धमाकों की गूंज के बीच इस गांव में अनोखा भुजरिया पर्व, बंदूक की नोक पर होता है 300 फीट ऊंचाई पर बंधा नारियल
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धमाकों की गूंज के बीच इस गांव में अनोखा भुजरिया पर्व, बंदूक की नोक पर होता है 300 फीट ऊंचाई पर बंधा नारियल

मध्य प्रदेश के विदिशा जिले के झुकरजोगी गांव में रक्षाबंधन के अगले दिन भुजरिया का पर्व मनाया जाता है. 300 फीट ऊंचाई पर बांधे गए नारियल को बंदूक से फोड़ने की अनूठी परंपरा है.

Festival of Vidisha Bhujariya

Festival of Vidisha Bhujariya: मध्य प्रदेश के विदिशा में रक्षाबंधन के अगले दिन एक खास परंपरा के तहत भुजरियां का पर्व मनाया जाता है. यहां 300 फीट की ऊंचाई पर बांधे गए नारियल को बंदूक से निशाना साधकर तोड़ा जाता है. इस अनूठी परंपरा के दौरान बंदूकों की धमक के बीच भुजरियों को निकाला जाता है. इस अवसर पर महिलाओं और पुरुषों का सामूहिक लहंगी नृत्य आयोजन को और भी खास बना देता है. नारियल फोड़ने के लिए गांव के निशानेबाज़ अपनी दक्षता दिखाते हैं. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और आज भी इसे बड़े उत्साह के साथ निभाया जाता है. नारियल फोड़ने वाले निशानेबाज़ को गांव के सरपंच द्वारा नकद इनाम देकर सम्मानित किया जाता है.

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झुकरजोगी की परंपरा
विदिशा जिले की लटेरी तहसील के झुकरजोगी गांव में भुजरियां का पर्व अनोखे अंदाज में मनाया जाता है. रक्षाबंधन के अगले दिन मनाए जाने वाले इस पर्व की पूरे देश में अलग-अलग परंपराएं हैं, लेकिन यहां इसे मनाने का तरीका अनूठा है. इस मौके पर झुकरजोगी गांव में भुजरियों को बंदूकों की सुरक्षा में निकाला जाता है और बंदूक धारियों के बीच निशानेबाज़ी की प्रतियोगिता आयोजित की जाती है. इस आयोजन के दौरान सुरक्षा के मद्देनजर पुलिस बल की भी तैनाती की जाती है.

परंपरा का पालन
एक ओर महिलाएं भुजरियों को लेकर नाच-गाने के साथ सामूहिक लहंगी नृत्य करती हैं, तो दूसरी ओर बंदूक की धमक के बीच पूरे गांव का नज़ारा कुछ अलग ही दिखाई देता है. मान्यता है कि यहां की भुजरियां तब तक नहीं उठाई जातीं जब तक कि बंदूक की गोली से पेड़ के ऊपर बंधा नारियल गिर न जाए. इस परंपरा को निभाने के लिए गांव के कई निशानेबाज़ अपनी-अपनी निशानेबाज़ी का प्रदर्शन करते हैं और नारियल को फोड़कर इस प्राचीन रीति को निभाते हैं.

परंपरा का इतिहास
गांव वालों का कहना है कि यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. पहले यह परंपरा हथियारों से सजे-धजे हाथी, घोड़े और ऊंटों पर बैठकर निभाई जाती थी, लेकिन समय के साथ और संसाधनों की कमी के कारण इसमें बदलाव आए. फिर भी इस परंपरा को जीवित रखने के लिए लोगों ने भरपूर प्रयास किया है. आज भी इस परंपरा को निभाने के लिए निशानेबाज़ी की प्रतियोगिता और लहंगी नृत्य के साथ इसे उत्साहपूर्वक मनाया जाता है.

रिपोर्ट: दीपेश शाह (विदिशा)

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