Asirgarh Fort Madhya Pradesh:कहानियां और किस्से जितने पुराने होते जाते है उन्हें जानने की इच्छा और रोचक होती जाती है. एक ऐसा ही किस्सा एमपी के बुरहानपुर में स्थित असीरगढ़ किला के बारे में है. इस किले के किस्से रामायण और महाभारत काल से भी जोड़े जाते हैं. कहते हैं कि अश्वत्थामा इस किसे में आकर आज भी भगवान शिव की पूजा करते हैं. कई रोचक किस्सों से भरा है असीरगढ़ किला.
मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले में स्थित असीरगढ़ किला जो बुरहानपुर से 20 किमी की दूरी पर पड़ता है अपने साथ कई किस्से समाए रखा है. यह किस्से इस किले के साथ और रोचक होती चली जाती है.
किले का महाभारत और रामायण से गहरा संबंध है. इस किले का निर्माण रामायण काल में किया गया था. 14वीं शताब्दी का यह किला बहुत ही मजबूती से बनाया गया था जिसे हमलावर भी किले को तोड़ने में असमर्थ थे.
अश्वत्थामा को अपने पिता की मौत के बाद श्री कृष्ण ने अश्वत्थामा को श्राप दिया गया था. श्राप के मुताबिक श्री कृष्ण ने उन्हें युगों-युगों तक भटकने का श्राप दिया गया था. जिसके चलते आज भी अश्वत्थामा इस किले में भटक रहे हैं.
यह किला तीन भागों में बटा हुआ है और किले में दो कुंड भी मौजूद है जहां कहते हैं कि दुश्मनों को मारकर उन्हें इन्ही कुंडों में डाल दिया जाता था. किले में 5 तालाब हैं, लेकिन ये तालाब कभी भी नहीं सूखते हैं.
अश्वत्थामा, जो गुरु द्रोणाचार्य के बेटे थे और जिन्होंने कौरवों और पांडवों को शस्त्र विद्या का पाठ पढ़ाया था, कहा जाता है कि वे आज भी अमावस्या और पूर्णिमा के दिन किले में स्थित गुप्तेश्वर मंदिर में भगवान शिव की पूजा करने के लिए आते है. अश्वत्थामा को लेकर यह बात आज से नहीं बल्कि कई सालों से कही जा रही हैं.
अकबर और बहादुरशाह फारूखी का किस्सा भी इस किले के साथ जुड़ हुआ है. अकबर ने इस किले के लिए बहादुरशाह फारूखी पर चाल चलते हुए फतेह पाया था.
असीरगढ़ नाम के पीछे की कहानी भी बहुत रोचक है. इस समय जहां असीरगढ़ किला मौजूद है. वहां कभी आशा अहीर नाम का आदमी आया करता था, जिसके पास हजारों पशु थे. उस व्यक्ति ने पशुओं की सुरक्षा के लिए ईंट, मिट्टी, चूना–पत्थरों से दीवारें बनाई थीं. कहा जाता है कि इसी को देखते हुए किले का नाम असीरगढ़ किला रखा गया था.
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