Kuber Tila: अयोध्या में जिस दिन राम मंदिर का उद्घाटन हुआ, उस दिन शाम को कुबेर टीला की भी काफी चर्चा हुई थी. पीएम मोदी यहां शिव मंदिर में पूजा करने गए थे. इस मंदिर का प्राचीन महत्व तो है ही, साथ ही इसे हिंदू मुस्लिम एकता का भी प्रतीक माना जाता है. कहानी उस समय की है जब अंग्रेजों का देश पर शासन था.
Trending Photos
Ayodhya Ram Mandir Kuber Tila: अयोध्या में आज जहां भव्य राम मंदिर बना है उससे कुछ ही दूरी पर एक टीला है. हां, वैसा ही जैसा गांवों में थोड़ी ऊंची उठी हुई जगह होती है. मंदिर निर्माण के लिए भले ही कानूनी लड़ाई लड़ी गई हो पर यह टीला हिंदू-मुस्लिम एकता की कहानी कहता है. अंग्रेजों के समय से यह हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है. यह वही कुबेर टीला है, जहां 22 जनवरी 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शिव मंदिर में पूजा अर्चना की थी. वो साल था 1858 और आजादी की पहली लड़ाई में बाबरी मस्जिद से कुछ दूरी पर यह जगह काफी प्रसिद्ध हो गई थी.
2 अगस्त 1858 को वसुदेव घाट पर मंदिर के मुख्य पुजारी पंडित शंभू प्रसाद शुक्ला ने एक छोटी टुकड़ी के साथ अयोध्या में अंग्रेजों को चुनौती दे डाली. उनकी मांग थी कि उसी साल मार्च में कुबेर टीला पर फांसी पर लटकाए गए हिंदू और मुस्लिम सेनानियों के लिए एक स्तंभ और समाधि बनाने दी जाए. यह सब 30 जून 1857 को शुरू हुआ जब अंग्रेजों के खिलाफ चिनहट की लड़ाई हिंदुओं, मुसलमानों, सिखों और किसानों ने मिलकर लड़ी और जीती. अंग्रेजों के खिलाफ यह पहला संगठित युद्ध माना जाता है.
साधु- मौलवी साथ लड़े
विद्रोह की आग फैजाबाद पहुंच गई, जहां वही 22 बंगाल नेटिव इन्फैंट्री थी जिसने चिनहट में अपनी वीरता दिखाई थी. यह इन्फैंट्री बंगाल में स्थानीय स्तर पर भर्ती की गई ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की पहली यूनिट थी. फैजाबाद के स्थानीय लोगों, साधुओं और मौलवियों के सहयोग से एक और विद्रोह शुरू हुआ. परिणाम यह रहा कि शहर जून से मार्च 1858 तक अंग्रेजों से मुक्त रहा. बाद में 3 मार्च 1858 को लखनऊ और 17 मार्च को फैजाबाद पर अंग्रेजों का फिर से कब्जा हो गया.
महंत, मौलवी और अच्छन
फैजाबाद विद्रोह के लीडर थे हनुमानगढ़ी के महंत रामचरण दास, मौलवी अमीर अली और अच्छन खान. इन सभी को 18 मार्च 1858 को अंग्रेजों ने कुबेर टीला पर फांसी दे दी. दरअसल, तब हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लोग मिलकर बरतानिया हुकूमत से संघर्ष कर रहे थे. अंग्रेजों को यह एकता अच्छी नहीं लग रही थी. 18 मार्च को कुबेर टीला के एक इमली के पेड़ पर अमीर अली और बाबा रामचरण दास को फांसी पर लटका दिया गया. बाद में जब हिंदू समुदाय के लोग इस पेड़ को पूजने लगे तो अंग्रेजों ने पेड़ ही कटवा दिया.
बाद में पंडित शंभू शहीदों के लिए उसी जगह पर स्मारक बनवाना चाहते थे. हालांकि वह सफल नहीं हो पाए. कई लोगों की जान गई. 13 नवंबर 1858 को अंग्रेजों ने शंभू को भी फांसी दे दी. कुछ साल पहले कुबेर टीला के महत्व को बताने के लिए अयोध्या शहीद मेला भी लगा था.
कल पीएम गए उस टीले पर
अयोध्या मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कल कुछ दूर टीले पर बने शिव मंदिर गए थे. यहीं पर उन्होंने जटायू की प्रतिमा का अनावरण भी किया. मान्यता है कि रामलला के जन्म से भी काफी पहले से यह टीला मौजूद है. यहां धन के देवता कुबेर आए थे और उन्होंने टीले पर शिवलिंग की स्थापना की थी. कुबेर टीला में भोलेनाथ के जलाभिषेक के बिना अयोध्या की यात्रा पूरी नहीं मानी जाती है.
कुबेर यहां आए थे
दरअसल, भगवान राम और शिव का संबंध अटूट माना जाता है. विद्वान बताते हैं कि रामजी अयोध्या से लंका तक जाने के दौरान प्रतिदिन एक शिवलिंग का निर्माण करते थे. रामपथ गमन पर राम से ज्यादा शिवजी के मंदिर मिल जाएंगे. पहले कुबेर टीला पर 9 देवी-देवताओं की प्रतिमा स्थापित की गई थी, जिसे नवरत्न कहा जाता था. इस प्राचीन शिव मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया है. पहले शिव मंदिर की दीवारें ढाई फुट चौड़ी और करीब पांच फुट ऊंची थीं. अब छत बना दी गई है.
करीब में ही पक्षीराज जटायु की मूर्ति स्थापित की गई है क्योंकि उन्होंने माता सीता को बचाने के लिए रावण से लड़ाई लड़ी थी. बाद में जटायु ने ही राम को रावण का पता बताया था और उनकी गोद में प्राण त्याग दिए थे. इसके जरिए उन लोगों को भी श्रद्धांजलि दी है जिन्होंने राम मंदिर आंदोलन में अपने प्राणों की आहुति दी.