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दिल्ली विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी के पास गंवाने के लिए कुछ भी नहीं है। उसकी सारी जद्दोजहद अपनी मौजूदा सीटों को बचाने पर होगी लेकिन उसके ढीले-ढाले चुनाव प्रचार को देखकर लगता है कि उसने लड़ाई से पहले ही अपनी हार मान ली है। पार्टी के दिग्गज नेता चुनाव लड़ने से पीछे हट गए हैं। पार्टी का शीर्ष नेतृत्व चुनाव अभियान में जोश-खरोश नहीं दिखा पाया है। इससे पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरा है जिसका सीधा असर पार्टी की सीटों पर पड़ेगा।
दिल्ली में विधानसभा चुनावों में मुख्य टक्कर भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच मानी जा रही है। लंबे समय तक दिल्ली की सत्ता में रही कांग्रेस लड़ाई से बाहर है। हालांकि, दौड़ में खुद को दिखाने के लिए चुनाव में एक राष्ट्रीय पार्टी के जितने जतन किए जाने चाहिए, उसने किए हैं। कांग्रेस पार्टी को 2013 के विधानसभा चुनावों में मात्र आठ सीटें मिली थीं लेकिन मौजूदा विधानसभा चुनाव में वह अपना यह आंकड़ा बरकरार रख पाएगी कि नहीं इस पर संदेह है।
वर्ष 2013 के विधानसभा चुनावों में करारी हार का सामना करने वाली कांग्रेस पार्टी के पास अपना खोया जनाधार पाने के लिए एक साल का समय था लेकिन सत्ता में वापसी के लिए संघर्ष और जनता से जुड़ाव का जमीनी स्तर पर जो कार्यक्रम होना चाहिए था, वह पार्टी से नदारद दिखा। शीला दीक्षित जब सत्ता से बाहर हुईं तो कांग्रेस के पास 43 सीटें थीं लेकिन 2013 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी एंटी इन्कम्बेंसी की शिकार हुई और वह 8 सीटों पर सिमट गई। कांग्रेस का जनाधार आप पार्टी के खाते में चला गया और दिल्ली में पार्टी तीसरे नंबर पर खिसक गई। दिल्ली में इतने लंबे समय तक शासन करने के बावजूद कांग्रेस पार्टी की इतनी बुरी गति होगी इसकी कल्पना नहीं की गई थी।
दिल्ली ही नहीं दूसरे राज्यों में हुए हाल के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी को हार का सामना करना पड़ा है। दिल्ली विधानसभा चुनाव में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अऱविंदर सिंह लवली की जगह पार्टी महासचिव अजय माकन को सीएम का चेहरा बनाया जाना कांग्रेस में सत्ता के दो केंद्रों की तरफ इशारा करता है। कांग्रेस पार्टी एक तरह से नई और पुरानी पीढ़ी के टकराव से गुजर रही है। पार्टी पर पुराने नेताओं का इस कदर कब्जा है कि नए चेहरों के लिए कोई अवसर ही नहीं है। ऐसे में पार्टी में बदलाव के लिए एआईसीसी तथा राज्यों की कमेटियों में जमे पुराने नेताओं को भाजपा की तरह ही मार्गदर्शक मंडल बनाकर समायोजित करना चाहिए ताकि बदलाव की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जा सके।
कांग्रेस पार्टी ने दिल्ली विधानसभा चुनावों के लिए लोकलुभावन घोषणा पत्र जारी किया है। पार्टी ने घोषणा पत्र में दिल्लीवासियों के लिए कई घोषणाएं की हैं। घोषणापत्र जारी करते हुए लवली ने कहा कि हम जो घोषणा पत्र में लिखेंगे उसे पूरा करेंगे। हम अस्पताल में आधुनिक तकनीक लगाएंगे जिससे मरीजों को 24 घंटे सेवाएं मिलेंगी। लवली ने कहा कि 200 यूनिट तक बिजली की खपत करने वाले उपभोक्ताओं को प्रति यूनिट डेढ़ रुपए से भुगतान करना होगा। प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि कांग्रेस दिल्ली शहर को वाई-फाई सुविधा से लैस करेगी। लवली ने युमना की सफाई करने का भी वादा किया। दिल्ली की जनता इन लोकलुभावन घोषणाओं को गंभीरता से लेगी इस बात की संभावना कम ही है।
चुनाव में वोट किसे देना है इसे लेकर दिल्ली की जनता अपना मन एक तरीके से बना चुकी है और भारतीय जनता पार्टी और आम आदमी पार्टी के बीच चुनावी जंग जिस तरह से चल रही है उसे देखकर नहीं लगता है कि चुनाव में कांग्रेस के लिए ज्यादा कुछ बचा है। कांग्रेस की हालत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पार्टी के स्टार प्रचारक अपने उम्मीदवारों का चुनाव-प्रचार करने से बच रहे हैं। तो उम्मीदवार भी ग्लैमर की दुनिया से ताल्लुक रखने वाले पार्टी सदस्यों को अपने प्रचार अभियान में शामिल नहीं कर रहे हैं। मामला ठंडा पड़ा है। उत्साह की कमी है।
दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का चेहरा अजय माकन को बनाया गया है। वह पार्टी के सीएम पद के उम्मीदवार हैं। माकन को सीएम पद का उम्मीदवार बनाए जाने पर दिल्ली कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली नाराज बताए जा रहे हैं। चर्चा है कि लवली और माकन के गुट में अंदरूनी कलह भी पार्टी के बुरे प्रदर्शन के लिए जिम्मेदार है। लवली ने चुनाव लड़ने से भी मना कर दिया है।
बगैर बदलाव किए फिलहाल कांग्रेस का कोई भला होने वाला नहीं है। ऐसे में कांग्रेस में जान फूंकने के लिए नई सोच और आक्रामक नेतृत्त्व की जरूरत है ओैर उसके पास करिश्माई चेहरा नहीं है। उसका पूरा फोकस यूथ, मध्यवर्ग और किसानों पर होना चाहिए।