भारतीय एजुकेशन सिस्टम में बदलाव की मांग पहले से की जाती रही है. इस संबंध में एनसीईआरटी ने राज्य सरकारों से सुझाव मांगे थे. इस संबंध में अलग अलग राज्य सरकारों ने जो सुझाव दिए हैं उसमें परमाणु सिद्धांत के लिए महर्षि कणाद, वराहमिहीर, संजीवनी बूटी के साथ साथ गीता, रामायण, महाभारत के सार को पढ़ाए जाने पर जोर दिया गया है.
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Indian Education News: अगर हमारे पास गर्व करने की वजह हो तो क्यों ना करें. क्या भारत की प्राचीन शिक्षा व्यवस्था में गर्व करने लायक कुछ नहीं था. क्या दुनिया की तरक्की के पीछे सिर्फ और सिर्फ पश्चिम के देश यानी अमेरिका और यूरोप का ही योगदान है. क्या हमारे पास इतराने के लिए कोई वजह नहीं थी या जानबूझकर विदेशी ताकतों ने झूठ के बाजार का निर्माण किया. क्या विदेशी ताकतों ने यह बताया कि दुनिया को जिन आविष्कारों का फायदा मिल रहा है उसमें हम लोगों की भूमिका अहम है, लेकिन यह सच नहीं है. भारत के एजुकेशन सिस्टम एक बड़े बदलाव की तरफ बढ़ रहा जिसमें बताया जाएगा कि हमारे पास गर्व करने के लिए बहुत कुछ है. एनसीईआरटी(NCERT) ने पाठ्यक्रम के संबंध में राज्यों से सुझान मांगे थे और करीब करीब सभी राज्यों ने सुझाव दिया है कि भारत की प्राचीन शिक्षा व्यवस्था पश्चिमी देशों से कहीं अधिक आगे थी.
क्या थी अंग्रेजों की राय
भारतीय शिक्षा प्रणाली दुनिया के टॉप एजुकेशन प्रणालियों(Top Education System Of World) में से एक रही है. यह बात अलग है कि अंग्रेजी शासन के दौरान भारत की शिक्षा प्रणाली को दोयम दर्ज का बताया गया. अंग्रेजों का मकसद यह था कि वो हर उन प्रतीकों, योगदान में खामियों गिनाएं जिसकी वजह से भारतीयों को अपनी विधा पर गर्व ना कर सकें. जैसे भारत की प्राचीन एजुकेशन व्यवस्था रूढ़िवादी और वैज्ञानिक सोच वाली नहीं थी. मध्य युग की शिक्षा प्रणाली अंधयुग की तरफ ले जाने वाली थी. भारत में आधुनिक शिक्षा व्यवस्था के बारे में अंग्रेजी सरकार ने सोचा. 1947 के बाद एजुकेशन सिस्टम को लेकर कई तरह के सवाल सियासी तौर पर भी उठाए जाते रहे. इन सवालों के बीच भारत सरकार ने फैसला किया भारत की प्राचीन शिक्षा व्यवस्था ने दुनिया को दिशा दी. हमारे पूर्वजों के पास वो जानकारियां थीं जिसका फायदा पश्चिम के वैज्ञानिकों ने उठाया. अब समय आ गया है जब हमें अपने स्कूली पाठ्यक्रम में बुनियादी बदलाव की जरूरत है और उस क्रम में एनसीईआरटी ने अलग अलग राज्यों से सुझाव मांगे थे.
राज्यों ने दिए थे अहम सुझाव
दैनिक भाष्कर के मुताबिक एनसीईआरटी ने किताबें तैयार करने के लिए अलग अलग 25 विषय केंद्रित समूह बनाए. यही नहीं राज्यों से सुझाव भी मांगे गए. उन सुझावों के संदर्भ में देश के सबसे बड़े सूबों में से एक यूपी ने साइंस के क्षेत्र में कई अहम सलाह दिए. उदाहरण के लिए राइट ब्रदर्स से हजारों साल पहले महर्षि भारद्वाज ने हवाई जहाज के संदर्भ में वैमानिक शास्त्र लिखा था. वैमानित शास्त्र में अलग अलग तरह के विमानों, जहाज और वायु अस्त्रों यानी मिसाइल का जिक्र किया था. यही नहीं स्कंद पुराण में महर्षि कर्दम ने अपनी पत्नी के लिए आने जाने के लिए विमान डिजाइन की थी.
स्कंद पुराण में विमान की डिजाइन का जिक्र
महर्षि कणाद ने परमाणु सिद्धांत के बारे में बताया था.
कणाद ने खासतौर से अविभाज्य कण यानी इलेक्ट्रान, प्रोटान और न्यूट्रान की कल्पना की थी.
पश्चिम जगत डॉल्टन को मानता है कि परमाणु सिद्धांतों का जनक
कणाद ने वैशेषिक सूत्र में न्यूटन से पहले गति के नियमों के बारे में बताया
पांचवीं सदी में वराहमिहीर ने भूकंप के बारे में जानकारी दी थी.
रॉकेट के आविष्कार का श्रेय भारत को. कृ्ष्ण के पौत्र अनिरुद्ध को गोला-बारूद बनाने के बारे में जानकारी थी.
वैदिक गणित की कैलकुलेशन कंप्यूटर सॉफ्टवेयर के बराबर
विज्ञान-साहित्य हर क्षेत्र में भारत रहा है आगे
गुजरात की तरफ से सुझाव आया कि ज्योतिष और खगोल शास्त्र में दुनिया, भारत की ऋणी है, सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण के बारे में पश्चिम के वैज्ञानिकों से पहले भारत को इस विषय में महारत हासिल थी. ज्योतिषीय गणना के आधार पर ऋषि-महर्षि बताया करते थे कि दुनिया के किन किन हिस्सों में कब कब चंद्र और सूर्य पर ग्रहण लगेगा. छत्तीसगढ़ ने सुझाव दिया कि पाठ्यक्रम में सीता अवतरण के साथ साथ हनुमान जी के लंका प्रसंग का भी जिक्र हो, खासतौर से संजीवनी बूटी के बारे में भी पढ़ाया जाए. मध्य प्रदेश की तरफ से सुझाव था कि उपनिषद, महाभारत, गीता और रामायण के सार को भी इतिहास का हिस्सा बनाए जाए. हरियाणा सरकार की तरफ से सुझाव था कि अतीत की गलतियों को विश्लेषण के साथ पढ़ाने की जरूरत है जिससे पता चल सके कि किस तरह से विदेशी आक्रांताओं से सबक ली जा सकती है.