Chhattisgarh News: नारायणपुर जिले के कुम्हारपारा स्थित शीतला माता मंदिर में वर्षों पुरानी माता पहुंचनी की रस्म अदायगी पूरे विधि विधान के साथ की गई. इस दौरान नगर में निवासरत सभी वर्गों के लोग माता पहुंचनी में अपनी श्रद्धा के फूल फल लेकर मंदिर पहुंचते हैं.
मान्यता है कि नगर में हैजा, चेचक और मौसमी बीमारियों से बचाए रखने के लिए सभी माता से मन्नत मांगने जाते हैं. इस दौरान रस्म अदायगी में नगर के प्रत्येक मोहल्ले के लोग देवी देवता के साथ देव कोठार महावीर चौंक में जमा होते हैं.
कुकुर नदी के उस पार के मोहल्ले के लोग अपने देवी देवता के साथ चंडीबड में जमा होते हैं दोनों एक साथ अपने अपने स्थान से जस गीत गाते कलश लेकर शीतला माता मंदिर पहुंचते हैं जहां माता के प्रांगण में दोनों मोहल्ले के देवी देवताओं के मिलन के बाद शीतला मंदिर में माता को प्रसन्न करने देवी देवता ढोल की थाप पर नाचते गाते हैं.
माता से नगर ओर जिले में अपना आशीर्वाद बनाए रखने के साथ कोई भी बीमारियों से सभी लोगों को बचाने की मां से मन्नत मांगते हैं. जिनकी मन्नत पूरी होती है वो अपनी मन्नत चढ़ाते हैं. माता पहुंचनी एक ऐसा नारायणपुर का त्योहार है, जिसमें हर समाज का व्यक्ति स्वत मंदिर प्रसाद लेकर माता के दर्शन करने पहुंचता है.
हर साल बसंत पंचमी के पहले शनिवार को माता पहुंचानी की रस्म अदा कर लोक देवी शीतला माता की पूजा अर्चना की जाती है. इस दिन माता के भक्त अपने -अपने घरों के आंगन में कलश निकालकर पूजा करते हैं. इसके बाद प्रत्येक मोहल्ले का समूह महावीर चौक स्थित देव कोठार में जमा होते हैं.
इसी प्रकार कुकुर नदी के उस पार बसे लोग चंडीबढ में जमा होते हैं. देव कोठार और चंडीबढ में आंगा देव, सोनकुंवर बाबा और शीतला माता को संदेश देते हैं. मावली माता के खप्पर की अगुवाई में जस गीत गाकर दोनों ओर से कलश जुलूस निकाला जाता है जिनका समागम शीतला माता मंदिर के सामने होता है.
पुजारी अगुवानी कर मंदिर के अंदर कलश ले जाते हैं. लोक मान्यता के अनुसार शीतला माता साल में एक बार अपने भक्तों के बीच मान पाने के लिए निकलती हैं. वह महिला, पुरुष, बालक और बालिकाओं के शरीर में बड़ी माता, सेन्द्री माता, गलवा माता के रूप में दिखती हैं.
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