान के सामने मजबूर थी इसमें उसकी क्या गलती. इस पर शिव ने उसे कहा था कि तुम्हारे जल में केवल स्नान करने से कोई पाप नहीं लगेगा इतनी छूट मैं तुम्हें देता हूं. लेकिन, उसे कोई पुण्य भी नहीं मिलेगा. ऐसे में आज भी कोई पूजा सरयू के जल से नहीं होती किसी भी यज्ञ आदि कर्म में सरयू के जल का इस्तेमाल नहीं होता. सरयू की तो आज भी पूजा नहीं होती ना ही इस नदी की आरती की जाती है.
सरयू गवाह बनी राम की अयोध्या के समाप्त होने की क्योंकि प्रभु के साथ पूरी अयोध्या सरयू में समा गई थी. जीव-जंतु कीड़े-मकोड़े तक इस नदी में जलसमाधी ले गए थे. ऐसे में इसके जल में आचमन करने पर भी नर्क का भागीदार बनने का श्राप मिला था.