Ramadan Mubarak 2024: मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले में आज भी रमजान के दौरान एक अनोखी परंपरा कायम है. आज भी रमज़ान में इफ्तार और सहरी तोप के गोलों की गूंज से शुरू और ख़त्म होती है. यह परंपरा 150 साल पहले से चली आ रही है जब सहरी और इफ्तारी के बारे में जानकारी देने का कोई साधन नहीं था.
बाबा महाकालेश्वर की नगरी उज्जैन में रमज़ान का महीना होली, दीपावली, दशहरा और अन्य त्योहारों की तरह ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है.
धार्मिक नगरी में वर्षों से एक परंपरा चली आ रही है, जिसके तहत रमजान के महीने में सहरी और इफ्तार के वक्त सुबह-शाम 150 साल पुरानी तोप चलाई जाती है. कहा जाता है कि ये परंपरा करीब 150 साल से चली आ रही है.
दरअसल यह परंपरा नवाबों के समय से चली आ रही है. आज नवाबों का ज़माना चला गया है लेकिन ये परंपरा आज भी ज़िंदा है और मुस्लिम समुदाय के लोग आज भी इस सदियों पुरानी परंपरा को निभा रहे हैं.
उज्जैन का तोपखाना क्षेत्र मुस्लिम बहुल है. यहां एक पुरानी तोप है, जिस पर रमजान के महीने में सुबह सहरी और शाम को इफ्तार के वक्त तोप चलाई जाती है. इस तोप का इस्तेमाल सहरी और इफ्तार का समय बताने के लिए किया जाता है.
150 साल पुरानी इस तोप से धमाका करने के लिए एक बार में 100 ग्राम बारूद की जरूरत होती है.रमज़ान के पूरे महीने में करीब 3 किलो बारूद का इस्तेमाल होता है. स्थानीय निवासी बताते हैं कि 150 साल पुरानी तोप आज भी तोपखाना क्षेत्र की मस्जिद में हमारे पास है. इस तोप के जरिए लोगों को सहरी और इफ्तार के समय की जानकारी दी जाती है.
स्थानीय निवासियों का यह भी कहना है कि एक समय था जब तोप की आवाज से पूरे शहर के लोग इकट्ठा होते थे, लेकिन अब इमारतों के निर्माण के कारण आवाज की सीमा तय कर दी गई है. अब तोप के धमाके की आवाज 3 किलोमीटर तक पहुंचती है.
आपको बता दें कि उज्जैन का तोपखाना क्षेत्र बाबा महाकाल मंदिर से महज 500 मीटर की दूरी पर है, जहां बड़ी संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोग रहते हैं. यहां हिंदू मुस्लिम समुदाय के लोग प्रेम और भाईचारे के साथ रहते हैं.
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