Deputy Speaker of Lok Sabha: सवाल उठ रहा है कि डिप्टी स्पीकर के पद का क्या होगा? क्या इस बार भी ये पद खाली रहेगा? इस बारे में सूत्रों के हवाले से कहा जा रहा है कि बीजेपी में इस बारे में मंथन चल रहा है कि क्या इस बार भी इस पद को खाली रखा जाए या अपने किसी सहयोगी दल को दिया जाए.
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Deputy Speaker Election Process: 18वीं लोकसभा में स्पीकर को लेकर चुनाव इसलिए ही हुआ क्योंकि सत्तारूढ़ एनडीए और विपक्षी इंडिया के बीच डिप्टी स्पीकर को लेकर बात नहीं बनी. कहा जा रहा है कि राजनाथ सिंह ने मल्लिकार्जुन खरगे से जब बात की थी तो डिप्टी स्पीकर के पद की मांग कांग्रेस नेता ने की थी और उसके बदले में स्पीकर के नाम पर सपोर्ट का आश्वासन दिया गया था. लेकिन अंतिम समय में बात नहीं बनी लिहाजा स्पीकर के पद पर चुनाव हुआ. लेकिन इन सबके बीच डिप्टी स्पीकर के मामले में फंसा पेंच बना ही रह गया. या यूं कहें कि अब डिप्टी स्पीकर के पद को लेकर सरकार का क्या रुख होगा फिलहाल इसके लिए कयास लगाए जा रहे हैं. पिछली लोकसभा में डिप्टी स्पीकर का पद खाली रहा था हालांकि 2014-19 के दौरान 16वीं लोकसभा में डिप्टी स्पीकर का पद बीजेपी की उस वक्त की सहयोगी अन्नाडीएमके के नेता एम थंबी दुरई के पास था.
अब सवाल उठ रहा है कि डिप्टी स्पीकर के पद का क्या होगा? क्या इस बार भी ये पद खाली रहेगा? इस बारे में सूत्रों के हवाले से कहा जा रहा है कि बीजेपी में इस बारे में मंथन चल रहा है कि क्या इस बार भी इस पद को खाली रखा जाए या अपने किसी सहयोगी दल को दिया जाए. दरअसल सत्तारूढ़ एनडीए के पास संख्याबल है लेकिन बीजेपी के पास बहुमत का जादुई आंकड़ा नहीं है. यानी संख्याबल के आधार पर सत्तापक्ष के पास ही ये पद भी जा सकता है और बीजेपी अपने किसी सहयोगी दल को ये दे सकती है. हालांकि संसदीय परंपरा में ये पद विपक्ष को दिया जाता रहा है लेकिन ये काफी हद तक बीजेपी के रुख पर निर्भर करता है.
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डिप्टी स्पीकर का पद
संविधान के अनुच्छेद 95 (1) के मुताबिक स्पीकर की गैरमौजूदगी में डिप्टी स्पीकर उनकी सारी जिम्मेदारियों का निर्वहन करता हूं. उस दौरान डिप्टी स्पीकर के पास समान शक्तियां होती हैं. आर्टिकल 93 कहता है कि सदन शुरू होने के साथ ही जल्द से जल्द सदस्यों में से एक स्पीकर और एक डिप्टी स्पीकर चुना जाना चाहिए. आर्टिकल 178 में राज्यों की विधानसभाओं में भी इसी तरह स्पीकर और डिप्टी स्पीकर को चुने जाने का विधान किया गया है. हालांकि संविधान में इसकी नियुक्ति के लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की गई है. इसी का सहारा लेकर कई बार सरकार डिप्टी स्पीकर की नियुक्ति में देरी करती है या नियुक्ति टाल देती है.
चुनाव
आमतौर पर लोकसभा और विधानसभाओं में नए सदन के पहले सत्र में स्पीकर का चुनाव होता है. पहले सत्र के तीसरे दिन लोकसभा स्पीकर का चुनाव होता है. उसके पहले दो दिन सांसदों का शपथ ग्रहण होता है. उसके बाद दूसरे सत्र में डिप्टी स्पीकर को चुने जाने की परिपाटी रही है हालांकि पहले सत्र में भी उसको चुना जा सकता है. इस बारे में कहीं पाबंदी नहीं है. हालांकि दूसरे सत्र के बाद भी उसको टालने का तब तक कोई कारण नहीं होता जब तक कि कोई ठोस कारण न हो.
लोकसभा में प्रक्रिया संबंधी नियमावली के नियम 8 के मुताबिक डिप्टी स्पीकर का चुनाव उस दिन होगा जिस दिन स्पीकर द्वारा नियत किया जाएगा. उसके बाद संबंधित नाम के प्रस्ताव पर सदन की मुहर लगने के बाद लोकसभा भंग होने तक डिप्टी स्पीकर अपने पद पर रहते हैं. संविधान के आर्टिकल 94 (राज्यों की विधानसभाओं के लिए आर्टिकल 179) में प्रावधान है कि संबंधित सदन का सदस्य नहीं रहने की स्थिति में स्पीकर या डिप्टी स्पीकर को अपना पद छोड़ना होगा. इसके अलावा यदि सदन में बहुमत से उनको हटाने संबंधी प्रस्ताव पारित हो जाए तो भी उनको पद से हटाया जा सकता है.