Gender Equality: पुराने समय से सिर्फ बेटों की चाह रखने वाला समाज अब तेजी से बदलता दिखाई दे रहा है. वंश सिर्फ बेटे चलाते हैं, इस जड़ हुई मानसिकता से लोग उबरने लगे हैं. इसका साफ असर अब दिखने भी लगा है.
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Delhi News: केंद्र की मोदी सरकार ने 2015 में हरियाणा के पानीपत से बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान की शुरुआत की थी. कन्या भ्रूण हत्या को रोकने और बेटियों के जन्म को लेकर जन जागरूकता बढ़ाना इस अभियान का उद्देश्य था, जिसका असर अब धरातल पर भी दिखने लगा है. इतना ही नहीं, निसंतान दंपति भी अब लड़कों से ज्यादा लड़कियों को गोद लेने को तवज्जो देने लगे हैं. वंश लड़के ही चलाते हैं, इस जड़ मानसिकता से लोग उबरने लगे हैं.
दरअसल बच्चे गोद लेने के मामले में अब लोगों की मानसिकता में तेजी से परिवर्तन आ रहा है. परंपरागत रूप से बेटों की चाह रखने वाले परिवार अब तेजी से लड़कियों को अपनाने की ओर रुख कर रहे हैं. पिछले दो साल में हिंदू दत्तक ग्रहण और रखरखाव अधिनियम (HAMA) के तहत लड़कियों को गोद लेने की संख्या बढ़ी है. ये हम नहीं, बल्कि एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी द्वारा केंद्र सरकार की ओर से प्रस्तुत आंकड़े बताते हैं.
इसके मुताबिक 2021 से 2023 के बीच देशभर में कुल 15,486 बच्चे गोद लिए गए. इसमें से 9,474 लड़कियां और 6,012 लड़के शामिल हैं. केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन एजेंसी (CARA) के आंकड़ों से पता चलता है कि लिंग समानता की दिशा में पंजाब और चंडीगढ़ सबसे आगे हैं. इन राज्यों में HAMA के तहत पंजीकृत कुल 7,496 गोद लेने के मामलों में से 4,966 लड़कियां थीं. केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ में गोद लिए गए कुल 167 बच्चों में से 114 लड़कियां थीं.
अन्य राज्यों का रुझान
लड़कियों को गोद लेने का सकारात्मक रुझान हिमाचल प्रदेश, तमिलनाडु, दिल्ली, उत्तराखंड, आंध्र प्रदेश और ओडिशा जैसे राज्यों में भी दिखाई दे रहा है. दूसरी ओर तेलंगाना और पश्चिम बंगाल के आंकड़ों में अब भी लड़कों को गोद लेने की प्राथमिकता थोड़ी अधिक दिखाई दे रही है. इसमें कहा गया है कि कुछ माता-पिता HAMA के तहत गोद लेने का दस्तावेज प्राप्त करते हैं जो एक कानूनी दस्तावेज है. वहीं कई लोग ऐसे भी हैं जो गोद लेने के दस्तावेज को पंजीकृत कराने का विकल्प नहीं चुनते हैं.
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लड़कियों को प्राथमिकता देना सकारात्मक कदम
इससे साफ है कि गोद लेने के आधिकारिक आंकड़ों से कहीं अधिक बच्चे खासकर लड़कियां नए परिवारों में अपना स्थान पा रही हैं. लड़कियों को प्राथमिकता मिलना एक स्वागत योग्य बदलाव है. यह बदलती सामाजिक मानसिकता को दर्शाता है और देश में लड़कियों की स्थिति में सुधार की दिशा में एक सकारात्मक कदम है.