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भोपाल के बड़े तालाब का रोचक इतिहास, बीमारी थी निर्माण की वजह, नवाबों ने बनाया खूबसूरत

Madhya Pradesh News: मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल को तालाबों का शहर के नाम से जाना जाता है. यहां छोटे-बड़े मिलाकर कुल 7 तालाब हैं. ये तालाब हरे भरे भोपाल की खूबसूरती को कई गुना बढ़ा देते हैं. भोपाल के तालाब देखने में जितने खूबसूरत हैं, इसके निर्माण की कहानी भी उतनी ही रोचक है. आज ये तालाब भोपाल की लाइफ लाइन बन गए हैं. 

एक हजार साल पहले हुआ निर्माण

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एक हजार साल पहले हुआ निर्माण

आज भोपाल के मुख्य आकर्षण बड़े तालाब का निर्माण 11वीं शताब्दी में कराया गया है. तब इलाके में पीने की पानी की समस्या को देखते हुए इसका निर्माण कराया गया था. भोपाल आज भी इसी तालाब का पानी पीता है. यही नहीं बड़ा तालाब आज भोपाल के लोगों के लिए जीवन के साथ साथ मनोरंजन और रोजगार का जरिया भी बन गया है.

तालाबों के बेहद रोचक कहानी

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तालाबों के बेहद रोचक कहानी

भोपाल में कुल सात तालाब हैं, जिनमें 5 प्राचीन हैं और सभी तालाबों के बनने की कहानी भी काफी रोचक है. हालांकि, पीने के लिए सिर्फ बड़े तालाब के पानी का उपयोग ही किया जाता है. 11वीं शताब्दी में राजा भोज ने इसका निर्माण कोलांस नदी पर मिट्टी का बांध बनाकर किया गया था. हालांकि तब इसका आकार आज की तरह इतना विशाल नहीं था.

एशिया का सबसे बड़ा कृत्रिम तालाब

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एशिया का सबसे बड़ा कृत्रिम तालाब

भोपाल के बड़े तालाब को अपर लेक के नाम से भी जाना जाता है. यह एशिया का सबसे बड़ा मानव निर्मित तालाब है. कहा जाता है कि बड़े तालाब का निर्माण चर्म रोग दूर करने के लिए बनवाया गया था. इतिहासकार बताते हैं कि परमार राजा भोज को चर्म रोग की शिकायत थी. वे काफी तकलीफ के दौर से गुजर रहे थे. तब उन्हें एक साधू ने राजा भोज को एक तालाब बनाने का सुझाव दिया था. 

9 नदियों को जोड़कर बनाया तालाब

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 9 नदियों को जोड़कर बनाया तालाब

साधू ने राजा भोज से कहा था कि 9 नदी और 99 नालों के पानी को जमा करके उससे रोज नहाने के कहा. उससे यह रोग पूरी तरह से ठीक हो जाएगा. इसके बाद राजा ने अपने मंत्री कल्याण सिंह को तालाब बनाने का आदेश दिया. उस समय श्यामला हिल्स से लेकर मंडीदीप, दाहोद डैम, औबेदुल्लागंज, दिवटिया और भीमबैठका के पहाड़ों के बीच कई जल स्त्रोत थे. 

बेतवा से जोड़ा गया

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बेतवा से जोड़ा गया

कल्याण सिंह ने जल स्त्रोतों से पानी इकट्ठा किया गया, लेकिन 9 नदी की संख्या पूरी नहीं हो पाई. फिर भदभदा के पास से एक नदी खोदी गई. उसे नदी को बेतवा से कनेक्ट किया गया. इस नदी को कलियासोत नाम दिया गया. बेतवा नदी के जल स्रोतों को बेतवा से बड़े तालाब तक पहुंचाने के लिए भोजपुर में डैम बनाया.

पहले भीमकुंड था नाम

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पहले भीमकुंड था नाम

इतिहासकार बताते हैं कि राजा भोज इस पानी से रोज नहाते थे. जिससे उनका चर्म रोग ठीक हो गया. इतिहासकार कहते हैं कि राजा भोज ने पहले इस तालाब का नाम भीमकुंड रखा गया. कमला पार्क पर बने डैम की वजह से इसका नाम भोजपाल भी पड़ा. आगे चलकर इसका नाम भोजताल हुआ.

नवाबों ने कराया विस्तार

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नवाबों ने कराया विस्तार

आगे चलकर 14वीं शताब्दी में भोपाल के नवाब दोस्त मोहम्मद खान ने तालाब का पुनर्निर्माण और विस्तार करवाया था. उन्होंने तालाब के चारों ओर एक मजबूत दीवार बनवाई और इसके आसपास कई सुंदर बगीचे बनवाए. आज यह तालाब भोपाल शहर का एक महत्वपूर्ण जल स्रोत है और इसके आसपास के क्षेत्र में कई प्रकार के वन्य जीवन को आकर्षित करता है.